नमक का दारोगा अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
नमक का दारोगा अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. 'नमक का दारोगा' कहानी के आधार पर वंशीधर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर- 'नमक का दारोगा' कहानी के केंद्रीय पात्र, वंशीधर के चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. ईमानदारी-
- मुंशी वंशीधर के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता है उसकी ईमानदारी अर्थात् निर्लोभी प्रवृत्ति। सारा समाज भले ही बेईमानी एवं भ्रष्टाचार के दलदल में धँसा हुआ हो, लेकिन वंशीधर को ये दुर्गुण छू तक नहीं पाया है। वह अपनी आर्थिक बदहाली के बावजूद प्रलोभन का शिकार नहीं होता है। इसी गुण के कारण वंशीधर कर्तव्यनिष्ठ दारोगा है और अपने कर्तव्य के प्रति सदैव अत्यंत सचेत रहता है।
2. कर्त्तव्यनिष्ठ -
- वंशीधर कर्त्तव्यनिष्ठ दारोगा है। रात में भी संदेह होने पर तुरन्त मौके पर पहुँचते हैं। गाड़ियों में भरे नमक का स्वयं परीक्षण करते हैं।
3. दृढ़ चरित्र -
- वंशीधर का कठोर स्वभाव तथा दृढ़ चरित्र वाला है। उनके मन में अपराधी के प्रति जरा भी दयाभाव नहीं है। वह बदलू सिंह को कड़ककर आदेश देते हैं कि इसे हिरासत में ले लो।
4. स्वाभिमानी -
- वंशीधर में स्वाभिमान की भावना कूट-कूटकर भरी हुई है। उसे अपनी सत्यनिष्ठा पर अभिमान है।
5. विचारशीलता -
- वंशीधर एक विचारशील व्यक्ति है। वह अपने सिद्धांतों पर अडिग तो है ही, सा में उसका स्पष्ट मत है कि बड़े-बड़े पदवीधारी वास्तव में, अपने प्रष्ट आचरण के कारण निरादर के योग्य हैं। वह निराश नहीं होता है, बल्कि इससे उसका चिंतन और अधिक पुष्ट होता है। इस तरह, कहा जा सकता है कि कहानी के केंद्रीय पात्र वंशीधर का व्यक्तित्व ईमानदारी, दृढ़ता, स्वाभिमानी, कर्तव्यनिष्ठता, विचारशीलता एवं संवेदनशीलता से परिपूर्ण है।
प्रश्न 2. नमक का दारोगा कहानी के माध्यम से मुंशी प्रेमचन्द हमें क्या संदेश देना चाहते हैं ?
- उत्तर- इस कहानी के माध्यम से मुंशी प्रेमचन्द हमें यह संदेश देना चाहते हैं कि असत्य तथा अन्याय का कितना ही बोलबाला क्यों न हो, वह कितना ही ताकतवर क्यों न हो, पर सत्य तथा न्याय के सामने टिक नहीं सकता। सत्य का स्थान बहुत ऊँचा है। इस कहानी में मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था जगाई गई है। इसमें संदेश दिया गया है कि आज के युवकों को कर्तव्यपरायण होना होगा, कष्ट भी मिले तो कोई बात नहीं किन्तु अन्त में विजय सुनिश्चित होगी।
प्रश्न 3. 'नमक का दारोगा' कहानी के आधार पर वर्तमान समाज के सामाजिक यथार्थ के बारे में अपने विचार स्पष्ट कीजिए।
- उत्तर-सामाजिक यथार्थ को अभिव्यक्त करने वाली कहानी 'नमक का दारोगा' में तत्कालीन समाज का चित्रण है, लेकिन वर्तमान समाज में भी नैतिक दृष्टि से पतित एवं भ्रष्ट पंडित अलोपीदीन जैसे लोगों की कमी नहीं है। इन सबके बावजूद, आज भी अनेक लोग बाबू वंशीधर जैसे है, जो अपनी ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठा को अंत तक नहीं छोड़ते, ऐसे ही लोगों के कारण यह समाज एवं व्यवस्था चल रही है। इस तरह कहा जा सकता है कि 'नमक का दारोगा' कहानी वर्तमान समाज के यथार्थ का भी जीवंत चित्रण प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 4. पण्डित अलोपीदीन बेहोश होकर धरती पर क्यों गिर पड़े ?
उत्तर-पण्डित अलोपीदीन नमक की चोरी करते हुए गिरफ्तार किए गए। उन्होंने दारोगा वंशीधर को चालीस हजार रुपये तक की रिश्वत देने की पेशकश की। परन्तु वंशीधर के सिर पर ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का भूत सवार था। वह टस से मस नहीं हुआ। परिणामस्वरूप पण्डित अलोपीदीन को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तार होते समय उनके दिल को बहुत भारी धक्का लगा। वे अपनी हिरासत के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। इसलिए वे बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।
प्रश्न 5. वंशीधर के पिता वंशीधर को कैसी नौकरी दिलाना चाहते थे ?
उत्तर- वंशीधर के पिता वंशीधर को कमाऊ पूत बनाना चाहते हैं। वे रिश्वत, घूस या ऊपरी आय कमाने में कोई दोष नहीं देखते थे। बल्कि वे वंशीधर को स्पष्ट कहते हैं- ओहदे पर नहीं, ऊपरी कमाई पर ध्यान देना। जब वंशीधर अपनी ईमानदारी के कारण नौकरी से निकाल दिया जाता है तो उसके पिता उसे जी-भर कर कोसते हैं। वास्तव में वे भ्रष्टाचार के बीज हैं। ऐसे बीजों से ही समाज में रिश्वत, कालाबाजारी जैसे रोग फैलते हैं।
प्रश्न 6. अदालत के सभी कर्मचारी पंडित अलोपीदीन के प्रति सहानुभूति क्यों रखते थे ?
उत्तर- अदालत के छोटे कर्मचारी, वकील और बड़े अधिकारी सभी अलोपीदीन के प्रति सहानुभूति रखते थे। कारण यह था कि वे सभी अलोपीदीन की कृपा का प्रसाद प्रसाद पा चुके थे। अलोपीदीन ने उन्हें रिश्वत, सोभ-लालच या अन्य किसी प्रकार से खुश कर रखा था।
प्रश्न 7. वंशीधर सत्य-पक्ष पर अडिग होते हुए भी अकेले क्यों पढ़ गए ?
- उत्तर- यह सब जानते थे कि वंशीधर सत्यनिष्ठ और कर्तव्यपरायण दारोगा थे। परन्तु अदालत के सभी कर्मचारी अलोपीदीन के खरीदे हुए गुलाम थे। सभी ने कभी-न-कभी, किसी-न-किसी प्रकार उनकी कृपा प्राप्त को थी। यही कारण था कि वे अलोपीदीन को बचाना चाहते थे। इस प्रकार वंशीधर सच्चे होते हुए भी अकेले पड़ गए। रिश्वत की शक्ति ने सत्य की शक्ति को पूरी तरह दबा लिया।
प्रश्न 8. वंशीधर के पिता ने उसे कौन-कौन-सी नसीहतें दीं ?
उत्तर - वंशीधर के पिता ने उसे निम्नलिखित नसीहतें दीं-
(1) ओहदे पर पीर की मजार की तरह नजर रखनी चाहिए।
(2) मजार पर आने वाले चढ़ावे (ऊपरी आमदनी) का ध्यान रखना चाहिए।
(3) सरूरतमंद व्यक्ति से कठोरता से पेश आना चाहिए, ताकि उससे अधिकतम धन की प्राप्ति हो सके।
(4) ऊपरी कमाई बहता स्रोत हैं, जिससे व्यक्ति की प्यास बुझती है। इस पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए ।
(5) बेगरज़ आदमी से विनम्रता से पेश आना चाहिए, क्योंकि वे तुम्हारे किसी काम के नहीं होते । (
6) ऊपर की कमाई से ही समृद्धि आती है। इसी का सर्वाधिक महत्व है।
प्रश्न 9. मुकदमा हारने पर वंशीधर के परिजनों ने उनके साथ कैसा व्यवहार किया ?
- उत्तर- वंशीधर के मुकदमा हारने पर उसके पिता ने अपना माथा पीट लिया। उन्होंने कहा कि उसके बेटे की पढ़ाई-लिखाई बेकार गई। माँ भी दुःखी हुई क्योंकि उसने बेटे की ऊपरी कमाई के बल पर तीर्थ यात्रा के जो सपने बुने थे, वे मिट्टी में मिल गए। पत्नी ने तो बोलना ही छोड़ दिया। इस प्रकार वंशीधर की सच्ची आवाज को सबने कुचला, सबने दुत्कारा।
प्रश्न 10. 'नमक का दारोगा' कहानी के आधार पर अलोपीदीन का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर - अलोपीदीन भ्रष्ट धनपतियों का प्रतिनिधि है। उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ प्रकट होती हैं-
1. भ्रष्टाचरण -
अलोपीद्दीन भ्रष्ट आचरण में लिप्त रहने वाला पात्र है। वह अत्यंत अमीर होते हुए भी नमक की चोरी करता है जो कि अतीव निंदनीय है। उसके आचरण से समाज में बढ़ रही असमानता की खाई और अधिक गहरी होती है।
2. धन का उपासक -
वह धनलिप्सु है। उसे लक्ष्मी की ताकत पर अत्यंत भरोसा है। यही कारण है कि वह धन को सर्वस्व मानता है। वास्तव में धन की पूजा करने में उसका भी अधिक दोष नहीं है, क्योंकि उसने समाज को धन के सामने घुटने टेकते ही देखा है। उसे कोई भी प्राणी ऐसा नहीं मिला, जिसने सत्य की शक्ति द्वारा उसे प्रभावित किया हो। अतः धन के प्रति उसकी बहुत अधिक लोलुप्ता है।
3. प्रभावशाली व्यक्तित्व -
अलोपीदीन भ्रष्ट होते हुए भी नगर का प्रभावशाली व्यक्ति है। इलाके में उसकी धाक है। कर्मचारी अधिकारी सब उसके सामने बिके हुए हैं। जैसे ही अलोपीदीन अपराधी के रूप में अदालत में पहुँचता है, अदालत हिल जाती है। अदालत रूपी अगाध वन का सिंह था वह।
4. वाक्पटु -
अलोपीदीन किसी को भी प्रभावित करने का ढंग खूब जानता है। वह वंशीधर से कहता है- "हम सरकारी हुक्म को नहीं जानते और न सरकार को। हमारे सरकार तो आप ही हैं।' इस वाक्य से उसकी वाक्पटुता झलकती है।
5. गुणों का सम्मान-
वंशीधर के गुण की कद्र करता है। वह उसे शाबासी देता है। उसे 'कुल तिलक' भी कहता है। अपने अपमान को भूलकर अपने सारी सम्पत्ति का स्थायी मैनेजर बना देता है।
प्रश्न 11. वंशीधर को सरकारी नौकरी से क्यों हटा दिया गया ?
- उत्तर- वंशीधर ने शहर के सबसे प्रतिष्ठित, घाघ और चालाक व्यापारी पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार किया था। अदालत के छोटे-बड़े सभी कर्मचारी और अधिकारी उसके गुलाम थे। अत: वे सभी इकट्ठे होकर अलोपीदीन को बचाने में जुट गए। इस प्रकार बेचारा वंशीधर सच्चा होता हुआ भी अपराधी सिद्ध हो गया। न्यायाधीश ने वंशीधर को सजग नागरिक होते हुए भी उदंड सिद्ध किया तथा अलोपीदीन को परेशानी में डालने का दोषी सिद्ध कर दिया। अत: उसे सरकारी नौकरी से मुअत्तल कर दिया गया।
प्रश्न 12. पंडित अलोपीदीन को हथकड़ियों में अदालत जाता देखकर किन-किन लोगों ने उनकी निंदा की और क्यों ?
- उत्तर- पंडित अलोपीदीन को हथकड़ियों में अदालत जाता देखकर समाज के छोटे-बड़े सभी लोगों ने उनकी चोरी की निंदा की। आश्चर्य की बात यह थी कि जो लोग स्वयं भ्रष्टाचारी थे, मिलावटखोर थे, फर्जी फाइलें तैयार करने वाले थे, बिना टिकट यात्रा करने वाले थे, जाली दस्तावेज बनाने का धंधा करते थे, वे भी स्वयं को देवता समझकर उनकी निंदा कर रहे थे।
- क्यों-वे अलोपीदीन की निंदा करके स्वयं को पवित्र सिद्ध करना चाहते थे। वे मन-ही-मन अलोपीदीन की समृद्धि से ईर्ष्या करते थे।