मियाँ नसीरुद्दीन प्रश्न उत्तर
मियाँ नसीरुद्दीन प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. मियाँ नसीरुद्दीन को 'नानबाइयों का मसीहा' क्यों कहा गया है ?
उत्तर- मियाँ
नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा कहा गया है, क्योंकि वे
मसीहाई अंदाज में रोटी एकाने को कला का बखान करते हैं। वे स्वयं भी छप्पन तरह की
रोटियाँ बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। वे तुनकी और रूमाली जैसी महीन रोटियाँ बनाना
जानते हैं। उनका खानदान वर्षों से इस काम में लगा हुआ है। ये रोटी बनाने को कला
मानते हैं तथा स्वयं को उस्ताद कहते हैं। उनका बातचीत करने का ढंग भी महान कलाकरों
जैसा है। अन्य नानबाई सिर्फ रोटी पकाते हैं। वे नया कुछ नहीं कर पाते।
प्रश्न 2. लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास क्यों गई थीं ?
उत्तर-लेखिका
मियाँ नसीरुद्दीन की कारीगरी को जानने और उसे प्रकाशित करने के उद्देश्य से उनके
पास गई थीं। इसलिए उसने मियाँ से रोटियाँ खरीदने के बजाय उनसे कुछ प्रश्न किए। वह
पत्रकार की हैसियत से वहाँ गई थीं।
प्रश्न 3. बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुद्दीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने लगी ?
उत्तर- बादशाह के
नाम का प्रसंग आते ही मियाँ नसीरुद्दीन की रुचि लेखिका की बातों में इसलिए कम होने
लगी क्योंकि मियाँ ने ये सब बातें परंपरा से सुनी-सुनाई थीं। उसे ठीक से सब बातों
और तथ्यों का ज्ञान नहीं था। न तो उसने इन सब नामों और तथ्यों का महत्व जाना था, न उसे इनकी जरूरत
पड़ी थी। इसलिए लेखिका के प्रश्न को सुनकर वह मुश्किल में पड़ गया।
प्रश्न 4.
"मियाँ नसीरुद्दीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड के आसार देख यह मजमून न
छेड़ने का फैसला किया" - इस कथन के पहले और बाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए
इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-मियाँ नसीरुद्दीन पत्रकारों को निठल्ला समझते थे तथा स्वयं को कामकाजी आदमी समझते थे। वे लेखिका के प्रश्नों को सुन-सुनकर पूरी तरह उकता चुके थे। इसलिए उन्होंने बातचीत को बीच में काटते हुए अपने कारीगर को कहा भी था- 'बब्बन मियाँ, भट्ठी सुलगा तो काम से निपटे।' उनकी बातों में रुखाई स्पष्ट रूप से आ चुकी थी, इस बीच लेखिका के मन में आया कि वह उनसे उनके बेटे-बेटियों की बात पूछ से। परन्तु नसीरुद्दीन तो काम में हरज होता देखकर पूरी तरह उखड़ चुके थे। उनके चेहरे पर भी उसका तनाव आ चुका था। इसलिए जब लेखिका ने उनसे कारीगरों के बारे में पूछा तो उन्होंने तेज आवाज में चुभता हुआ उत्तर दिया- 'खाली शागिर्दी ही नहीं साहिब, गिन के मजूरी देता हूँ। दो रुपए मन आटे की मजूरी। चार रुपए मन मैदे की मजूरो ! हाँ !'
लेखिका ने
नसीरुद्दीन के चेहरे पर उभर आए तनाव की भीषणता को भाँप लिया था। उसे प्रतीत हो गया
था कि अब बेटे-बेटियों का सवाल छेड़ा तो मियाँ जी साफ-साफ जाने के लिए कह देंगे।
इसलिए इस अवसर पर वे यह सवाल टाल गए।
प्रश्न 5. पाठ में मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र लेखिका ने कैसे खींचा है ?
उत्तर- पाठ में
मियाँ नसीरुद्दीन का शब्द चित्र लेखिका ने इस प्रकार खींचा है- हमने जो अंदर झाँका
हो पाया, मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी का मन्त्ता ले रहे हैं। मौसमों
की मार से पका चेहरा, आँखों में काइयाँ, भोलापन और पेशानी
पर मंजे हुए कारीगर के तेवर।
मियाँ नसीरुद्दीन महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. मियाँ नसीरुद्दीन की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं ?
उत्तर - मियाँ
नसीरुद्दीन की निम्नलिखित वातें हमें अच्छी लगीं- (क) वे आत्मविश्वास से भरपूर
हैं। वे जो भी बात करते हैं, पूरे विश्वास से, जोर देकर और
अदाकारी के साथ करते हैं। वे पत्रकार या महिला को सामने देखकर भी घबराते या हकलाते
नहीं। (ख) वे अपने काम में गहरी रुचि लेते हैं। बातें करते हुए भी उनका ध्यान अपने
काम पर पूरी तरह लगा रहता है। (ग) वे किसी शागिर्द (कारीगर) का शोषण नहीं करते। वे
उन्हें पूरा सम्मान और वेतन देते हैं।
प्रश्न 2. "तालीम की तालीम भी बड़ी चीज़ होती है"- यहाँ लेखिका ने तालीम शब्द का दो बार प्रयोग क्यों किया है ? क्या आप दूसरी बार आए तालीम शब्द की जगह कोई अन्य शब्द रख सकते हैं ? लिखिए।
उत्तर- यहाँ 'तालीम' शब्द का दो बार प्रयोग किया गया है। पहले 'तालीम' का अर्थ है- शिक्षा या प्रशिक्षण। दूसरे 'तालीम' का अर्थ है- पालन करना या आचरण करना। इसका अर्थ यह है कि जो शिक्षा पाई जाए, उसका पालन करना अधिक जरूरी है। दूसरी बार आए तालीम की जगह हम 'पालन' शब्द भी लिख सकते हैं।
प्रश्न 3. मियाँ नसीरुद्दीन तीसरी पीढ़ी के हैं जिसने अपने खानदानी व्यवसाय को अपनाया। वर्तमान समय में प्रायः लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे हैं। ऐसा क्यों ?
उत्तर- मियाँ
नसीरुद्दीन के पिता मियाँ बरकतशाही तथा दादा मियाँ कल्लन खानदानी नानबाई थे। मियाँ
ने भी इसी व्यवसाय को अपनाया। आजकल लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे।
इसके कई कारण हैं- (1) व्यवसाय से निर्वाह न होना, क्योंकि पुराने
व्यवसायों से आय बहुत कम होती है। (2) नए तरह के व्यवसायों का प्रारंभ होना। नयी
तकनीक व रुचियों में बदलाव के कारण नए-नए व्यवसाय शुरू हो गए हैं जिनमें आमदनी
ज्यादा होती है। (3) शिक्षा के प्रसार के कारण सेवा क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई है।
अब यह क्षेत्र उद्योग व कृषि क्षेत्र से भी बड़ा हो गया है। पहले यह क्षेत्र आज की
तरह व्यापक नहीं था।
प्रश्न 4. "मियाँ, कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो ? यह तो खोजियों की खुराफात है - अखबार की भूमिका को देखते हुए इस पर टिप्पणी करें।
उत्तर- मियाँ
नसीरुद्दीन के अनुसार अखवार बनाने वाला व पढ़ने वाला-दोनों निठल्ले हैं। उनका यह
दृष्टिकोण गलत है। वे उन्हें खोजियों की खुराफात कहते हैं। यह कथन ठीक है। पत्रकार
नए-नए तथ्यों को प्रकाश में लाते हैं। इससे लोगों का शोषण खत्म होता है। नयी खोजों
से ज्ञान का प्रसार होता है, परंतु निरर्थक या भ्रम फैलाने वाली बातों को
तूल देना सामाजिक दृष्टि से गलत है। सनसनीखेज खबरों से शांति भंग होती है।
मियाँ नसीरुद्दीन प्रश्न उत्तर - भाषा की बात
प्रश्न 1. तीन
चार वाक्यों में अनुकूल प्रसंग तैयार कर नीचे दिए गए वाक्यों का इस्तेमाल करें-
(क) पंचहज़ारी अंदाज से सिर हिलाया।
(ख) आँखों के कंचे हम पर फेर दिए।
(ग) आ बैठे
उन्हीं के ठीये पर।
उत्तर- (क) हमारे
पड़ोस में एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति रहते थे। वे लोगों के हर कष्ट में साथ
होते थे। समाज सेवा के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। मैंने एक दिन उनकी समाज
सेवा की प्रशंसा की तो उन्होंने पंचहजारी अंदाज में सिर हिलाया।
(ख) इस पर वे
अपने कार्यों की बड़ाई करने लगे। तभी मैंने उनके कुछ कारनामे बताए जिनमें वे समाज
सेवा के नाम अपनी सेवा करते हैं। इस पर वे बौखला गए और अपनी आँखों के कंचे हम पर
फेर दिए।
(ग) वे सज्जन
चाहे अपना फायदा देखते हों, परंतु समाज सेवक अवश्य हैं। वे क्षेत्र के
प्रसिद्ध समाज- सेवी के चेले हैं। उनके जाने के बाद वे उन्हीं के ठीये पर आ बैठे।
प्रश्न 2. 'बिटर-बिटर देखना' - यहाँ देखने के एक खास तरीके को प्रकट किया गया है ? देखने संबंधी इस प्रकार के चार क्रिया विशेषणों का प्रयोग कर वाक्य बनाइए।
उत्तर- (क) घूर घूर कर देखना- बस में युवक सुंदर लड़की को घूर घूरकर देख रहा था। (ख) टकटकी लगाकर देखना- दीपावली पर दीयों की पंक्ति को टकटकी लगाकर देखा जाता है।
(ग) चोरी-चोरी देखना- मोहन पार्क में बैठी युवती को चोरी चोरी देख रहा था।
(घ) सहमी-सहमी नजरों से देखना- शेर से बचने में सफल विनोद सबको सहमी-सहमी नज़रों से देखता रहा।
प्रश्न 3. नीचे दिए वाक्यों में अर्थ पर बल देने के लिए शब्द-क्रम परिवर्तित किया गया है। सामान्यतः इन वाक्यों को किस क्रम में लिखा जाता है ? लिखें-
(क) मियाँ मशहूर है छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए।
(ख) निकाल लेंगे वक्त थोड़ा।
(ग) दिमाग में चक्कर काट गई है बात।
(घ) रोटी जनाब
पकती है आँच से।
उत्तर- (क) मियाँ छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं।
(ख) थोड़ा वक्त निकाल लेंगे।
(ग) बात दिमाग में चक्कर काट गई है।
(घ) जनाब ! रोटी आँच से पकती है।
मियाँ नसीरुद्दीन अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. मिर्या नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व एवं चरित्र की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-छप्पन
किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए प्रसिद्ध मियाँ नसीरुद्दीन खानदानी पेशेवर नानबाई
हैं। अपने काम के प्रति गहरी निष्ठा एवं लगाव के कारण उनके व्यक्तित्व में एक
समर्पण भाव है तथा अपने व्यवसाय के प्रति गर्व के अहसास से उनमें आत्मविश्वास
कूट-कूटकर भरा है। मियाँ अपने दिल में अपने पिता एवं दादा के प्रति असीम श्रद्धा
की भावना रखते हैं। अपने व्यवसाय को वे सिर्फ पैसों को अर्जित करने का माध्यम न
मानकर उसे एक हुनर अर्थात् कला के रूप में देखते हैं। उनका विश्वास है कि यह हुनर
काम करने से आता है और काम छोटे हों या बड़े, सभी को उन्होंने
अत्यंत ही उत्साह एवं तल्लीनता के साथ किया है। श्रम एवं अभ्यास को वे अपनी कला का
ही नहीं, बल्कि जीवन का भी मूलमंत्र मानते हैं।
प्रश्न 2. मियाँ नसीरुद्दीन किस कला में माहिर थे ? यह महारत उन्होंने कैसे हासिल की ?
उत्तर-मियाँ नसीरुद्दीन पुश्तैनी नानबाई थे। छप्पन प्रकार की रोटियाँ पकाने की कला में माहिर थे। उन्होंने यह कला अपने पिता से सोखी थी। परन्तु उन्होंने इस कला में महारत कठोर परिश्रम तथा निरन्तर अभ्यास प्राप्त की थी।
प्रश्न 3 . बीते हुए जमाने और आज के जमाने के बारे में मियाँ नसीरुद्दीन की क्या राय है ?
उत्तर- पुराने
जमाने में लोगों को खाने-पकाने का बेहद शौक था। उस समय अच्छी चीजों की लोग कद्र
करना जानते थे। लेकिन नए जमाने में जल्दबाजी और दिखावा अधिक है। लोगों में तसल्ली
नहीं है कि वे चीज को सही कद्र कर सकें। संक्षेप में, मियाँ नसीरुद्दीन
के अनुसार आज के जमाने में न तो हुनर के कद्रदान हैं और न हो वैसे हुनर वाले बचे
हैं।
प्रश्न 4. मियाँ नसीरुद्दीन सच्ची तालीम किसे मानते हैं ?
उत्तर- मियाँ
नसीरुद्दीन सच्ची तालीम व्यावहारिक अनुभव को मानते हैं। उनके मतानुसार जब तक कोई
आदमी बर्तन माँजना, भट्टी बनाना, भट्टी में आँच
देना नहीं सोखता तब तक वह अच्छा नानबाई नहीं बन सकता। केवल हुक्म चलाने से नानबाई
नहीं बना जा सकता, करके ही सीखा जा सकता है। वही सच्ची शिक्षा है।
प्रश्न 5. मियाँ नसीरुद्दीन का रहन-सहन अत्यंत साधारण है, प्रमाणित करें।
उत्तर-मियाँ
नसीरुद्दीन का रहन-सहन और बाहरी रूप बिल्कुल सामान्य है। कोई भी उनकी वेशभूषा या
रंगरूप को देखकर उन्हें महान व्यक्ति नहीं मान सकता। उनकी दुकान बहुत मामूली है।
दुकान में अँधेरा-सा छाया है। वे चारपाई पर बैठे हुए बीड़ी पी रहे हैं। उनके चेहरे
पर गहरे अनुभवों की मार के निशान हैं।
प्रश्न 6. 'काम करने से आता है, नसीहतों से नहीं' इस उक्ति का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताइए यह
किसने कही और
क्यों ?
उत्तर-यह उक्ति
पाठ के प्रमुख पात्र मियाँ नसीरुद्दीन ने लेखिका द्वारा उनके पिता व दादा जी से
मिली किसी नसीहत अर्थात् सीख के विषय में पूछने पर कही। इस उक्ति के माध्यम से
मियाँ नसीरुद्दीन यह स्पष्ट करना चाहते थे, कि किसी भी कार्य
को सीखने व करने के लिए गुरुओं से शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक अवश्य है, किंतु व्यक्ति
किसी कार्य को तब तक पूर्ण कुशलता या निपुणता के साथ नहीं सीख सकता जब तक वह स्वयं
उस कार्य को न करे। इसी तथ्य को सिद्ध करने के लिए उन्होंने कहा कि काम करने से
आता है, नसीहतों से नहीं।
प्रश्न 7. 'मियाँ नसीरुद्दीन' शब्द चित्र में निहित सन्देश को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- 'मियाँ नसीरुद्दीन' शब्द चित्र में लेखिका ने खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का वर्णन करते हुए यह बताया है कि मियाँ नसीरुद्दीन नानबाई का अपना काम अत्यन्त ईमानदारी और मेहनत से करते हैं। यह कला उन्होंने अपने पिता से सीखी है। वे अपने इस कार्य को किसी भी कार्य से होन नहीं मानते। उन्हें गर्व है कि वे अपने खानदानी व्यवसाय को अच्छी प्रकार से चला रहे हैं। वे छप्पन प्रकार की रोटियाँ बना सकते हैं। वे काम करने में विश्वास रखते हैं। इस प्रकार मियाँ नसीरुद्दीन के माध्यम से लेखिका यह सन्देश देना चाहती है कि हमें अपना काम पूरी मेहनत और ईमानदारी से करना चाहिए। कोई भी व्यवसाय छोटा-बड़ा नहीं होता है। हमें अपने व्यवसाय के प्रति समर्पित होना चाहिए। तभी हम अपने व्यवसाय में सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 8. 'कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, बल्कि उस काम को करने की भावना श्रेष्ठ होनी चाहिए' उक्त पंक्ति को पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-हमारे समाज
में लोग तरह-तरह के कार्य करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आजीविका चलाने के लिए
कोई-न-कोई कार्य अवश्य करता है। सभी लोगों का कार्य करने का तरीका भी अलग-अलग होता
है। कोई अपना काम पूर्ण कर्तव्यनिष्ठा, परिश्रम एवं लगन
या उत्साह के साथ करता है, तो कोई कम परिश्रम एवं कर्तव्यनिष्ठा के साथ, लेकिन वस्तुतः
काम वही सफल होता है, जिसे पूर्ण ईमानदारी एवं लगन के साथ किया गया
हो। काम बड़ा हो या छोटा, इससे व्यक्ति बड़ा या छोटा नहीं बनता, बल्कि उसका
परिश्रम या कर्तव्यनिष्ठा श्रेष्ठ है या नहीं, इससे व्यक्ति के
कद का निर्धारण होता है। मियाँ नसीरुद्दीन नानबाई का कार्य करते हैं, लेकिन वे अपने
काम को अत्यंत ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठा के साथ संपन्न करते हैं, जिसका परिणाम
उनकी प्रसिद्धि के रूप में सामने आता है। किसी भी काम को करने में सफलता तभी
प्राप्त होती है, जब उस काम में हमारी श्रेष्ठ भावनाएँ निहित
होती हैं।
प्रश्न 9. आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) राजनीति, साहित्य और कला के हजारों-हजार मसीहा।
(ख) मौसमों की मार से पका चेहरा, आँखों में काइयाँ भोलापन, मैजे हुए कारीगर के तेवर।
(ग) आँखों के आगे चेहरा जिंदा हो गया।
(घ) तालीम की
तालीम भी बढ़ी चीज होती है।
उत्तर-
(क) मसीहा देवदूत की तरह आकर समाज या किसी परंपरा का संरक्षक चन जाता है। लेखिच का अभिप्राय अथवा आशय यह है कि राजनीति, साहित्य और कला के क्षेत्र बहुत व्यापक है। इनमें तो समय समय पर ऐसी अनगिनत प्रतिभाएँ उभरकर आती रही हैं, जो परंपराओं को निभाती ही नहीं, बल्कि आगे ले जाती है। समाज में ऐसे राजनीतिक नेताओं की, साहित्यकारों और कलाकारों की, जिन्हें हम इन क्षेत्रों का मसीहा कह सकें, भरमार है।
(ख) यहाँ इस पंक्ति में लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है। उनके चेहरे पर बहुत सालों के गहरे अनुभव की छाप थी। उनकी उम्र जिंदगी के कठोर संघर्षों से होकर निकली थी। वक्त से उन्होंने बहुत कुछ सीखा था। उनकी आँखों से जाहिर था, कि वे दुनिया की पहचान किए हुए बड़े होशियार व्यक्ति थे। वे भोले थे कि उन्हें स्वार्थ-मोह ने ज्यादा नहीं घेरा था, लेकिन उन्हें बात की परख थी। उनके माचे पर पड़ी सिलवटों के तेवर उनके पुराने और पके हुए हुनरमंद कारीगर होने का अहसास करा देते थे। उन्हें अपने हुनर पर जैसे बड़ा गहरा यकीन था। उस पर वे नात करते थे।
(ग) वालिद साहिब की चर्चा उठते ही नसीरुद्दीन उनकी याद में कुछ क्षणों के लिए खो रहे थे। उन्हें ऐसा लगा था कि आँखों के आगे वालिद साहिब का जीता-जागता चेहरा प्रकट हुआ हो। यहाँ अपने वालिद के लिए मियाँ नसीरुद्दीन के असीम स्नेह और मान का परिचय मिलता है।
(घ) 'तालीम की तालीम' से मियाँ नसीरुद्दीन का आशय किसी हुनर को पूरी मेहनत और अभ्यास द्वारा सीखने से है। उनका कहना है कि कोई भी काम उसे लगन के साथ करने से आता है। हुनर उस्ताद से मिलता है, लेकिन हुनर को पक्का करने के लिए अभ्यास बहुत जरूरी है।
प्रश्न 10. लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन को मसीहा कहा है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं ?
उत्तर-लेखिका ने
मियाँ नसीरुद्दीन को मसीहा कहा है, इससे हम पूर्णत:
सहमत हैं। आज के युग में अपनी पुश्तैनी नानबाई पेशे को अपना कहकर उसके शान को
निरन्तर आगे बढ़ाने हेतु क्रियाशील रहते हैं। छप्पन प्रकार की रोटियाँ बनाने में
पारंगत मियाँ नसीरुद्दीन नानबाई पेशे को अपने बाप-दादा (पूर्वजों) का धरोहर मानते
हैं। इस हुनर पर वे गर्व भी करते हैं। गानबाई पेशे के प्रति उनके मन में समर्पण
तथा निष्ठा का भाव है। इस प्राचीन हुनर को जीवित रखने में समर्थ मियाँ नसीरुद्दीन को
नानबाई का मसीहा कहा जाना सर्वथा उचित है