रघुवीर सहाय कवि परिचय- कैमरे में बंद अपाहिज संक्षिप्त परिचय
रघुवीर सहाय कवि परिचय- कैमरे में बंद अपाहिज संक्षिप्त परिचय
मृत्यु- 30 दिसम्बर, 1990
जन्म- 9 दिसम्बर, 1929
रघुवीर सहाय कवि जीवन परिचय-
रघुवीर सहाय का जन्म 9 दिसम्बर, 1929 को लखनऊ में
हुआ। इनकी मृत्यु 30 दिसम्बर, 1990 को हुई। शिक्षा
- 1951 में लखनऊ
विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. किया और 1946 से ही साहित्य
सृजन करने लगे।
रघुवीर सहाय कवि व्यक्तित्व-
रघुवीर सहाय समकालीन हिन्दी कविता के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। उनके साहित्य में
पत्रकारिता का और पत्रकारिता पर साहित्य का गहरा असर दिखाई पड़ता है। इनकी कविताएँ, मानव संबंधों की
खोज करती हैं। जिन आशाओं और सपनों से आजादी की लड़ाई लड़ी गई थी उन्हें साकार करने
में जो बाधाएँ आ रही दाँ उनका निरंतर विरोध करना उनका रचनात्मक लक्ष्य रहा है।
रघुवीर सहाय रचनाएँ-
सीढ़ियों
पर धूप, आत्महत्या के
विरुद्ध, हँसो हँसो जल्दी
हँसो, लोग भूल गए हैं।
रघुवीर सहाय भाषा-
शैली- रघुवीर सहाय की अपनी काव्य-शैली है, उनकी भाषा सरल, साफ-सुथरी एवं सभी हुई है। उनको भाषा शहरी होते हुए भी सहज व्यवहार वाली है सजावट की वस्तु नहीं है। रघुवीर सहाय अधुनिक काव्य भाषा के मुहावरे को पकड़ने में अत्यंत कुशल हैं। मार्मिक उजास और व्यंग्य एवं बुझी खुरदुरी मुस्कान उनकी कविता के गुण हैं। छंदानुशासन के लिहाज से वे अनुपम हैं।
रघुवीर सहाय का साहित्य में स्थान-
1984 में इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त हुआ है। नवभारत टाइम्स दिल्ली में विशेष संवाददाता रहे। 1969 से 1982 तक प्रधान संपादक रहे। 1982 से 1990 तक स्वतंत्र लेखन किया। कवि होने के साथ-साथ निबंध लेखक, कथाकार तथा आलोचक रहे।
कैमरे में बंद अपाहिज संक्षिप्त परिचय
मानवीय संवेदनाओं से परे व्यावसायिकता से वशीभूत दूरदर्शन कर्मियों की अमानवीयता को 'कैमरे में बंद अपाहिज' में दर्शाया गया है। कार्यक्रम को रोचक बनाने और प्रसिद्धि प्राप्त करने का एक मात्र लक्ष्य लेकर दूरदर्शन में विशेष प्रकार के दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों में से एक है। इसमें एक अपाहिज को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है जिसमें ख्याति प्राप्त प्रतिष्ठित व्यक्तियों की तरह उसके निजी जीवन के प्रश्न पूछे जाते हैं। जैसे- तो आप क्या हैं ? आप क्यों अपाहिज हैं ? आपका अपाहिजपन आपको दुख देता होगा ? आपका दुख क्या है ? जल्दी बताइए समय नहीं है, परदे पर वक्त की कीमत है। आपको अपाहिजपन कैसा लगता है ? इस प्रकार के प्रश्न पूछते हुए उसके दिव्यांगों को फोकस करके परदे पर दिखाया जाता है। यह तब तक किया जाता है जब तक कि अपाहिज व्यक्ति की आँखों से अश्रु प्रवाहित न हो जाए। शारीरिक असमर्थता से पीड़ित व्यक्ति का साक्षात्कार दिखाकर दूरदर्शन चैनल वाले एक ओर सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हैं और दूसरी ओर अपने कार्यक्रम की टी. आर. पी. (टेलीविजन रेटिंग पॉइंट) बढ़ाने का उद्देश्य पूरा करते हैं। जिससे दूरदर्शन कर्मियों की दिव्यांगों के प्रति संवेदनहीनता ही प्रकट होती है।