नमक का दारोगा प्रश्न उत्तर
नमक का दारोगा प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों ?
- उत्तर- 'नमक का दारोगा' कहानी का नायक मुंशी वंशीधर हमें सर्वाधिक प्रभावित करता है क्योंकि वंशीधर एक ईमानदार, शिक्षित, कर्तव्यपरायण, धर्मनिष्ठ व चरित्रवान दारोगा है। उसके माता-पिता उसे बेईमानी का पाठ पढ़ाते हैं, घर की दयनीय दशा का हवाला देते हैं, परंतु वह इन सबके विपरीत ईमानदारी का व्यवहार करता है। उसकी यही चारित्रिक दृढ़ता हमें प्रभावित करती है। वह स्वाभिमानी है। अदालत में उसके खिलाफ गलत फैसला लिया गया, उसकी नौकरी छीन ली गई, परंतु उसने स्वाभिमान नहीं खोया। कहानी के अंत में उसे अपनी इसी ईमानदारी का फल मिलता है, जब पंडित अलोपीदीन उसे अपनी सारी जायदाद का आजीवन स्थायी मैनेजर नियुक्त करता है। भ्रष्ट सेठ पंडित अलोपीदीन को भी वंशीधर की चारित्रिक दृढ़ता के समक्ष झुकना पड़ता है।
प्रश्न 2. 'नमक का दारोगा' कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं ?
उत्तर- पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के निम्नलिखित दो पक्ष उभरकर आते हैं-
1. भ्रष्ट व्यक्तित्व -
- पंडित अलोपीदीन के चरित्र का यह पक्ष आदर के योग्य नहीं है। वह भ्रष्ट कार्यों को रात के अंधेरे में बड़े आराम से करता है। धन कमाने के लिए धन का गैर-कानूनी उपयोग करता है। उसने विभिन्न सरकारी विभागों के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को रिश्वत के दलदल में फँसा रखा है। कहानी के आरंभ और मध्य तक उसे समाज के एक चालाक और वाचाल व्यक्ति के रूप में दिखाया गया है, जिसने अपनी चतुराई से समाज में अपना सम्मानित स्थान बनाया हुआ है। उसके इस भ्रष्ट चरित्र की प्रशंसा नहीं की जा सकती है।
2. उज्ज्वल व्यक्तित्व-
- कहानी के अंत में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व का सकारात्मक पक्ष उभकर सामने आता है। भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाला व्यक्ति ईमानदार बंशीधर (दारोगा) के द्वारा गिरफ्तार किए जाने पर उससे अपने अपमान का बदला लेने के लिए उसे नौकरी से अवश्य निकलवा देता है, किंतु दारोगा के दृढ़ चरित्र के समक्ष उसका झूठा अहंकार समाप्त हो जाता है। वह वंशीधर के ईमानदार व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही उसे सम्मानूपर्वक अपनी सारी संपत्ति का स्थायी मैनेजर नियुक्त करता है। पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व की यह गुण-ग्राहकता प्रशंसा के योग्य है।
प्रश्न 3. कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उद्धृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं- (क) वृद्ध मुंशी, (ख) वकील, (ग) शहर की भीड़।
उत्तर-
(क) वृद्ध मुंशी-
यह वंशीधर का पिता है जो भ्रष्ट चरित्र का प्रतिनिधि है। इसे धन में ही सब कुछ दिखाई देता है। यह अपने बच्चों को ऊपर की कमाई तथा आम आदमी के शोषण की सलाह देता है। पाठ में यह अंश उसके विचारों को व्यक्त करता है- उनके पिता एक अनुभवी पुरुष थे। समझाने लगे-बेटा! घर की दुर्दशा देख रहे हो। ऋण के बोझ से दबे हुए हैं। लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ, न मालूम कब गिर पहूँ। अब तुम्हीं घर के मालिक मुख्तार हो। नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्त्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसको बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ-ही-लाभ है, लेकिन बेगरज को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो। यह मेरी जन्मभर की कमाई है। वे बेटे द्वारा रिश्वत न लेने पर उसको पढ़ाई-लिखाई को व्यर्थ मानते हैं- "पढ़ना-लिखना सब अकारण गया।"
(ख) वकील -
- वकील समाज के उस पेशे का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सिर्फ अपने लाभ की फिक्र करते हैं। उन्हें न्याय-अन्याय से कोई मतलब नहीं होता उन्हें धन से मतलब होता है। अपराधी के जीतने पर भी वे प्रसन्न होते हैं-"वकीलों ने यह फैसला सुना और उछल पड़े। स्वजन बांधवों ने रुपयों की लूट की। उदारता का सागर उमड़ पड़ा। उसकी लहरों ने अदालत की नींव तक हिला दी।"
"यद्यपि नमक के दारोगा मुंशी वंशीधर का अधिक दोष नहीं है, लेकिन यह बड़े खेद की बात है कि उसकी उद्दंडता और विचारहीनता के कारण एक भलेमानस को झेलना पड़ा। नमक के मुकदमे की बढ़ी हुई नमकहलाली ने उसके विवेक और बुद्धि को भ्रष्ट कर दिया। भविष्य में उसे होशियार रहना चाहिए।"
(ग) शहर की भीड़ -
शहर की भीड़ तमाशा देखने का काम करती है। उन्हें निंदा करने व तमाशा देखने का मौका चाहिए। उनकी कोई विचारधारा नहीं होती। अलोपीदीन की गिरफ्तारी पर शहर की भीड़ की प्रतिक्रिया देखिए- दुनिया सोती थी, पर दुनिया को जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक-वृद्ध सबके मुँह से यही बात सुनाई देती थी। जिसे देखिए, वही पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछारें हो रही थीं, मानों संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम से बेचनेवाला ग्वाला, कल्पित रोजनामचे भरने वाले अधिकारी वर्ग, रेल में बिना टिकट सफर करने वाले बाबू लोग, जाली दस्तावेज बनाने वाले सेठ और साहूकार, यह सब के सब देवताओं की भाँति गर्दनें चला रहे थे। जब दूसरे दिन पंडित अलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबलों के साथ, हाथों में हथकड़ियाँ, हृदय में ग्लानि और क्षोभभरे, लज्जा से गर्दन झुकाए अदालत की तरफ चले, तो सारे शहर में हलचल मच गई। मेलों में कदाचित् आँखें इतनी व्यग्र न होती होंगी। भीड़ के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा।
प्रश्न 4. निम्न पक्तियों को ध्यान से पढ़िए-
नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढ़ना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्त्रोत है जिससे सदैव प्यास मुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ ।
(क) यह किसकी उक्ति है ?
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है ?
(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं ?
उत्तर- (क) यह उक्ति वंशीधर के बूढ़े पिता की है।
(ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद इसलिए कहा गया है, क्योंकि जिस प्रकार पूर्णमासी का चाँद - पूर्णिमा के दिन ही पूरा दिखाई देने के उपरांत दूसरे दिन से ही घटना प्रारंभ हो जाता है, ठीक उसी प्रकार मासिक बेतन भी मास में मिलता तो एक बार है, किंतु अगले दिन से ही घटते-घटते शीघ्र ही समाप्त हो जाता है।
(ग) नहीं, मैं पिता के इस वक्तव्य से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूँ, क्योंकि जब एक पिता ही इस तरह की सोच का वक्तव्य देगा, तो पुत्र की मानसिकता के विकृत होने की संभावना अधिक हो जाती है। ऐसी मानसिकता समाज के लिए भी अहितकारी है।
प्रश्न 5. 'नमक का दारोगा' कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- "नमक का दारोगा" कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक हो सकते हैं-
1. सत्य की जीत
2. नैतिकता का मूल्य
1. सत्य की जीत : कहानी में अंतत: सत्य जीत होती है। अतः सत्य की जीत शीर्षक कहानी के लिए उपयुक्त शीर्षक हो सकता है।
2. नैतिकता का मूल्य-यह कहानी नैतिक मूल्यों पर आधारित है। ईमानदारी के महत्व को कहानी में रेखांकित किया गया है। यह कहानी जीवन मूल्यों के प्रति आस्था को बनाए रखने में सक्षम है। अत: कहानी का दूसरा उपयुक्त शीर्षक नैतिकता का मूल्य' हो सकता है।
प्रश्न 6. कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं ? तर्क सहित उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते ?
उत्तर- कहानी के अंत में अलोपीदीन वंशीधर को अपनी सारी संपत्ति का स्थायी मैनेजर बना देता है। वास्तव में उसे लोगों पर विश्वास नहीं है। उसने आज तक बिकाऊ, बेईमान और भ्रष्ट लोग ही देखे हैं। उसने रिश्वत और लालच से सबको डिगा दिया। केवल वंशीधर ही था जो हजारों रुपयों की रिश्वत के सामने अडिग रहा। उसे अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए ऐसा ही दृढ़ चरित्र, ईमानदार और कठोर प्रबंधक चाहिए था इसलिए उसने उसे नियुक्त कर लिया। मैं भी इस कहानी का अंत इसी प्रकार अच्छाई की जीत दिखाकर ही करता।
नमक का दारोगा अन्य प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. दारोगा वंशीधर गैर-कानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से बंशीधर का ऐसा करना उचित था ? आप उसकी जगह होते तो क्या करते ?
उत्तर- वंशीधर का अलोपीदीन जैसे भ्रष्ट व्यापारी की नौकरी करना सर्वथा अनुचित था। मैं वंशीधर की जगह होता तो उसकी नौकरी स्वीकार न करता। मैं उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट करता किंतु साफ कहता कि आपके काले धंधों को सहन करना मेरे स्वभाव के प्रतिकूल है। मैं इन्हें सहन न कर सकूँगा। अतः किसी अन्य व्यक्ति की तलाश कर लें।
प्रश्न 2. नमक विभाग के दारोगा पद के लिए बड़ों-बड़ों का जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों ?
उत्तर- आज समाज में आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई. एफ. एस., आयकर, बिक्री कर आदि की नौकरियों के लिए लोग लालायित रहते हैं, क्योंकि इन सभी पदों पर ऊपर की आमदनी के साथ-साथ पद का रोब भी मिलता है। ये देश के नीति निर्धारक भी होते हैं।
प्रश्न 4. 'पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।' वृद्ध मुंशी जी द्वारा यह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गई थी। अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताइए-
(क) जब आपको पढ़ना-लिखना व्यर्थ लगा हो।
(ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो।
(ग) पढ़ना-लिखना' को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा-
साक्षरता अथवा शिक्षा ? (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं ?)
उत्तर-
(क) मेरा एक साथी अनपढ़ था। उसने व्यापार करना प्रारंभ किया और शीघ्र ही बहुत धनी और समाज का प्रतिष्ठित आदमी बन गया। मैंने पढ़ाई में ध्यान दिया तथा प्रथम श्रेणी में डिग्रियाँ लेने के बावजूद आज भी बेरोज़गार हूँ। नौकरी के लिए मुझे उसकी सिफारिश करवानी पड़ी तो मुझे अपनी पढ़ाई-लिखाई व्यर्थ लगी।
(ख) पढ़ने-लिखने के बाद जब मैं कॉलेज में प्रोफेसर हो गया तो बड़े-बड़े अधिकारी, व्यापारी अपने बच्चों के दाखिले के लिए मेरे पास प्रार्थना करने आए। उन्हें देखकर मुझे अपनी पढ़ाई-लिखाई सार्थक लगी।
(ग) 'पढ़ना-लिखना' को शिक्षा के अर्थ में प्रयुक्त किया था, क्योंकि साक्षरता का अर्थ अक्षरज्ञान से लिया जाता है। शिक्षा विषय के मर्म को समझाती है।
प्रश्न 5. 'लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।' वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता है ?
उत्तर- यह वाक्य समाज में लड़कियों की हीन दशा को व्यक्त करता है। लड़कियों के युवा होते ही माता-पिता को उनके विवाह आदि की चिंता सताने लगती है। विवाह के लिए दहेज इकट्ठा करना पड़ता है। इनसे परिवार को कोई आर्थिक लाभ नहीं होता।
प्रश्न 6. 'इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया, बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य साधन करने वाला धन और अनन्य वाचालता हो, वह क्यों कानून के पंजे में आए। प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था।' अपने आस-पास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी ? उपर्युक्त टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए लिखें।
उत्तर- अलोपीदीन जैसे व्यक्ति को देखकर मुझे कुढ़न-सी महसूस होगी। ऐसे व्यक्ति कानून को मखौल बनाते हैं। इन्हें सजा अवश्य मिलनी चाहिए। मुझे उन लोगों पर भी गुस्सा आता है जो उनके प्रति सहानुभूति जताते हैं।
समझाइए तो जरा
1. नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए।
2. इस विस्तृत संसार में उनके लिए धैर्य अपना मित्र, बुद्धि अपनी पथ-प्रदर्शक और आत्मावलंबन ही अपना सहायक था।
3. तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।
4. न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं।
5. दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी।
6. खेद ऐसी समझ पर ! पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।
7. धर्म ने धन को पैरों तले कुचल डाला।
8. न्याय के मैदान में धर्म और धन में युद्ध ठन गया।
उत्तर- 1. नौकरी के पद को महत्व न देकर उससे होने वाली ऊपर की कमाई पर ध्यान देना चाहिए।
2. इस संसार में व्यक्ति के जीवन संघर्ष में धैर्य, बुद्धि, आत्मावलंबन ही क्रमशः मित्र, पथप्रदर्शक व सहायक का काम करते हैं। हर व्यक्ति अकेला होता है। उसे स्वयं ही कुछ करना होता है।
3. मनुष्य के मन में भ्रम रहता है। अनेक स्थितियों में फँसे होने पर जब व्यक्ति तर्क करता है तो सारे भ्रम दूर हो जाते हैं या संदेह की पुष्टि हो जाती है।
4. इसका अर्थ है कि धन से न्याय व नीति को भी प्रभावित किया जाता है। धन से मर्जी का न्याय लिया जा सकता है तथा नीतियाँ भी अपने हक की बनवाई जा सकती हैं। ये सब धन के संकेतों पर नाचने वाली कठपुतलियाँ हैं।
5. यह संसार के स्वभाव पर तीखी टिप्पणी है। संसार में लोग कुछ करें या न करें, दूसरे की निंदा करते है। हालाँकि निंदा करने वाले को अपनी कमी का ध्यान नहीं रहता।
6. यह बात बूढ़े मुंशी ने कही थी। उन्हें वंशीधर द्वारा रिश्वत के मौके को ठुकराने का दुःख है। इस नासमझी के कारण वह उसकी पढ़ाई-लिखाई को निरर्थक मानता है।
7. धर्म मानव की दिशा निर्धारित करता है। सत्यनिष्ठा के कारण वंशीधर ने अलोपीदीन द्वारा चालीस हबार रुपये की पेशकश को ठुकरा दिया। उसके धर्म ने धन को कुचल दिया।
यहाँ अदालतों की कार्य शैली पर व्यंग्य है। अदालतें न्याय का मंदिर कही जाती हैं, परंतु यहाँ भी सब कुछ बिकाऊ था। धन के कारण न्याय के सभी शस्त्र सत्य को असत्य सिद्ध करने में जुट गए। सत्य की तरफ अकेला वंशीधर था। अतः वहाँ धन व धर्म में युद्ध-सा हो रहा था।
नमक का दारोगाभाषा की बात
प्रश्न 1. भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों का जानदार उपयोग तथा हिन्दी-उ के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के लिहाज से यह कहानी अद्भुत है। कहानी में से ऐसे उदाहरण छाँट कर लिखिए और यह भी बताइए कि इनके प्रयोग से किस तरह कहानी का कथ्य अधिक असरदार बना है ?
उत्तर-
(क) चित्रात्मकता-
वकीलों ने फैसला सुना और उछल पड़े। पंडित अलोपीदीन मुस्कराते हुए बाहर निकले। स्वजन-बांधवों ने रुपयों की लूट की। उदारता का सागर उमड़ पड़ा। उसकी लहरों ने अदालत की नींव तक हिला दीं। जब वंशीधर बाहर निकले तो चारों ओर से उनके ऊपर व्यंग्य बाणों की वर्षा होने लगी।
(ख) लोकोक्तियाँ व मुहावरे-
पूर्णमासी का चाँद, प्यास बुझना, फूले नहीं समाए, पैंजे में आना, सन्नाटा छाना, सागर उमड़ना, हाथ मलना, सिर पीटना, जीभ जगना, शूल उठना, जन्म भर की कमाई, गले लगाना, ईमान बेचना, कलवार और कसाई के तगादे सहें। सुअवसर ने मोती दे दिया, घर में अँधेरा, मस्जिद में उजाला, धूल में मिलना, निगाह बाँधना, कगारे का वृक्ष।
(ग) हिन्दी-उर्दू का साझा रूप -
बेगरज को दाँव पर लगाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो।
(घ) बोलचाल की भाषा- 'कौन पंडित अलोपीदीन ?' 'दातागंज के !'
प्रश्न 2. कहानी के मासिक वेतन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है ? इसके लिए आप अपनी ओर से दो-दो विशेषण और बताइए। साथ ही विशेषणों के आधार को तर्क सहित पुष्ट कीजिए।
उत्तर- कहानी में मासिक वेतन के लिए निम्नलिखित विशेषणों का प्रयोग किया गया है- पूर्णमासी का चाँद। हमारी तरफ से विशेषण हो सकते हैं- एक दिन का सुख या खून-पसीने की कमाई ।
प्रश्न 3. (क) बाबू जी आशीर्वाद ! (ख) सरकारी हुक्म ! (ग) दातागंज के ! (घ) कानपुर ! दी गई विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ एक निश्चित संदर्भ में निश्चित अर्थ देती हैं। संदर्भ बदलते ही अर्थ भी परिवर्तित हो जाता है। अब आप किसी अन्य संदर्भ में इन भाषिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग करते हुए समझाइए ।
उत्तर- (क) बाबू जी ! आपका आशीर्वाद चाहिए।
(ख) मोहन को सरकारी हुक्म हुआ है।
(ग) राम दातागंज के रहने वाले हैं।
(घ) यह सड़क कानपुर की तरफ जाती है।