MP Board Hindi Question Answer
डायरी के पन्ने अभ्यास के प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. "यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने वाली एक आवाज है। एक ऐसी आवाज, जो किसी संत या कवि की नहीं बल्कि एक साधारण लड़की की है।" इल्या इहरनबुर्ग की इस टिप्पणी के संदर्भ में ऐन फ्रेंक की डायरी के पठित अंशों पर विचार करें।
उत्तर- "यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने वाली एक आवाज है। एक ऐसी आवाज, जो किसी संत या कवि की नहीं बल्कि एक साधारण लकड़ी की है।" इल्या इहरनबुर्ग की यह टिप्पणी निसंदेह सत्य है क्योंकि यह संतों के सद्विचार, नैतिक कथन और कवि की कल्पनाओं और भावनाओं से परे एक किशोर लड़की के प्रत्यक्ष अनुभव की दासताँ है जिसमें यहूदियों पर होने वाले अत्याचार, भूख, चोरी, बीमारी, लाचारी, दहशत के दौर में एकांतवास में रहना अत्यंत दुखदाई है। भूमिगत जीवन जीने की लाचारी, प्रकृति के सानिध्य से दूर सूर्य व चंद्रमा के प्रकाश से वंचित जीवन जीना कालापानी की सजा से कम नहीं था। भावी जीवन के सुनहरे सपने बुनने के दिनों में किशोर मन के अकेलेपन की पीड़ा, अनगिनत यातनाएँ, भय और गोला बारूद के फटने की हर क्षण आशंका न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से व्यक्ति को हर वक्त भयातंकित करती है। इन सब यातनाओं को झेलने वाले साठ लाख लोगों के अनुभव को एक मात्र 13 वर्ष की लड़की ने अनुभव कर अपने मन के दुःख को साझा करने के उद्देश्य से खिलौने की गुड़िया किट्टी को संबोधित कर बयाँ किया है जो निसंदेह पूरे यहूदियों की आवाज बन गई।
प्रश्न 2. "काश कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता। अफसोस, ऐसा व्यक्ति मुझे अब तक नहीं मिला।" क्या आपको लगता है कि ऐन के इस कथन में उसके डायरी लेखन का कारण छिपा है ?
उत्तर- यूँ तो किशोर मन अनेक भावनाओं, कल्पनाओं, विचारों के ज्वार-भाटा का समंदर होता है। समान परिस्थितियों में ही उनके मन-मस्तिष्क में विचार उद्वेलित होते रहते हैं जब स्थिति यातनाओं व आतंक से भरी हो तो वह भयावह हो जाती है। ऐसे समय में 13 वर्षीय ऐन की भावनाओं को गंभीरता से समझने को आवश्यकता थी। किन्तु दुर्भाग्यवश उसकी मासूम भावनाओं को समझने के बजाए लोग उसे घमंडी, अक्खड़ नाक घुसेडु और तीसमार खाँ मानते थे। ऐसी संज्ञाएँ देने के पीछे विशेष रूप से दो लोग मिसेज वानदान और डसेल को जड़ बुद्धि थी जो स्वयं अक्खड़ थे। बाबा आदम के जमाने के अनुशासन मास्टर मिस्टर डिसेल थे। मानसिक परेशानी से गुजर रहे किशोरों को समझने की बजाए उसे लंबे-लंबे भाषणों को उबाऊ श्रृंखला देते थे। इतना ही नहीं वे चुगली लगाकर ऐन की मम्मी से फटकार लगवाते हैं। सारा दिन मीन-मेख निकाल कर हर तरफ से दुत्कारा-फटकारा जाए तो भूमिगत जिंदगी की यातनाओं को झेलना और भी कठिन हो जाता है। अत: ऐसी विकट परिस्थितियों में स्वयं को अकेलेपन का शिकार महसूस कर ऐन ने अपनी गुड़िया किट्टी को ही हमदर्द मानकर अज्ञातवास के अनुभवों को डायरी के माध्यम से साझा करती है।
प्रश्न 3. 'प्रकृति-प्रदत्त प्रजनन-शक्ति के उपयोग का अधिकार बच्चे पैदा करें या न करें अथवा कितने बच्चे पैदा करें-इसकी स्वतंत्रता स्त्री से छीनकर हमारी विश्व-व्यवस्था ने न सिर्फ स्त्री को व्यक्तित्व-विकास के अनेक अवसरों से वचित किया है बल्कि जनाधिक्य की समस्या भी पैदा की हैं। ऐन की डायरी के 13 जनू, 1944 के अंश में व्यक्त विचारों के संदर्भ में इस कथन का औचित्य ढूँढ़ें।
अथवा, ऐन फ्रैंक ने अपनी डायरी में स्त्रियों के बारे में क्या कहा है ? उसकी समीक्षा करते हुए बताइए कि आज में कितना परिवर्तन आया है ?
उत्तर- "प्रकृति ................... भी पैदा की है।" ऐन के इस अंश में पुरुष एकाधिकार और स्त्री- पुरुष असफलता पर प्रकाश डाला है। पुरुष प्रधान समाज में स्त्री से स्वयं को अधिक शारीरिक क्षमता और पेशा अख्तियार करने वाला समझकर आरंभ से ही स्त्रियों पर शासन पुरुषों ने जमकर किया। इन सब के पीछे प्रमुख वजह अशिक्षा थी स्त्रियों को शिक्षा से वंचित रखकर उन्हें हर क्षेत्र में पीछे रखकर उनका दमन किया जाता रहा है। निसंदेह बच्चा जनने का सौभाग्य प्रकृति ने स्त्री को ही दिया है किन्तु कितना जने इसका अधिकार पुरुषों ने उनसे छीन लिया था। 'मौत के खिलाफ मनुष्य' नामक पुस्तक के माध्यम से ऐन ने लेखक श्री पोल दे कुइफ जी के विचारों से पूर्णत: सहमत होकर कहती हैं कि किसी युद्ध में सैनिकों को जिन तकलीफों, पीड़ा, बीमारी और यंत्रणाओं से गुजरना पड़ता है उससे कहीं अधिक तकलीफें औरतों को बच्चा जन्म देते समय झेलना पड़ता है अतः जिस सम्मान, पुरस्कार और पूजा के हकदार सैनिक हैं उससे अधिक सम्मान, पुरस्कार और पूजा के योग्य स्त्रियों को मानना चाहिए। यह सब शिक्षा, काम और प्रगति द्वारा ही संभव है जो वर्तमान समय में कुछ देशों में देखने को मिल रहा है।
प्रश्न 4. "ऐन की डायरी अगर एक ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज है, तो साथ ही उसके निजी सुख-दुख और भावनात्मक उथल-पुथल का भी। इन पृष्ठों में दोनों का फर्क गिर गया है।" इस कथन पर विचार करते हुए अपनी सहमति या असहमति तर्कपूर्वक व्यक्त कीजिए।
उत्तर- "ऐन की डायरी अगर एक ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज है, तो साथ ही उसके निजी सुख-दुख और भावनात्मक उथल-पुथल का भी। इन पृष्ठों में दोनों का फर्क गिर गया है।" इस कथन से मैं पूर्णतः सहमत हूँ। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जर्मनी व डचों द्वारा यहूदियों पर किए जाने वाले अत्याचारों, यातनाओं, लूट-पाट, बारूदों की बौछार, अमानवीय कृत्य के कारण यहूदियों को दहशत से भरा, भूख-बीमारी, गरीबी, शारीरिक व मानसिक तनाव, आदि से होकर गुजरना पड़ रहा था। उन्हें अज्ञातवास, एकांतवास या भूमिगत होना उनकी मजबूरी थी जो उनके निजी सुख-दुःख को बयाँ करती है साथ ही भावनात्मक उथल-पुथल उन युवा व किशोर बच्चों को शिकार बना रहा था जो शारीरिक व मानसिक विकास के परिवर्तन के दौर से गुजर रहे थे उनकी स्थिति ज्यादा दर्दनाक थी। एन, पीटर, मार्गोट वो किशोर बच्चे हैं जिन्हें युद्ध की आकस्मिक घटनाओं ने झकझोर कर रख दिया। इनमें सबसे ज्यादा संवेदनशील बच्ची ऐन प्रभावित होती है जो किशोरावस्था की दहलीज पर पाँव रखने वाली सबसे छोटी व अकेली है। अन्य बड़े लोग उसकी भावनाओं और विचारों को समझने की बजाए उसे हमेशा डाँट फटकार कर दबाने का प्रयास करते हैं। बाल सुलभ मनोवृत्ति के कारण यदि वह विरोध करे तो उसे घमंडी, नकचढ़ी आदि अनेक अपमानजनक शब्दों से अपमानित किया जाता है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि यह ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज है।
प्रश्न 5. ऐन ने अपनी डायरी 'किट्टी' (एक निर्जीव गुड़िया) को संबोधित चिट्ठी की शक्ल में लिखने की जरूरत क्यों महसूस की होगी ?
अथवा, ऐन फ्रेंक ने अपनी डायरी 'किट्टी' को संबोधित चिट्ठी के रूप में क्यों लिखी होगी ?
उत्तर-
ऐन अपनी डायरी 'किट्टी' को सम्बोधित कर इसलिए लिखी क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, एकांतवास में रहते हुए उसने जिस समस्याओं, परेशानियों, जरूरतों और अकेलेपन का अनुभव किया था वह उस उम्र की बच्ची के लिए एक आश्चर्यजनक दर्दनाक, भयावह, दहशतभरी थी। इन परिस्थितियों को स्वीकार कर पाना कठिन था। ऐसे कठिन दौर में वह अपने मन में उठने वाले विचारों, प्रश्नों, भावनाओं को किसी से कहना, पूछना चाहती थी किन्तु उसे बच्ची समझ कर लोग उसकी भावनाओं को गंभीरता से नहीं लेते थे। अतः उसने अपने एकाकीपन में बातों, विचारों को साझा करने का माध्यम डायरी को बनाया और संबोधित करने के लिए अपनी प्यारी गुड़िया किट्टी को चुना।
डायरी के पन्ने महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. ऐन फ्रैंक कौन थी ? उसकी डायरी क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर- ऐन फ्रैंक एक यहूदी परिवार की लड़की थी। हिटलर के अत्याचारों से उसे भी अन्य यहूदियों की तरह अपना जीवन बचाने के लिए दो वर्ष से अधिक समय तक अज्ञातवास में रहना पड़ा। इस दौरान उसने अज्ञातवास की पीड़ा, भय, आतंक, प्रेम, घृणा, हवाई हमले का डर, किशोरावस्था के सपने, अकेलापन, प्रकृति के प्रति संवेदना, युद्ध की पीड़ा आदि का वर्णन अपनी डायरी में किया है। यह डायरी यहूदियों के खिलाफ अमानवीय दमन का पुख्ता सबूत है। इस कारण यह डायरी प्रसिद्ध है।
प्रश्न 2. ऐन फ्रैंक की डायरी के आधार पर नाजियों के अत्याचारों पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर- ऐन फ्रैंक की डायरी से ज्ञात होता है कि दूसरे विश्वयुद्ध में नाजियों ने यहूदियों को अनगिनत यातनाएँ दी तथा उन्हें भूमिगत जीवन जीने के लिए मजबूर कर दिया था। डर इतना था कि ये लोग सूटकेस लेकर भी सड़क पर नहीं निकल सकते थे। उन्हें दिन में सूर्य व रात में चंद्रमा देखना भी वर्जित था। इन्हें राशन की कमी रहती थी तथा बिजली का कोटा भी था। ये फटे-पुराने कपड़े और घिसे-पिटे जूतों से काम चलाते थे।
प्रश्न 3. अपने मददगारों के बारे में ऐन क्या कहती है ?
उत्तर- अपने मददगारों के बारे में लिखते समय ऐन कहती हैं कि लोग जान जोखिम में डालकर दूसरे के लिए काम करते हैं। ऐन को आशा है कि हमारे मददगार हमें सुरक्षित किनारे तक ले आएँगे। मददगारों के विषय में ऐन कहती है कि "उन्होंने कभी नहीं कहा कि हम उनके लिए मुसीबत हैं। वे रोजाना ऊपर आते हैं पुरुषों से कारोबार और राजनीति की बात करते हैं। महिलाओं से खाने और युद्ध के समय की मुश्किलों की बात करते हैं। बच्चों से किताबों और अखबारों की बात करते हैं। वे हमेशा खुश दिल दिखने की कोशिश करते हैं, जन्मदिनों और दूसरे मौकों पर फूल और उपहार लाते हैं। हमेशा हर संभव मदद करते हैं। हमें यह बात कभी नहीं भूलनी चाहिए। ऐसे में जब दूसरे लोग जर्मनों के खिलाफ युद्ध में बहादुरी दिखा रहे हैं, हमारे मददगार रोजाना अपनी बेहतरीन भावनाओं और प्यार से हमारा दिल जीत रहे हैं।"
प्रश्न 4. 'डायरी के पन्ने' पाठ के आधार पर ऐन के व्यक्तित्व की तीन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- 'डायरी के पन्ने' पाठ के आधार पर ऐन के व्यक्तित्व की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. नारी पीड़ा की समझ - ऐन स्त्रियों की दयनीय दशा से चिंतित है। वह स्त्री जीवन के अनुभव को अतुलनीय बताती है। यह चाहती है कि स्त्रियों को पुरुषों के बराबर सम्मान दिया जाए। यह स्त्री विरोधी पुरुषों व मूल्यों की भर्त्सना करना चाहती है।
2. चिंतक व मननशील- ऐन का बौद्धिक स्तर बहुत ऊँचा है। वह नस्लवादी नीति के प्रभाव को प्रस्तुत करती है। उसकी डायरी भोगे हुए यथार्थ की उपज है। वह अज्ञातवास में भी अध्ययन करती है।
3. संवेदनशील- ऐन एक संवेदनशील लड़की है। उसे बात-बात पर सबसे डाँट पड़ती है। क्योंकि उसकी भावनाओं को समझने वाला कोई नहीं है। वह लिखती भी है- "काश कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ जाता।' अपनी डायरी में अपनी गुड़िया को वह पत्र लिखती है।
प्रश्न 5. हिटलर और सैनिकों की बातचीत का मुख्य विषय क्या होता था ?
उत्तर- हिटलर और उसके सैनिकों की जो बातचित रेडियो पर प्रसारित की जाती थी, उसका मुख्य विषय होता था- युद्ध में घायल हुए सैनिकों का हाल-चाल। हिटलर घायल सैनिकों से उनका हाल-चाल पूछते थे। वे उनके युद्ध स्थल का नाम और घायल होने का कारण पूछते थे। उत्तर में घायल सैनिक बड़े उत्साह से अपना नाम, घायल होने का स्थान और घायल होने का कारण बताते थे। वे अपनी वीरगाथा को बड़े गर्व और उत्साह से बताया करते थे।
प्रश्न 6. ऐन ने अपनी डायरी में किट्टी को क्या-क्या जानकारियाँ दी हैं ? 'डायरी के पन्ने' पाठ के आलोक में बताइए ।
उत्तर- ऐन ने अपनी डायरी में किट्टी को अपने अज्ञातवास में भोगे हर कष्ट की जानकारी दी है। किस प्रकार यहूदी होने के कारण उन्हें यातना शिविरों में डाला गया। यातना शिविरों से बचने के लिए उन्हें दो साल तक छिपकर रहना पड़ा। उन्हें न सूरज की रोशनी मिलती थी, न चाँद की चाँदनी। उन्हें आतंक के साये में जीना पड़ा। ऐन को किशोरावस्था की बातें बाँटने वाला कोई न मिला। उसकी हर बात पर कैसे टीका-टिप्पणी की जाती थी। उसकी माँ और अंकल उसे किस प्रकार झिड़कते थे। एक दिन किस प्रकार वे चोरों से बचे। ये सभी बातें ऐन ने किट्टी को डायरी में लिखकर बताई।
प्रश्न 7. किस घटना के कारण ऐन को लगा कि उसकी पूरी दुनिया उलट-पुलट गई है और क्यों ?
उत्तर- 8 जुलाई 1942 को ऐन फ्रैंक के घर संदेश आया कि उसकी बहन मार्गोट को ए. एस. एस. से बुलावा आया है। इस बुलावे का अर्थ था- यातना शिविर में बुलाया जाना और उसे जर्मन सेना के रहमो करम पर छोड़ देना। इसके लिए ऐन के माता-पिता बिल्कुल तैयार नहीं थे। उन्होंने तुरंत भूमिगत होने का मन बना लिया। इस प्रकार ऐन की अच्छी भली सहज जीवनधारा यकायक उलट गई।
प्रश्न 8. अज्ञातवास में रहते हुए ऐन फ्रैंक और उसके परिजनों का सामूहिक जीवन कैसा हो गया था ?
उत्तर- अज्ञातवास में रहते हुए ऐन फ्रैंक और उसके परिजनों का सामूहिक जीवन बोरियत से भर गया था। वे घूमफिर कर वही बातें दोहरा रहे थे। खाना खाते समय बातें या तो अच्छे खाने के बारे में होती थी या राजनीति की। इसके अतिरिक्त ऐन की माँ तथा मिसेज वानदान अपने बचपन की हजार बार सुनाई हुई बातों को लेकर बैठ जातीं थीं। मिस्टर डिसेल खूबसूरत रेस के घोड़ों, लीक करती नावों, चार साल की उम्र में तैरने वाले बच्चों, दर्द करती माँशपेशियों और मरीजों के किस्से ले बैठते थे। ये सारी बातें उसको रट चुकी थी। कोई भी लतीफ़ा नया नहीं था। लतीफ़ा शुरू होते ही सब लोग उसकी पंच लाइन जान लेते थे। इसलिए लतीफ़ा सुनाने वाला खुद अकेला ही हँसता था।
प्रश्न 9. अपने पुरुष मित्र पीटर के बारे में ऐन फ्रैंक के विचारों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर- लेखिका और पीटर नवयुवा थे। दोनों में आपसी आकर्षण था। पीटर स्वभाव से बहुत शांतप्रिय, सहनशील और सहज आत्मीय युवक था। उसके मन में ऐन के प्रति अगाध स्नेह था। वह स्नेह गर्ल-फ्रैंड के रूप में न होकर एक मित्र के रूप में था। ऐन उसके सामने कुछ भी कह सकती थी। वह ऐन की ऐसी आपत्तिजनक बातें भी सुन लेता था, जिन्हें वह अपनी माँ से भी नहीं सुन सकता था। पीटर अपने बारे में प्रायः मौन रहता था।
ऐन के कुरेदने पर भी वह अपने मन का हाल नहीं बताता था इसलिए ऐन उसे घुन्ना मानती थी। ऐन को पीटर का नास्तिक होना, खाने के बारे में बातें करना बिल्कुल पसंद नहीं था।
प्रश्न 10. ऐन की डायरी से उसकी किशोरावस्था के बारे में क्या पता चलता है ? 'डायरी के पन्ने' कहानी के आधार पर लिखिए।
उत्तर- ऐन की डायरी किशोर मन की ईमानदार अभिव्यक्ति है। इससे पता चलता है कि किशोरों को अपनी चिट्ठियाँ और उपहारों से अधिक लगाव होता है। वे जो कुछ भी करना चाहते हैं उसे बड़े लोग नकारते हैं, जैसे ऐन का केश-विन्यास जो फिल्मी सितारों की नकल करके बनाया जाता था। इस अवस्था में बड़ों द्वारा बात-बात पर कमी निकाली जाती है या किशोरों को टोका जाता है। यह बात किशोरों को बहुत ही नागवार गुजरती है। किशोर बड़ों की अपेक्षा अधिक ईमानदारी से जीते हैं। इन्हें जीने के लिए सुंदर, स्वस्थ वातावरण चाहिए। किशोरावस्था में ऐन की भाँति हम सभी अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
प्रश्न 11. युद्ध के दौरान आम जनजीवन में किस प्रकार की लूटमार व्याप्त थी ?
उत्तर- युद्ध के दौरान आम जनजीवन पूरी तरह बिखर चुका था। भयंकर गोलाबारी से इमारतें काँप उठी थीं। घर-घर में बीमारी फैल चुकी थी। डॉक्टर अपने मरीजों की ओर ध्यान नहीं दे पाते थे। उनके पीठ मोड़ते हो चोर उचक्के उनकी कार या मोटर साइकिल लेकर भाग जाते थे। चोरी और झपटमारी का हाल यह था कि औरतें अँगुठियाँ तक नहीं पहन सकती थीं। चीजों की कमी इतनी अधिक थी कि सब्जियों तथा अन्य खाद्य- सामानों के लिए घंटों-घंटों लाइनों में लगना पड़ता था। आठ दस बरस के बच्चे घरों की खिड़कियाँ तोड़कर सामान उठाकर ले जाते थे। पाँच दस मिनट के लिए घर से बाहर निकलते ही चोर उचक्के सामान उठाकर ले जाते थे। टाइपराइटर, कालीन, बिजली से चलने वाली घड़ियाँ, कपड़ों आदि को लौटाने के लिए अखबारों में इनाम घोषित किए जाते थे। सार्वजनिक घड़ियों और टेलीफोन का पुर्जा-पुर्जा गायब कर दिया गया था। गरीबी और फटे हाली इतनी थी कि लोग बीमारी, भूख के साथ-साथ फटे घिसे जूतों और कपड़ों में रहने को विवश थे। यदि जूता फट जाता था तो उसे मोची से सिलवाने के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता था।
प्रश्न 12. 'डायरी के पन्ने' के आधार पर सिद्ध कीजिए कि ऐन बहुत प्रतिभाशाली तथा परिपक्व थी ?
उत्तर- ऐन फ्रैंक की प्रतिभा और धैर्य का परिचय हमें उसकी डायरी से मिलता है। उसमें किशोरावस्था का उखड़ापन कम और सहज शालीनता अधिक थी। उसकी अवस्था में अन्य कोई भी होता तो विचलित एवं बेचैनी का आभास देता। ऐन ने अपने स्वभाव और अवस्था पर नियंत्रण पा लिया था। वह एक सकारात्मक परिपक्व और सुलझी हुई सोच के साथ आगे बढ़ रही थी। उसमें कमाल की सहनशक्ति थी। अनेक बातें जो उसे बुरी लगती थी, उन्हें वह शालीन चुस्पी के साथ बड़ों का सम्मान करने के लिए सहन कर जाती थी।
पीटर के प्रति अपने अतरंग भावों को भी वह सहेज कर केवल डायरी में व्यक्त करती थी। अपनी इन भावनाओं को वह किशोरावस्था में भी जिस मानसिक स्तर से सोचती थी वह वास्तव में सराहनीय है। परिपक्व सोच का ही परिणाम था कि वह अपने मन के भाव, उद्गार, विचार आदि डायरी में व्यक्त करती थी। यदि ऐन में ऐसी सधी हुई परिपक्तवता नहीं होती तो हमें युद्धकाल की ऐसी दर्द भरी दास्तान पढ़ने को नहीं मिल सकती थी।
प्रश्न 13. 'डायरी के पन्ने' पढ़कर आपके मन में क्या प्रतिक्रिया होती है ?
उत्तर- 'डायरी के पन्ने' ऐन फ्रैंक द्वारा रचित एक डायरी है। इसमें दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी द्वारा यहूदियों पर किए गए अत्याचारों का भोगा हुआ वर्णन है।
हिटलर के क्रूर आदेशों के कारण यहूदियों को किस प्रकार आतंकित किया गया, कुचला गया और लाखों नागरिकों को यातनाएँ दे-देकर मार डाला गया-यह दिखाना इस डायरी का उद्देश्य है। इसे पढ़कर हमारे मन में यह बात आती है कि युद्ध और कट्टर जातिवाद किनता भयानक होता है। जातीय अहंकार के कारण कोई शासक बिल्कुल पशु हो जाता है। वह अपने विरोधियों को कीड़े-मकौड़े की भाँति कुचल देना चाहता है। वह अपने विरोधियों के विरोध को सहन करना तो दूर, उन्हें दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में भी जीवित नहीं देखना चाहता।
इस डायरी को पढ़कर हमारे मन में युद्ध पीड़ित बेकसूर लोगों के प्रति असीम सहानुभूति उपजती है। उन्हें किस प्रकार छिप-छिपकर रहना पड़ता है। वे सालों-साल सूरज-चाँद, हवा-धूप के लिए तरस जाते हैं। यह डायरी हमारे मन में करुणा जगाती है।