ध्वनि परिवर्तन की दिशाएं
ध्वनि परिवर्तन की दिशाएं
ध्वनि-परिवर्तन के कारणों पर विस्तृत विवेचन के बाद अब हम यह देखेगें कि ध्वनि परिवर्तन का भाषा वैज्ञानिक रूप क्या है, अर्थात उसकी दिशा क्या है। ध्वनि-परिवर्तन की दिशाओं के अन्तर्गत हम निम्नलिखित बिंदुओं के विविध आयामों का अध्ययन करेगें। ध्वनि-परिवर्तन की प्रमुख दिशाएं इस प्रकार हैं -
1. ध्वनि लोप
2. ध्वनि-आगमन
3. ध्वनि-विपर्यय
4. समीकरण
5. विषमीकरण
6. अनुनासिकता
7. मात्रा भेद
8. घोषीकरण
9. प्राणीकरण
1. ध्वनि लोप -
उच्चारण में शीघ्रता, मुखसुख या स्वराघात आदि के प्रभाव से कुछ ध्वनियाँ लुप्त हो जाती हैं। यही ध्वनि-लोप है। ध्वनि-लोप तीन तरह से होता है -
1. स्वर लोप
2. व्यंजन लोप
3. अक्षर लोप। इन तीनों का भी आदि, मध्य और अंत्य तीन-तीन स्थितियाँ हैं।
(क) स्वर लोप -
इसमें स्वर ध्वनि का लोप निम्नलिखित उदाहरणों से समझा जा सकता है -
I. आदि स्वर लोप -
अनाज नाज, असवार सवार, अफ़साना फ़साना, अहाता > हाता, अभ्यंतर > भीतर।
II. मध्य स्वर लोप - शाबास > साबस, बलदेव > बल्देव।
IIII-अंत्य स्वर लोप - Bombe (फ्रेंच) > Bomb (अंग्रेजी)
(ख) व्यंजन लोप –
I. आदि व्यंजन लोप - स्थापना थापना, शमशान मशान, स्थली > थाली, स्कंध कंध, कंधा
II. मध्य व्यंजन लोप - कोकिल > कोइल, डाकिन > डाइन, उपवास उपास, कुलत्थ > कुलथी
III. अंत्य व्यंजन लोप - कमांड (अंग्रेजी) कमान (हिन्दी)
(ग) अक्षर लोप -
I. आदि अक्षर लोप - आदित्यवार > इतवार
II. मध्य अक्षर लोप नीलमणि दस्तखत > दस्खत नीलम, फलाहारी फलारी,
अंत्य अक्षर लोप - व्यंग्य > व्यंग, निम्बुक नींबू, मौक्तिक > मोती
IV. समध्वनि लोप इसमें किसी शब्द में एक ही ध्वनि या अक्षर दो बार आए तो उसमें से एक का लोप हो जाता है। जैसे नाककटा > नकटा, खरीददार > खरीदार।
2. ध्वनि आगमन -
इसमें कोई नई ध्वनि आती है। लोप का उलटा आगमन है। इसमें भी स्वर आगम, व्यंजन आगम, अक्षर आगम तीन भेद हैं। इनकी तीन या तीन से अधिक स्थितियाँ इस प्रकार हैं -
I. स्वरागम -
आदि स्वरागम - स्कूल > इस्कूल, स्नान अस्नान, स्तुति अस्तुति, सवारी > असवारी।
II. मध्य स्वरागम -
मर्म > मरम, गर्म गरम, पूर्व पूरब, प्रजा > परजा, भक्त भगत, बैल > बइल।
III.अंत्य स्वरागम - दवा > दवाई।
II. व्यंजनागम -
आदि व्यंजनागम - उल्लास > हुलास, ओष्ठ > होंठ।
मध्य व्यंजनागम - वानर > बन्दर, लाश लहाश, सुख सुक्ख, समन > सम्मन।
अंत्य व्यंजनागम - चील चील्ह, भौं भौंह, परवा > परवाह, उमरा > उमराव।
अक्षरागम -
आदि अक्षरागम - गुंजा झ घुँगुची।
मध्य अक्षरागम खल झ खरल, आलस झ आलकस।
अंत्य अक्षरागम - बधू झ बधूरी, आँक झ आँकड़ा, मुख झ मुखड़ा।
3. ध्वनि विपर्यय -
इसमें किसी शब्द के स्वर, व्यंजन या अक्षर एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं और दूसरे स्थान के पहले स्थान पर आ जाते हैं। जैसे 'मतलब' से 'मतबल' होना। इसमें 'ल' और 'ब' व्यंजनों ने एक दूसरे का स्थान ले लिया है।
ध्वनि विपर्यय की विभिन्न स्थितियाँ इस प्रकार हैं -
Ⅰ. स्वर विपर्यय - कुछ > कछु, पागल > पगला, अनुमान > उनमान।
II. व्यंजन विपर्यय - चिह्न > चिन्ह, डेस्क > डेक्स, ब्राह्मण > ब्राम्हन, अमरूद > अरमूद, वाराणसी > बनारस, खुरदा > खुदरा
अक्षर विपर्यय - मतलब > मतबल, लखनऊ > नखलऊ।
4. समीकरण -
इसमें एक ध्वनि दूसरे को प्रभावित करके अपना रूप देती है। जैसे 'पत्र' का 'पत्ता' हो गया। यहाँ 'तू' ध्वनि ने 'र्' ध्वनि को प्रभावित करके 'तू' बना लिया। समीकरण प्रायः उच्चारण के कारण होता है। समीकरण स्वर और व्यंजन दोनों में होता है।
I. स्वर समीकरण - खुरपी > खुरूपी, जुल्म जुलम, अँगुली > उँगली।
II. व्यंजन समीकरण चक्र चक्का, लकड़बग्घा लकड़बग्गा, कलक्टर > कलट्टर, शर्करा > शक्कर।
III. अपूर्ण समीकरण - डाकघर > डाग्घर ।
IV. पारस्परिक व्यंजन समीकरण - विद्युत बिजली, सत्य > सच, वाद्य > बाजा।
5. विषमीकरण - यह समीकरण का उलटा है। इसमें दो समान ध्वनियों में एक ध्वनि विषम हो जाती है। जैसे - कंकन कंगन, मुकुट मउर, काक काग, तिलक > टिकली।
6. अनुनासिकता - अनुनासिकता दो तरह से होती है। सकारण और अकारण। सकारण जैसे कम्पन, काँपना, चन्द्र आदि। अकारण अनुनासिकता अपने आप होती है। इसका कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं होता। जैसे 'सर्प' से 'साँप' बना। 'सर्प' में अनुनासिकता नहीं थी किन्तु 'साँप' में अपने आप अर्थात अकारण आ गई। अन्य उदाहरण भी देखे जा सकते हैं - श्वास > साँस, कूप > कुआँ, अश्रु > आँसू, भ्रू > भौं, सत्य > सच, साँच
7. मात्रा-भेद -
मुख-सुख या प्रयत्न लाघव के लिए कभी ह्स्व स्वर का दीर्घ या दीर्घ स्वर को ह्स्व बना दिया जाता है। इस तरह मात्रा भेद से ध्वनि परिवर्तन होता है।
दीर्घ से ह्स्व स्वर -
आलाप > अलाप, पाताल पताल, आफिसर अफसर, आराम > अराम, बानर > बंदर, बादाम > बदाम, आकाश अकास।
ह्स्व से दीर्घ स्वर -
अक्षत आखत, कल > काल्ह, काक कागा, गुरु > गुरू, लज्जा > लाज, हरिण > हिरना आदि।
8. घोषीकरण -
- इस स्थिति में कुछ शब्दों में घोष ध्वनि अघोष और अघोष ध्वनि घोष हो जाती है। ऐसा ध्वनि परिवर्तन प्रायः उच्चारण की सुविधा की दृष्टि से होता है।
घोष से अघोषीकरण - डंडा झ डंटा, खूबसूरत झ खपसूरत।
अघोष से घोषीकरण - मकर झ मगर, शाक झ साग, एकादश झ एग्यारह, शती झ सदी, प्रकट झ परगट