गलता लोहा प्रमुख प्रश्न उत्तर
गलता लोहा प्रमुख प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. कहानी के उस प्रसंग का उल्लेख करें, जिसमें किताबों की विद्या और धन चलाने की विद्या का जिक्र आया है।
- उत्तर- धनराम लोहार पिता का बालक था। उसके दिमाग में गणित नहीं बैठता था। मास्टर त्रिलोक सिंह उसे तेरह का पहाड़ा पढ़ाते-पढ़ाते थक जाते थे और संटी से पीटते थे। उधर धनराम के पिता गंगाराम उसे लोहार का काम सिखा रहे थे। वे उसे सान चढ़ाना, धौंकनी फूंकना, हथौड़ा चलाना तथा घन चलाना सिखा रहे थे। वे भी गलती करने पर उसे छड़ी या हत्थे से पीटते थे। इस प्रकार धनराम एक साथ दो-दो विद्याएँ सीख रहा था- पढ़ाई की विद्या तथा लोहार-कर्म की विद्या।
प्रश्न 2. धनराम मोहन को अपना प्रतिद्वंद्वी क्यों नहीं समझता था ?
- उत्तर- धनराम नीची जाति से अर्थात् लोहार और मोहन ऊँची जाति से अर्थात् ब्राह्मण था। जातिगत भेदभाव के कारण धनराम को यह बात अच्छी तरह समझ में आ गई थी कि वह स्वयं नीची और मोहन ऊँची जाति का है। मोहन पढ़ाई में भी बुद्धिमान था। उसकी प्रतिभा के कारण मास्टर त्रिलोक सिंह ने उसे कक्षा का मॉनीटर बना दिया था। मास्टर साहब अकसर मोहन की तारीफ करते हुए कहते कि एक दिन बड़ा होकर मोहन उनका और स्कूल का नाम रोशन करेगा। इन सभी बातों के कारण धनराम ने मोहन को अपने से श्रेष्ठ मान लिया था, इसलिए धनराम मोहन से स्पर्द्धा नहीं करता था।
प्रश्न 3. धनराम को मोहन के किस व्यवहार पर आश्चर्य होता है और क्यों ?
- उत्तर - मोहन ब्राह्मण जाति का था और उस गाँव में ब्राह्मण शिल्पकारों के यहाँ उठते-बैठते नहीं थे। यहाँ तक कि उन्हें बैठने के लिए कहना भी उनकी मर्यादा के विरुद्ध समझा जाता था। मोहन धनराम की दुकान पर काम खत्म होने के बाद भी काफी देर तक बैठा रहा। इस बात पर धनराम को हैरानी हुई। उसे अधिक हैरानी तब हुई जब मोहन ने उसके हाथ से हथौड़ा लेकर लोहे पर नपी-तुली चोटें मारी और धौंकनी फूंकते हुए भट्ठी में लोहे को गरम किया और ठोक-पीटकर उसे गोल रूप दे दिया। मोहन पुरोहित खानदान का पुत्र होने के बाद निम्न जाति के काम कर रहा था। धनराम शंकित दृष्टि से इधर-उधर देखने लगा।
प्रश्न 4. मोहन के लखनऊ आने के बाद के समय को लेखक ने उसके 'जीवन का एक नया अध्याय' क्यों कहा है ?
- उत्तर- लखनऊ आने के बाद मोहन के जीवन में परिवर्तन आ गया। यहाँ उसे अपने घर से दूर रहना था। गाँव में रहने पर उसके शिक्षा के दरवाजे बंद थे। यहाँ आकर वे रास्ते खुले। उसे पढ़ने का अवसर मिला। साथ ही, उसे नौकर की तरह रहने के लिए भी विवश होना पड़ा। चाहे यह अध्याय बहुत सुखद नहीं था, परन्तु था तो नया अध्याय ही।
प्रश्न 5. मास्टर त्रिलोक
सिंह के किस कथन को लेखक ने 'जवान के चाबुक' कहा है और क्यों ?
- उत्तर- " उत्तर- "तेरे दिमाग में तो लोहा भरा पड़ा है रे ! विद्या का ताप कहाँ लगेगा, इसमें ?" मास्टर त्रिलोक सिंह के इस व्यंग्य-वचन को लेखक ने 'जुबान के चाबुक' कहा है। चाबुक की चोट व्यक्ति के शरीर को कष्ट पहुँचाती है, लेकिन शब्दों को चोट शारीरिक चोट से भी ज्यादा खतरनाक होती है, क्योंकि वह व्यक्ति की अंतरात्मा पर प्रहार करती है। मास्टर जी का यह कथन धनराम के मानसिक बल को कमजोर करने के लिए पर्याप्त था। उसके मन में यह बात अच्छी तरह बैठा दी गई कि वह तो बस लोहार का काम ही सीख सकता है, विद्यार्जन उसके वश की बात नहीं, इसीलिए मास्टर त्रिलोक सिंह के कथन को लेखक ने 'जवान के चाबुक कहा है।
प्रश्न 6.
(1) बिरादरी का यही सहारा होता है।
(क) किसने किससे कहा ?
(ख) किस प्रसंग में कहा ?
(ग) किस आशय से कहा ?
(घ) क्या कहानी
में यह आशय स्पष्ट हुआ है ?
उत्तर-
(क) यह वाक्य मोहन के पिता वंशीधर ने बिरादरी के संपन्न युवक रमेश से कहा जो लखनऊ से गाँव आया हुआ था।
(ख) जब वंशीधर ने मोहन की पढ़ाई के बारे में चिंता व्यक्त की तो रमेश ने उससे सहानुभूति जताई और उन्हें सुझाव दिया कि वे मोहन को उसके साथ ही लखनऊ भेज दें ताकि यह शहर में रहकर अच्छी तरह से पढ़- लिख सकेगा।
(ग) वंशीधर तिवारी का आशय यह था कि जाति-बिरादरी का यही लाभ होता है। अपनी बिरादरी के लोगों की यही विशेषता है कि वे हर संभव प्रयास करके एक-दूसरे की मदद करते हैं।
(घ) कहानी में यह
आशय स्पष्ट नहीं हुआ। रमेश अपने वायदे को पूरा नहीं कर पाया। वह मोहन को घरेलू
नौकर से अधिक नहीं समझता था। उसने व परिवार ने मोहन का खूब शोषण किया और
प्रतिभाशाली विद्यार्थी का भविष्य चौपट कर दिया। अंत में उसे बेरोजगार कर घर वापस
भेज दिया।
(2) "उसकी आँखों में एक सर्जक की चमक थी" कहानी का यह वाक्य-
(क) किसके लिए कहा गया है ?
(ख) किस प्रसंग में कहा गया है ?
(ग) यह
पात्र-विशेष के किन चारित्रिक पहलुओं को उजागर करता है ?
उत्तर-
(क) यह वाक्य मोहन के लिए कहा गया है।
(ख) मोहन धनराम की दुकान पर हँसुवे में धार लगवाने आता है। काम पूरा हो जाने के बाद भी वह वहीं बैठा रहता है। धनराम एक मोटी लोहे की छड़ को गरम करके उसका गोल घेरा बनाने का प्रयास कर रहा होता है, परन्तु सफल नहीं हो पा रहा है। मोहन ने अपनी जाति की परवाह न करके हथौड़े से नपी-तुली चोट मारकर उसे सुघड़ गोले का रूप दे दिया। अपने सधे हुए अभ्यस्त हाथों का कमाल के उपरांत उसकी आँखों में सर्जक की चमक थी।
(ग) यह मोहन के
जाति-निरपेक्ष व्यवहार को बताता है। वह पुरोहित का पुत्र होने के बाद भी अपने बाल
सखा धनराम के आफर पर काम करता है। यह कार्य उसकी बेरोजगारी की दशा को भी व्यक्त
करता है। वह अपने मित्र से काम न होता देख उसकी मदद के लिए हाथ बढ़ा देता है और
काम पूरा कर देता है। पाठ के आस-पास
गलता लोहा महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. गाँव और शहर, दोनों जगहों पर चलने वाले मोहन के जीवन-संघर्ष में क्या फर्क है ? चर्चा करें और लिखें।
- उत्तर-मोहन का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। गाँव में उसे साधनहीनता एवं प्राकृतिक बाधाओं का संघर्ष झेलना पड़ा। अपने घर के आसपास विद्यालय न होने के कारण उसे दो मील की ऊँचाई चढ़कर, नदी को पार करके अपनी पढ़ाई करनी पड़ रही थी।
- शहर में इस प्रकार की बाधा तो नहीं थी, लेकिन संघर्ष और कठिनाइयाँ उसे वहाँ और ज्यादा झेलनी पड़ीं। रमेश बाबू के यहाँ उसे दिनभर नौकर की तरह काम करना पड़ता था। उसे हर परिस्थिति से समझौता करना पड़ रहा था। जिस पढ़ाई की उम्मीद लेकर वह गाँव से शहर आया था, वहाँ उसे वह नहीं मिल सकी। पढ़ाई के नाम पर साधारण से स्कूल से वह आठवीं तक ही पढ़ाई कर सका, जिससे एक मेधावी छात्र का उज्ज्वल भविष्य अंधकारमय हो गया।
प्रश्न 2. एक अध्यापक के रूप में त्रिलोक सिंह का व्यक्तित्व आपको कैसा लगता है ? अपनी समझ में उनकी खूबियों और खामियों पर विचार करें।
- उत्तर- मास्टर त्रिलोक सिंह एक परंपरागत अध्यापक हैं। वे बच्चों को मार-पीटकर पढ़ाई कराने में विश्वास रखते हैं। बच्चों को डाँटना, पीटना और कटु वचन कहना मानों उनका अधिकार है। वे धनराम पर तीनों तरीके आजमाते हैं।
- मास्टर जी के मन में जातिगत उच्चता और नीचता का भाव भी गहरे बैठा हुआ है। इसलिए वे मोहन को प्रेम करते हैं तथा धनराम का तिरस्कार करते हैं। धनराम को दिमाग में लोहा होने का व्यंग्य वचन कहना शोभनीय नहीं कहा जा सकता। वे धनराम से मुफ्त में दरांतियों पर धार भी लगवाते हैं। इसकी भी प्रशंसा नहीं की जा सकती। मास्टर त्रिलोक सिंह बच्चों को पढ़ाने लिखाने, सिखाने और आगे बढ़ाने में रुचि लेते हैं। उनके तरीके अशोभनीय हो सकते हैं, किंतु शिक्षा-कर्म में उनकी निष्ठा सच्ची है।
प्रश्न 3. 'गलता लोहा' कहानी का अंत एक खास तरीके से होता है। क्या इस कहानी का कोई अन्य अंत हो सकता है? चर्चा करें।
- उत्तर- इस कहानी का अंत, इसे प्रारंभ से जोड़ता है, इसलिए यह खास है। यदि कहानी के अंत में यह स्पष्ट कर दिया गया होता कि मोहन हँसुवा पर धार चढ़वाकर खेती करने निकल पड़ता है या लोहे के कार्य में ही रुचि रखते हुए जातिगत व पारंपरिक व्यवसाय की रूढ़ि से स्वयं को पूरी तरह मुक्त कर देता है, तो यह निष्कर्षात्मक कहानी होती, लेकिन इसमें पाठकों को सोचने समझने के अधिक मुद्दा नहीं मिलता। लोहे की छड़ को गोल करना एक आकस्मिक साहस या व्यवहार था। यदि वहाँ पर उसके पिता या गाँव के ही किसी सम्मानित वृद्ध व्यक्ति द्वारा उसे शाबाशी देते हुए कहानी का अंत किया गया होता, तो शायद कहानी का संदेश और भी अच्छा हो सकता था।
गलता लोहा परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1. पाठ में निम्नलिखित शब्द लौहकर्म से संबंधित हैं। किसका क्या प्रयोजन है ? शब्द के सामने लिखिए।
1. धौंकनी
2. दाँती
3. सँड़सी
4. आफर
5. हथौड़ा
उत्तर-
1. धौंकनी- यह आग को सुलगाने और धधकाने के काम आती है।
2. दराँती - दराँती मूलतः खेत में घास या फसलें काटने के काम आती है। लोहार मुख्य रूप से दाँती जैसे औजार बनाते हैं।
3. सँड़सी-लोहे की दो छड़ों का बना हुआ कैंचीनुमा औजार जिससे लोहार गर्म छड़ें, बटलोई आदि पकड़ते हैं।
4. आफर - भट्ठी या लोहार की दुकान।
5. हथौड़ा-लोहे
पीटने के काम आने वाला औजार।
प्रश्न 2. पाठ में 'काँट-छाँटकर' जैसे कई संयुक्त क्रिया शब्दों का प्रयोग हुआ है। कोई पाँच शब्द पाठ में से चुनकर लिखिए और अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर-
1. उलट-पलट-जब मैं घर पहुँचा तो देखा कि चोर घर में घुसकर सामान उलट-पुलट रहे थे।
2. उठा-पटक करना-जब मास्टर जी कक्षा में पहुँचे तो सारे बच्चे आपस में उठा-पटक कर रहे थे।
3. पढ़-लिखकर मोहन के पिता चाहते थे कि मोहन पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने ।
4. थका-माँदा-मोहन थका-माँदा घर पहुँचता था तो उसके पिता उसे पुराणों की कहानियाँ सुना- सुनाकर प्रेरित किया करते थे।
5. खा-पीकर-मोहन रोज
सुबह खा-पीकर स्कूल जाता था।
प्रश्न 3. 'बूते' का प्रयोग पाठ में तीन स्थानों पर हुआ है उन्हें छाँटकर लिखिए और जिन संदभों में उनका प्रयोग है, उन संदभर्थों में उन्हें स्पष्ट कीजिए।
- उत्तर- 1. बूढ़े वंशीधर जी के बूते का अब यह सब काम नहीं रहा। यहाँ इसका अर्थ है 'वश का', 'सामर्थ्य का' या 'बस का'। अर्थात् अब वंशीधर यह सब पुरोहिती का काम करने योग्य नहीं रहे। उनके शरीर में अधिक शक्ति नहीं रही।
- 2. यही क्या जन्म भर जिस पुरोहिताई के बूते पर उन्होंने घर संसार चलाया था, यह भी अब पैसे कहाँ कर पाते हैं।
- यहाँ 'बूते पर' का अर्थ है-आश्रय पर, सहारे पर।
3. दान-दक्षिणा के बूते पर वे किसी तरह परिवार का आधा पेट भर पाते थे।
- यहाँ 'बूते पर' का अर्थ है-सहारे, बल पर।
प्रश्न 4.
मोहन ! थोड़ा दही तो ला दे बाजार से।
मोहन ! ये कपड़े धोबी को दे तो आ।
मोहन ! एक किलो
आलू तो ला दे।
ऊपर के वाक्यों
में मोहन को आदेश दिए गए हैं। इन वाक्यों में 'आप'
सर्वनाम का
इस्तेमाल करते हुए उन्हें दुबारा लिखिए।
उत्तर-
- आप थोड़ा दही तो ला दें बाजार से।
- आप ये कपड़े धोबी को दे तो आएँ।
- आप एक किलो आलू तो ला दें।
गलता लोहा महत्वपूर्ण
प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. मास्टर त्रिलोक सिंह मोहन पर क्यों मुग्ध थे ?
उत्तर - मास्टर त्रिलोक सिंह मोहन की प्रतिभा और उसकी उच्च पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण उस पर मुग्ध थे । उन्हें मोहन की निम्नलिखित बातें पसन्द थीं-
1. मोहन मेधावी छात्र था। उसकी बुद्धि प्रखर थी।
2. वह अच्छा गायक भी था।
3. वह पुरोहिती खानदान का ब्राह्मण बालक था।
4. उसमें नेतृत्व का गुण था।
5. वह आज्ञाकारी था।
प्रश्न 2. पहाड़ी गाँवों की समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
- पहाड़ी गाँवों का रहन-सहन अत्यन्त कठिन होता है। वहाँ के रास्ते ऊँचे-नीचे होते हैं। बीच में नदियाँ पड़ती हैं। बदलते मौसम के साथ ही वहाँ का आवागमन चाधित होता है। जब नदियों में जल भर आता है, तो वहाँ का जन-जीवन मानो ठहर-सा जाता है। पहाड़ी बच्चों को विद्यालय जाने के लिए काफी परिश्रम करना पड़ता है।
प्रश्न 3. वंशीधर तिवारी ने मोहन को पढ़ने के लिए लखनऊ क्यों भेजा ?
- उत्तर - मोहन के गाँव के समीप कोई विद्यालय नहीं था। मोहन के पिता वंशीधर इतने सम्पन्न नहीं थे कि वे अपने पुत्र को छात्रावास में रखकर पढ़ा सकें। मोहन पढ़ाई-लिखाई में होनहार था। उसे पिता वंशीधर उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे। लखनऊ से रमेश बाबू आये और वंशीधर से अपने साथ लखनऊ ले जाकर पढ़ाने की बात की। इसलिए लखनऊ भेजने के लिए तुरन्त वंशीधर तैयार हो गए।
प्रश्न 4. पाठ के आधार पर वंशीधर के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
- उत्तर- वंशीधर तिवारी पुरोहित का कार्य करते हैं। वे ब्राह्मण हैं। श्रम, साधना, व्रत-उपवास उनके जोवन का अभिन्न अंग है। समाज के लोग उनका खूब आदर, सम्मान करते हैं। वे शिक्षा प्रेमी भी हैं। वे चाहते है कि उनका बेटा अच्छी व उच्च शिक्षा प्राप्त करे। परन्तु वे विवश हैं। पुरोहिती से उन्हें धन बहुत कम मिलता है इसलिए भर पेट भोजन भी सम्भव नहीं होता। पुत्र मोहन को पढ़ाना उनके लिए एक समस्या हो जाती है।
प्रश्न 4. गाँवों में जाति-पाँति के अंतर का प्रभाव व्यववहार पर किस प्रकार दिखाई देता है ?
- उत्तर- गाँवों में जाति-पाँति के अंतर को बहुत महत्व दिया जाता है। पुरोहिती धर्म या ब्राह्मणों को ऊँचा माना जाता है और शिल्पकारों को नीचा माना जाता है। इस अंतर का सीधा प्रभाव रोज-रोज के व्यवहार पर देखा जा सकता है। ब्राह्मण टोले के लोग लोहारों के घर में जाकर बैठते तक नहीं। वे खड़े-खड़े बात करते हैं। यदि लोहार उन्हें बैठने के लिए कहें तो वह भी असभ्यता मानी जाती है। धनराम मोहन से मार खाकर भी उससे ईष्यां नहीं करता क्योंकि वह उसे ऊँचा मानता है। मास्टर त्रिलोक सिंह भी पुरोहित-पुत्र मोहन पर अधिक ध्यान देते हैं, जबकि लोहार-पुत्र को 'धनुऔं' कहकर तिरस्कृत करते हैं।
प्रश्न 6. वंशीधर तिवारी ने मोहन को गाँव के उच्च विद्यालय से क्यों हटा लिया ?
उत्तर- गाँव का
उच्च विद्यालय चार मील की दूरी पर था। वहाँ पहुँचने के लिए दो मील की खड़ी ऊँचाई
थी। सबसे बड़ी मुसीबत थी- रास्ते की नदी। उसे पार करके जाना खतरनाक होता था। एक
दिन अचानक नदी में जोर का गन्दला पानी आ गया। उस दिन मोहन जैसे-तैसे ही बच सका।
अतः प्राण का संकट देखते हुए वंशीधर तिवारी ने मोहन को उच्च विद्यालय से हटा लिया।
प्रश्न 7. इस कहानी के आधार पर मोहन का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- उत्तर- इस कहानी का मोहन अभागा पात्र है। वह उच्च जाति में पैदा होकर भी साधनहीन तथा विवश है। वह प्रतिभाशाली गायक तथा प्रखर छात्र है। परंतु उसकी परिस्थितियाँ अत्यन्त कठिन हैं। वह चुपचाप सब परिस्थितियों को सहता है। वह स्वभाव से मौन, शांत, धीर, गंभीर और सहनशील है। इस कारण वह रमेश बाबू के परिवार में रहकर नौकरों जैसा व्यवहार भी सह लेता है। वह जानता है कि उसके पिता उसका दुख देखकर सहन नहीं कर पाएँगे। इसलिए वह उन्हें रमेश बाबू के दुर्व्यवहार के बारे में कुछ नहीं बताता।
- मोहन के व्यवहार में उच्च कुल का अहंकार नहीं है। वह चाहता है कि वह भी हाथ का काम करे किंतु समाज के जड़ वातावरण के कारण सोच में पड़ा रहता है। कहानी के अंत में वह अपनी जातिगत उच्चता की रूढ़ि को लाँघ जाता है। वह धनराम के साथ मिलकर एक हो जाता है।
प्रश्न 8. रमेश बाबू मोहन को किस नियत से लखनऊ ले गए ?
- उत्तर- रमेश बाबू की नियत ठीक नहीं थी। वे स्वार्थी स्वभाव के व्यक्ति थे। उन्हें घरेलू नौकर की आवश्यकता थी। बिना दाम दिए उन्हें नौकर मिल जायेगा। रात-दिन घर में रहकर काम करेगा। तनख्वाह भी नहीं देना होगा ऐसा सोचकर मोहन को लखनऊ ले गए।
प्रश्न 9. मोहन की स्कूली शिक्षा कैसी हुई ?
- उत्तर- मोहन की स्कूली शिक्षा बहुत सामान्य स्तर की हुई। उसे अत्यन्त मामूली से स्कूल में पढ़ाया गया। आठवीं पास करने बाद ही उसे छोटे-मोटे तकनीकी स्कूल में डाल दिया गया। वास्तव में उसकी पढ़ाई दिखावटी थी। न तो उसे पढ़ने के लिए समय दिया गया और न उस पर धन और ध्यान लगाया गया।
प्रश्न 10. रमेश बाबू ने मोहन को आठवीं के बाद हाथ का काम क्यों सिखाया ? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर- रमेश बाबू ने
मोहन को आठवीं के बाद हाथ का काम सिखाने का फैसला किया। इसके दो कारण थे-
- 1. पहला कारण दिखावटी था। उनकी मान्यता थी कि आजकल बी.ए., एम.ए. करने का कोई लाभ नहीं। इससे बेरोजगारी ही बढ़ती है।
- 2. दूसरा कारण वास्तविक था। वे मोहन की पढ़ाई पर पैसा नहीं खर्च करना चाहते थे। वे कम-से-कम धन खर्च करके उससे घर के काम लेते रहना चाहते थे।