पहलवान की ढोलक प्रश्न उत्तर (प्रश्नोत्तर)
पहलवान की ढोलक प्रश्न उत्तर (प्रश्नोत्तर)
प्रश्न 1. कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था ? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं; उन्हें शब्द दीजिए।
उत्तर - कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँव-पेंच में गजब का तालमेल था। ढोलक की आवाज मानो पहलवान का मार्गदर्शन कर रही हो, अतः उसकी आवाज के अनुरूप वह कुश्ती के दाँव-पेंच में परिवर्तन करते हुए लड़ता था।
निम्नलिखित ध्वन्यात्मक शब्द पहलवान में जोश और उत्साह का संचार करते थे-
1. चट्-धा गिड़-धा आजा भिड़ जा
2. चटाक चद्धा - उठाकर पटक दे
3. ढाक-दिना - वाह पट्टे
4. चट गिड़-धा - मत डरना
5. धाक धिना, तिरकट-तिनादाँव काटो बाहर हो जा
6. धिना धिना धिक धिना चित करो।
प्रश्न 2. कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए ?
उत्तर- कहानी के निम्न मोड़ों पर लुट्टन के जीवन के निम्न परिवर्तन आते हैं— 1. बचपन में हो माता-पिता की मृत्यु के पश्चात्, बाल विवाह हो जाने के कारण उनका पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने किया।
2. सास के अपमानों का बदला गाँव वालों से लेने के लिए पहलवान बना।
3. श्याम नगर दंगल में चाँद सिंह नामक पहलवान को हराकर राज दरबार का पहलवान बना।
4. 15 वर्षों तक राज पहलवान लुट्टन सिंह रहने के बाद राजा की मृत्यु पश्चात् उसके पुत्र द्वारा राज दरबार से निकाल दिया गया।
5. पत्नी की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी। अतः अपने दोनों पुत्रों के साथ वापस गाँव आकर रहने लगा।
6. गाँव में कुश्ती का स्कूल चलाया।
7. महामारी की चपेट में अपने दोनों पुत्रों को खो दिया।
8. अंततः स्वयं महामारी की चपेट में आ गया।
प्रश्न 3. लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है ?
उत्तर- लुट्टन पहलवान ने किसी गुरु से कुश्ती की परंपरागत शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। वह बचपन में गाय का दूध पीकर कसरत करता था। इससे उसकी भुजाएँ मांसल और सुडौल हो गई, शरीर पहलवानों की भत दिखने लगा। लोग उससे डरने लगे अतः वह स्वयं को पहलवान समझने लगा किंतु ढोल की आवाज उसकी थाप लुट्टन के अंदर शक्ति का संचार करते अतः वह स्वयं ढोलक की ध्वनियों के आधार पर अपनी कुश्ती के दाँव-पेंच को निर्धारित कर पहलवानी करता था। ढोलक की प्रेरक शक्ति और उसके थाप के निर्देशनों का पालन करने के कारण वह ढोलक को ही गुरु मानता और पहलवानी से पूर्व व पश्चात् उसे प्रणाम करता इसलिए उसने कहा कि मेरा कोई गुरु पहलवान नहीं यही बोल है।
प्रश्न 4. गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा ?
उत्तर-गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन ढोल बजाता रहा क्योंकि उसे मालूम था कि दर्द से कराहते लोगों की निराशा में आशा का और शक्ति का संचार ढोल की आवाज से ही होता है। लोगों को अपने प्राण छोड़ने में तकलीफ कम होती है। रात्रि की विभीषिका को चुनौती देते हुए वह ढोलक बजाता था। पीड़ित लोगों के अंदर संजीवनी शक्ति भरने के कारण और परोपकार की भावना से वह अपने बेटों की मृत्यु के बाद भी ढोल बजाता रहा।
प्रश्न 5. ढोलक की आवाज का पूरे गाँव पर क्या असर होता था ?
उत्तर-ढोलक की आवाज़ रात के सन्नाटे को कम करती थी। मलेरिया और हैजे से अर्द्धमृत, औषधि उपचार पथ्य विहीन प्राणियों में संजीवनी शक्ति भरती थी। बच्चे-बूढ़े और जवानों की आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन शक्ति शून्य स्नायुओं में बिजली सी दौड़ जाती थी। जो महामारी के प्रकोप से बच्च नहीं पाते उन लोगों को आँख मूँदते समय कोई तकलीफ नहीं होती थी। वे मृत्यु से नहीं डरते थे।
प्रश्न 6. महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था ?
उत्तर- महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में निम्न अंतर था -
सूर्योदय-
सूर्योदय होते ही लोग कखखते कराहते अपने-अपने घरों से बाहर निकलकर अपने पड़ोसियों और आत्मियों को ढाढ़स देते थे। "अरे क्या करोगी रोकर, जो गया सो चला गया।" "भैया! मुर्दा बर मैं कब तक रखोगे।"
सूर्यास्त
सूर्यास्त होते ही लोग अपनी-अपनी झोपड़ियों में घुस जाते थे भी नहीं करते। उनकी बोलने की शक्ति भी जाती रहती थी। पास में दम तोड़ते हुए पुत्र को अंतिम बार बेटा ! कहकर पुकारने की भी हिम्मत माताओं में नहीं होती थी। रात्रि की इस विभीषिका को चुनौती देती तो सिर्फ एक पहलवान की ढोलक ।
प्रश्न 7. कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था-
(क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है ?
(ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?
(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं ?
उत्तर-
(क) पहले मनोरंजन के इतने साधन नहीं थे जितने आज हैं। अतः पहले लोग और राजा- महाराजाओं का मनोरंजन कुश्ती और पहलवानी देखने दिखाने में व्यतीत होता था। अब मनोरंजन के अनेक वैज्ञानिक व इलेक्ट्रॉनिक साधन हैं साथ ही अन्य आधुनिक खेल प्रतिस्पर्धा आ गई हैं। न राजाओं का राज है न ही दंगल और कुश्ती का महत्व है।
(ख) इसकी जगह अब क्रिकेट, घुड़सवारी, बैडमिंटन, टेनिस आदि खेलों ने ले ली है।
(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए कुश्ती और पहलवानी का वर्तमान जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण है, यह बताना आवश्यक है। विद्यालयों में और अन्य हेल्थ क्लबों में इसका प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। कई स्तरों में इसकी प्रतिस्पर्धाएँ आयोजित करने और विजेता को आजीविका के साधन उपलब्ध कराने से लोगों की रुचि इस दिशा में बढ़ेगी।
प्रश्न 8. आशय स्पष्ट कीजिए-
"आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।"
उत्तर- अमावस्या की काली अंधेरी रात में महामारी की विभीषिका में कोई उन पीड़ित लोगों की मदद करने चाहता तो उसकी भी शक्ति क्षीण हो जाती और वह आधे रास्ते में ही हौसला खो देता था। ऐसे में उसकी भावुक सहानुभूति की कोशिश पर उसकी बिरादरी के अन्य लोग उसकी असफलता पर हँसकर मजाक उड़ाते थे।
प्रश्न 9. पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- मानवीकरण के अंश निम्नलिखित हैं-
(1) अंधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी।
आशय-
रात का मानवीकरण किया गया है। ठंड में ओस रात के आँसू जैसे प्रतीत होते हैं। वे ऐसे लगते हैं मानो गाँव वालों की पीड़ा पर रात आँसू बहा रही है।
(2) तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे। आशय-तारों को हँसते हुए दिखाकर उनका मानवीकरण किया गया है। वे मजाक उड़ाते प्रतीत होते हैं।
(3) ढोलक लुढ़की पड़ी थी।
आशय
यहाँ पहलवान को मृत्यु का वर्णन है। पहलवान व ढोलक का गहरा संबंध है। ढोलक का बजना पहलवान के जीवन का पर्याय है। पाठ के आस-पास
प्रश्न 1. पाठ में मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आप ऐसी किसी अन्य आपद स्थिति की कल्पना करें और लिखें कि आप ऐसी स्थिति का सामना कैसे करेंगे / करेंगी ?
उत्तर - वर्तमान समय में डेंगू और स्वाइन फ्लू का प्रकोप होता है। अतः ऐसे समय में मैं- (1) इन दोनों ही बीमारियों के होने के कारण की जानकारी दूँगी। (2) रोगियों को उचित इलाज व परहेज की जानकरी दूंगी। (3) घर की स्वच्छता व संक्रमण से बचाव के बारे में बताना। (4) गरीबों को निःशुल्क चिकित्सा के लिए मार्गदर्शन देना।
प्रश्न 2. "ढोलक की थाप भृतगाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी" कला से जीवन केसंबंध को ध्यान में रखते हुए चर्चा कीजिए।
उत्तर- कला का जीवन से गहरा और अटूट संबंध है। कला चाहे संगीत की हो या ललित की दोनों हो व्यक्ति के मनोभावों को प्रकट करती है। संगीत कला से जुड़े लोग न केवल अपने हुनर को व्यक्त करते हैं अपितु वे दर्शकों और श्रोताओं के निराश और उत्साहहीन जीवन में आशाओं का संचार करते हैं। ललित कला जोवन और प्रकृति के संबंधों को उकेरते हुए अपनी कला से रंगीन करती है वहीं संगीत अपने वाद्य यंत्रों के मधुर तानों, बोलों, ध्वनियों से मानव और प्रकृति के बीच रंगीन जीवन के सपने संजोती है।
प्रश्न 3. चर्चा करें- कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज नहीं है।
उत्तर- कलाएँ केवल सरकारी सहायता से नहीं फलती-फूलतीं। ये कलाकार के निष्ठावान, मेहनत व समर्पण से विकसित होती है। सामान्य लोग भी कलाकारों को धन-दान, सराहना, प्रसिद्धि देकर उनका विकास करते हैं। लोकतंत्र में आवश्यक है कि ये कलाएँ जनता के हाथों में फले-फूलें ।
पहलवान की ढोलक प्रश्न उत्तर (प्रश्नोत्तर)
प्रश्न 1. हर विषय क्षेत्र, परिवेश आदि के कुछ विशिष्ट शब्द होते हैं पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का बहुतायत प्रयोग हुआ है। उन शब्दों की सूची बनाइए। साथ ही नीचे दिए गए क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोई पाँच-पाँच शब्द बताइए - (1) चिकित्सा, (2) क्रिकेट, (3) न्यायालय, (4) या अपनी पसंद का कोई क्षेत्र
उत्तर- (1) चिकित्सा-अस्पताल, नर्स, डॉक्टर, टीका, पथ्य, औषधि, जाँच। (2) क्रिकेट बैट, गेंद विकेट, रन, छक्का, चौका, क्लीन बोल्ड आउट। (3) न्यायालय - जज, वकील, नोटिस, जमानत, अपील, साक्षी, गवाह, केस । (4) शिक्षा -पुस्तक, अध्यापक, स्कूल, विद्यार्थी, बोर्ड, परीक्षा, पुस्तकालय ।
प्रश्न 2. पाठ में अनेक अंश ऐसे हैं जो भाषा के विशिष्ट प्रयोगों की बानगी प्रस्तुत करते हैं। भाषा का विशिष्ट प्रयोग न केवल भाषाई सर्जनात्मकता को बढ़ावा देता है बल्कि कथ्य को भी प्रभावी बनाता है। यदि उन शब्दों वाक्यांशों के स्थान पर किन्हीं अन्य का प्रयोग किया जाए तो संभवतः वह अवगत चमत्कार और भाषिक सौन्दर्य उदघाटित न हो सके। कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं-
(1) फिर बाज की तरह उस पर टूट पड़ा।
(2) राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए।
(3) पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी। इन विशिष्ट भाषा प्रयोगों का प्रयोग करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर- रामपुर में दंगल हो रहा था। वहाँ 'शेर का बच्चा' दूसरों को ललकार रहा था, तभी मानसिंह ने चुनौती दी। यह सुनकर शेर का बच्चा उस पर बाज की तरह टूट पड़ा। मानसिंह ने दाँव काटा तथा उसे जमीन सुधा दी। राजा साहब उसकी बहादुरी पर प्रसन्न हुए तथा उन्होंने उसे दरबार में रख लिया। राजा साहब की स्नेह- दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। मानसिंह ने सारे राज्य में नाम कमाया किंतु पहलवान की स्त्री दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई।
प्रश्न 3. जैसे क्रिकेट की कमेंट्री की जाती है, वैसे ही इसमें कुश्ती की कमेंट्री की गई आपको दोनों में क्या समानता और अंतर दिखाई पड़ता है ?
उत्तर-समानता- क्रिकेट की कमेंट्री और कुश्ती की कमेंट्री में निम्न समानता दिखाई पड़ता है-
1. दोनों में खिलाड़ियों का परिचय दिया जाता है।
2. दोनों में हार-जीत बताई जाती है।
3. दोनों में खेल की स्थिति का वर्णन किया जाता है।
असमानता - क्रिकेट की कमेंट्री और कुश्ती की कमेंट्री में निम्न असमानता दिखाई पड़ता है- 1. क्रिकेट में बल्लेबाज, क्षेत्ररक्षक व गेंदबाजी का वर्णन होता है, जबकि कुश्ती में दाँव-पेंच का वर्णन होता है।
2. क्रिकेट में स्कोर बताया जाता है, जबकि कुश्ती में चित या पट
3. कुश्ती में प्रशिक्षित कॉमेंटेटर निश्चित नहीं होते जबकि क्रिकेट में प्रशिक्षित कॉमेंटेटर होते हैं।
पहलवान की ढोलक प्रश्न उत्तर (प्रश्नोत्तर) महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. पहलवान लुट्टन के सुख-चैन भरे दिनों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर - पहलवान लुट्टन के सुख-चैन के दिन तब शुरू हुए जब उसने चाँद सिंह को कुश्ती में हराकर अपना नाम रोशन किया। राजा ने उसे दरबार में रखा। इससे उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन व राजा की स्नेह - दृष्टि मिलने से उसने सभी नामी पहलवानों को जमीन सुधा दी। अब वह दर्शनीय आदमी बन गया। मेलों में वह लंबा चोंगा पहनकर तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मस्त हाथी की तरह चलता था। हलवाई उसे मिठाई खिलाते थे ।
प्रश्न 2. 'पहलवान की ढोलक' कहानी के प्रारंभ में चित्रित प्रकृति का स्वरूप कहानी की भयावहता की ओर संकेत करती है, इस कथन पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर- "पहलवान की ढोलक" कहानी का आरंभ महामारी के दिनों से होता है। लेखक ने महामारी की भयंकरता दिखाने के लिए प्रकृति का अत्यंत भयानक चित्रण किया है। रात में गीदड़ों की चीत्कार, उल्लूओं की आवाजें कुत्तों का रोना, लाशों का उठना, लोगों की करुण चीत्कार श्मशान जैसा दृश्य उपस्थित करते हैं। लेखक महामारी का वातावरण चित्रित करने में सफल रहा है।
प्रश्न 3. लुट्टन के राज पहलवान लुट्टन सिंह बन जाने के बाद की दिनचर्या पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- लुट्टन के राज पहलवान लुट्टन सिंह बन जाने के बाद उसकी दिनचर्या बहुत नियमित हो गई। वह रोज सबेरे उठकर दंगल पहुँचता था। वहाँ ढोल बजा-बजाकर अपने दोनों बेटों से कसरत करवाता था। दोपहर के समय वह लेटे-लेटे बेटों को सांसारिक व व्यावहारिक ज्ञान दिया करता था। वह मस्ती में आकर बाजारों में और मेलों में बेफिक्र होकर घूमा करता था।
प्रश्न 4. “लुट्टन पहलवान की ढोलक गाँव के असहाय और मरणासन्न लोगों को मरने का हौसला देती है।" इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर- लुट्टन पहलवान की ढोलक बजती है, तो गाँव के मरीज और बेचारे लोग को उत्साह मिलता है। उन्हें मौत के मुँह में भी हौसला मिलता है, हिम्मत मिलती है। कहते हैं लोग शेर के आने पर उतना नहीं डरते, जितना कि उसके आने की आशंका से डरते हैं। महामारी का आना आशंका थी, जिससे सभी गाँव वाले भयभीत थे। पहलवान की ढोलक को सुनकर लोग इसी आशंका को भूल जाते थे। अतः उन्हें हौसला मिलता था।
प्रश्न 5. ‘पहलवान की ढोलक' पाठ का एक संदेश यह भी है कि लोक कलाओं को संरक्षण दिया जाना चाहिए, अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर— 'पहलवान की ढोलक' पाठ से हमें स्पष्ट संदेश मिलता है कि लोककलाएँ स्वयं अपने बल पर नहीं जी पातीं। उनका विकास करने के लिए सामाजिक या सरकारी सहायता आवश्यक होती है। यदि पहलवान, खिलाड़ी, गीतकार, गायक, नर्तक पेट भरने की उधेड़बुन में लगे रहे तो वे अपनी कला का विकास नहीं कर पाते। इन कलाओं को देखकर आनंद सभी को मिलता है किंतु सभी लोग इसके लिए मूल्य नहीं चुकाते। अतः लोककलाओं को आर्थिक संरक्षण मिलना चाहिए जिससे वे अपना पूरा ध्यान अपनी कला को निखारने में लगा सकें।
प्रश्न 6. राजा साहब ने लुट्टन को क्यों सहारा दिया था ? अंत में उसकी दुर्गति होने का क्या कारण था ?
उत्तर - राजा साहब ने लुट्टन को इसलिए सहारा दिया था क्योंकि उसने चाँद सिंह जैसे नामी पहलवान को चारों खाने चित किया था। ऐसा करके न केवल उसने अपने राजा का नाम ऊंचा किया था बल्कि शक्तिशाली होने का प्रमाण भी दिया था। अंत में लुट्टन की दुर्गति इसलिए हुई क्योंकि राजा के मरते ही उनके बेटे ने पहलवान को राजकीय सहायता देना बंद कर दिया। अब पहलवान दो बच्चों की मजदूरी पर ही गुजर-बसर करने लगा। इस प्रकार वह साधनहीन होता चला गया, उसका वैभव नष्ट हो गया।
प्रश्न 7. ‘पहलवान की ढोलक' कहानी में किस प्रकार पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था के टकराव से उत्पन्न समस्या को व्यक्त किया गया है ? लिखिए।
उत्तर—- 'पहलवान की ढोलक' कहानी में पुरानी व्यवस्था और नई व्यवस्था के टकराव से उत्पन्न समस्या यह है-
1. पुरानी व्यवस्था में कलाकारों और पहलवानों को राजाओं का आश्रय एवं संरक्षण प्राप्त था। वे शाही खर्चे पर जीवित रहते थे पर नई व्यवस्था में ऐसा न था।
2. पुरानी व्यवस्था में राज दरबार और जनता द्वारा इन कलाकारों को मान-सम्मान दिया जाता था, पर नई व्यवस्था में उन्हें सम्मान देने का प्रचलन नहीं था।
प्रश्न 8. “ निर्धन, साधनहीन और महामारी ग्रस्त गाँव में पहलवान की ढोलक मरने वालों को हौसला- हिम्मत देती थी।" इस कथन के आलोक में गाँव की बेबसी का चित्रण कीजिए।
अथवा
'पहलवान की ढोलक' कहानी के आधार पर ग्रामीणों की गरीबी और असहायता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर — गाँव में निर्धनता और साधनहीनता इतनी अधिक थी कि वहाँ कोई ठिकाने का अस्पताल नहीं था -
ही योग्य चिकित्सा का प्रबंध था और न ही लोगों के पास इतने पैसे थे कि वे योग्य डाक्टरों से इलाज करा सकें। अतः जब महामारी आई तो लोग मरने के डर से दुबके हुए थे। उन्हें दवा-दारु का सहारा तो था नहीं, केवल पहलवान की ढोलक ही उन्हें कुछ हिम्मत देती थी।
प्रश्न 9. 'पहलवान की बोलक' अध्याय में लुट्टन सिंह की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए। उत्तर- लुट्टन सिंह के चरित्र की विशेषताएँ-
(i) वह वीर, साहसी तथा दृढ़ निश्चय वाला पहलवान था
(ii) वह संकटों से घबराता नहीं था, बल्कि हिम्मत से उसका सामना करता था।
प्रश्न 10. 'पहलवान की ढोलक' अध्याय में चाँद सिंह को शेर के बच्चे की उपाधि कैसे मिली ?
उत्तर- चाँद सिंह ने दंगल में तीन दिनों में ही अपनी आयु के सभी पंजाबी और पठानी पहलवानों के गिरोह में अपनी जोड़ी और उम्र के सभी पट्ठों पछाड़ दिया था, इसलिए उसे 'शेर के बच्चे' की उपाधि मिली थी।
प्रश्न 11. 'पहलवान की ढोलक' अध्याय में लुट्टन सिंह ने विजयी होने के पश्चात् किसे और क्यों सबसे पहले प्रणाम किया ?
उत्तर— 'पहलवान की ढोलक' अध्याय में लुट्टन सिंह ने विजयी होने के पश्चात् सबसे पहले ढोल को प्रणाम किया क्योंकि लुट्टन सिंह ढोल को ही अपना गुरु मानता था और उसने ढोल के ही दम पर चाँद सिंह को हराया था।
प्रश्न 12. हिन्दी साहित्य जगत में आंचलिक उपन्यास का प्रारंभ किस उपन्यास से हुआ और उसके कृतिकार कौन थे ?
उत्तर- हिन्दी साहित्य जगत में आंचलिक उपन्यास का प्रारंभ 'मैला आँचल' उपन्यास से हुआ और उसके कृतिकार फणीश्वर नाथ रेणु थे।