रज़िया सज्जाद जहीर लेखिका परिचय, नमक पाठ का सारांश
रज़िया सज्जाद जहीर लेखिका परिचय
जन्म - 15 फरवरी, 1917
मृत्यु - 18 दिसम्बर, 1979
रज़िया सज्जाद जहीर जीवन परिचय -
- इनका जन्म 15 फरवरी, 1917 को राजस्थान के अजमेर शहर में हुआ था। मृत्यु 18 दिसम्बर, 1979 को हुआ।
शिक्षा-
- इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा से लेकर कला स्नातक तक की शिक्षा घर पर रहकर ही प्राप्त की। स्नातकोत्तर की परीक्षा इलाहाबाद से उर्दू में उत्तीर्ण की।
व्यक्तित्व -
- सामाजिक सद्भाव, धार्मिक सहिष्णुता और आधुनिक संदर्भों में बदलते पारिवारिक मूल्यों को उभारने में सफल रही।
रचनाएँ -
- जर्द गुलाब (उर्दू कहानी संग्रह), कहानियाँ मेहमान रहमत या जहमत, सुल्तान सलाहउद्दीन बादशाह।
भाषागत विशेषताएँ
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- इनकी भाषा सहज, सरल, मुहावरेदार है, कुछ कहानियों में देवनागरी लिप्यंक्तरित हो चुकी है। उर्दू कथा साहित्य में लेखनी अग्रसर रही।
सम्मान -
- सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, उर्दू अकादमी, उत्तर प्रदेश, अखिल भारतीय लेखिका संघ अवार्ड, मुनाफीन अवार्ड से सम्मानित.
नमक पाठ का सारांश
- नमक कहानी भारत और पाकिस्तान विभाजन के द्वारा विस्थापित हुए लोगों के दिलों का हाल बयाँ करने वाली मार्मिक कहानी है। इस कहानी की प्रमुख पात्र सफ़िया ने अपने किरदार में अनेक मजहबी प्रश्नों को खड़ा किया है।
- इस कहानी की प्रमुख पात्र सफ़िया अपने पड़ोस के घर में कीर्तन पर जाती है जहाँ एक अधेड़ उम्र की सिख महिला जो और पहनावे में उसकी स्वर्गवासी माँ की झलक दे जाती है। अतः सफ़िया उस सिख बीबी को बड़ी मासूमियत से देखती है। प्रत्युत्तर में सिख बीवी को वात्सला दृष्टि सफ़िया पर पड़ते ही वह अपनी बहू से पूछ बैठती है। बहू ने उन्हें बताया कि ये मुसलमान है और कल ही लाहौर जा रही है अपने भाइयों से मिलने लाहौर का नाम सुनते ही सिख बीबी सफ़िया के पास आ बैठती है। एक ओर कीर्तन चलता रहा दूसरी और सिख बीबी और सफ़िया लाहौर शहर और विभाजन की हाले दिल वय करती रहीं।
- कीर्तन की समाप्ति पर सफ़िया सिख बीवी से कोई सौगात लाहौर से मँगाने को आदेश करने को कहती है तभी सिख बीबी ने थोड़ी असमंजस्ता से लाहौरी नमक लाने का आदेश दे देती है।
- सगे संबंधियों, दोस्तों, भाइयों के बीच पन्द्रह दिन किस तरह गुजरे पता ही नहीं चला। दोस्तों व अपने रिश्तेदारों की सौगातें कहाँ रखें कैसे पैक करें इसी उहापोह में उसे नमक की उस बादामी पुड़िया को रखने की समस्या आ पड़ी। उसने अपने पुलिस अफसर भाई से पूछा "क्यों भैया, नमक ले जा सकते हैं ?" वह हैरान होकर बोला "नमक ? नमक तो नहीं ले जा सकते, गैर-कानूनी है। आप लोगों के हिस्से में तो हमसे बहुत ज्यादा नमक आया है।"
- वह झुंझला कर बोली "मैं हिस्से की बात नहीं कर रही हैं, मुझे तो लाहौरी नमक चाहिए मेरी माँ ने मंगवाया है।"
- माँ का जिक्र भाई की समझ में नहीं आया क्योंकि माँ तो बँटवारे से पहले ही मर चुकी थी।
- कस्टम की प्रक्रिया को भाई ने बड़ी नरमी से सफ़िया को समझाने का प्रयास किया। किन्तु सफ़िया ने बिगड़कर कहा कि "मैं क्या चोरी से ले जाऊँगी? मैं तो दिखा के ले जाऊँगी।"
- भाई-बहन के बीच अनेक सवालों जवाबों के बीच पुलिस अफसर भाई ने कस्टम के सख्त कानून का हवाला दिया तो भावुक सफ़िया की आँखों से आँसू बहने लगा और भाई सिर हिलाकर चुप हो गया।
- अगले दिन 2 बजे सफ़िया को रवाना होना था। उसने अपने सामानों को समेट कर पैकिंग शुरू की। उसका गुस्सा उत्तर चुका था। भावना के स्थान पर बुद्धि ने काम करना शुरू किया। अंततः उसने कीनुओं की टोकरी के बोध नमक की पुड़िया रखने का सोचा क्योंकि उसने आते वक्त देखा था कि लोग कीनू, केले ला- ले जा रहे थे। और फलों की टोकरियों की जाँच नहीं हो रही थी। अतः उसे नमक की पुड़िया कीनू की टोकरी की तह में रख दो और रात के डेढ़ बजे वह अपने बचपन के दिनों को याद करती अतीत में खो गई। आहिस्ता-आहिस्ता उसकी आँखें बंद हो गई और वह लाहौर शहर को स्वप्न में भ्रमण करने लगी। अचानक उसकी आँखें खुलीं तो उसका हाथ कोनुओं की टोकरी पर जा पड़ा जिनको देते वक्त उसके एक दोस्त ने कहा था "यह हिन्दुस्तान पाकिस्तान की एकता का मेवा है।"
- फर्स्ट क्लास के वेटिंग रूम में बैठी सफ़िया का सामान कस्टम जाँच के लिए बाहर निकाला लाने लगा तब सफिया ने फैसला लिया कि वह मुहब्बत का यह तोहफा चोरी से नहीं कस्टम वालों को दिखाकर ले जाएगी। उसने जल्दी से पुड़िया निकालकर अपने पर्स में रख लिया। सफ़िया ने कस्टम अफसर से औपचारिक बातचीत के पश्चात् नमक की पुड़िया पर्स से निकालकर उसके सामने रख दिए। और सब कुछ बता दिया। कस्टम अधिकारी ने पुड़िया को उठाकर अच्छी तरह लपेटा और सफ़िया के पर्स में रखते हुए कहा "मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।" सफ़िया अपने दोस्तों व रिश्तेदारों को हसरत भरी निगाहों से देखती रही और रेल कब लाहौर से अमृतसर आ गई पता ही नहीं चला। अमृतसर में सफ़िया का सामान पुनः कस्टम से होकर गुजरा। वहाँ उसने कस्टम अधिकारी जो सूरत से बंगाली लगता था, से कहा "देखिए, मेरे पास थोड़ा-सा नमक है।" फिर उसने नमक की पुड़िया उनकी ओर बढ़ाते हुए सब कुछ कह सुनाया। कस्टम अधिकारी ने सफ़िया की प्लेटफार्म के एक सिरे के कमरे में ले गया और वहाँ उसने चाय की चुस्कियों के बीच अपने मेज के दराज से एक किताब निकाल कर सफ़िया के सामने रख दी। जिसके बाईं ओर नजरूल इस्लाम की तस्वीर थी और लिखा था " शमसुल इस्लाम की तरफ से सुनील दास गुप्त को प्यार के साथ ढाका 1946"। सफ़िया ने प्रश्न किया "तो आप क्या ईस्ट बंगाल के हैं ?", "तो आप यहाँ कब आए?" उस कस्टम अधिकारी ने बताया कि उसका ढाका है और जब वह बारह-तेरह वर्ष का था तब उसके मित्र ने उसकी सालगिरह पर भेंटस्वरूप वह किताब दो थी। उसने बताया कि वह कलकत्ता में रहा, पढ़ा और नौकरी मिल गई, पर वतन आते-जाते रहा। 'वतन' के नाम पर सफ़िया हैरान हो गई और कहा कि मेरा वतन ढाका है। कस्टम अधिकारी ने डाभ की बात करते हुए अपने वतन की जमीन और पानी की प्रशंसा की और नमक की पुड़िया सफ़िया के बैग में रख दी। सफ़िया अमृतसर के पुल पर चढ़ती हुई सोच रही थी कि किसका वतन कहाँ है कस्टम के इस तरफ या उस तरफ।