कृष्णनाथ लेखक परिचय | स्पीति में बारिश सारांश | Krishnath Biography in Hindi 11th Class

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 कृष्णनाथ लेखक परिचय, स्पीति में बारिश सारांश 

कृष्णनाथ लेखक परिचय |  स्पीति में बारिश सारांश | Krishnath Biography in Hindi  11th Class


कृष्णनाथ जीवन परिचय

  • सुप्रसिद्ध साहित्यकार कृष्णनाथ का जन्म सन् 1934 में वाराणसी (उत्तरप्रदेश) में हुआ। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एम.ए. करने के बाद उनका झुकाव समाजवादी आंदोलन और बौद्ध- दर्शन की ओर हो गया। वे समाजवादी आन्दोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहे हैं तथा लोहिया एवं जयप्रकाश नारायण के साथ काफी समय बिताया। बौद्ध दर्शन में उनकी गहरी पैठ है। वे अर्थशास्त्र के विद्वान हैं और काशी विद्यापीठ में इसी विषय के प्रोफेसर भी रहे। अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओं पर उनका अधिकार है और दोनों को पत्रकारिता से भी उनका जुड़ाव रहा। हिंदी की साहित्यिक पत्रिका 'कल्पना' के संपादक-मंडल में वे कई साल रहे और अंग्रेजी के 'मैनकाइंड' का कुछ वर्षों का संपादन भी किया। राजनीति, पत्रकारिता और अध्यापन की प्रक्रिया से गुजरते-गुजरते वे बौद्ध दर्शन की ओर मुड़े। भारतीय और तिब्बती आचार्यों के साथ बैठकर उन्होंने नागार्जुन के दर्शन और वज्रयानी परंपरा का अध्ययन शुरु किया। भारतीय चिंतक जे. कृष्णमूर्ति ने जब बौद्ध विद्वानों के साथ चिंतन मनन शुरु किया तो कृष्णनाथ भी उसमें शामिल थे। बौद्ध दर्शन पर कृष्णनाथ जी ने काफी कुछ लिखा है। कृष्णनाथ जी को लोहिया सम्मान से सम्मानित किया गया।

 

कृष्णनाथ की रचनाएँ - 

  • कृष्णनाथ जी मुख्यतः यात्रा-वृत्तांत के लेखक हैं, उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं- लद्दाख में राग-विराग, किन्नर धर्मलोक, स्पीति में बारिश, पृथ्वी परिक्रमा, हिमालय यात्रा, अरुणाचल यात्रा, बौद्ध निबंधावली। इसके अतिरिक्त इन्होंने हिंदी और अंग्रेजी में कई पुस्तकों का संपादन भी किया।

 
कृष्णनाथ की साहित्यिक विशेषताएँ - 

  • कृष्णनाथ जी सृजन-आकांक्षा की पूर्ति हेतु यायावर हो गए। एक यायावरी तो उन्होंने वैचारिक घरातल पर की थी, दूसरी सांसारिक अर्थ में। कृष्णनाथ ने हिमालय की यात्रा के दौरान उन स्थानों को खोजा, जिनका संबंध बौद्ध दर्शन और भारतीय मिथकों से है। यहीं उनकी यात्रा-वृत्तांत की अनूठी विधा चमककर सामने आई। वे केवल पर्यटक की तरह यात्रा नहीं करते, बल्कि तत्ववेत्ता की तरह वहाँ का अध्ययन करते चलते हैं। वे उस स्थान से जुड़ी समस्त स्मृतियों को उघाड़कर सामने लाते हैं। उनके यात्रा-वृत्तांतों में नवीनता है। उनके यात्रा-वृत्तांत स्थान विशेष से जुड़े होकर भी भाषा, इतिहास, पुराण का संसार समेटे हुए है।

 

स्पीति में बारिश सारांश   

  • लेखक बताता है कि हिमाचल प्रदेश के लाहुल-स्पीति जिले की तहसील स्पीति है। ऊँचे दरों व कठिन रास्तों के कारण इतिहास में इसका नाम कम हो रहा है। आजकल संचार के आधुनिक साधनों में वायरलेस के जरिए ही केलंग व काजा के बीच संबंध रहता है। केलंग के बादशाह को हमेशा अवज्ञा या बगावत का डर रहता है। यह क्षेत्र प्राय: स्वायत्त रहा है चाहे कोई भी राजा रहा हो। इसका कारण यहाँ का भूगोल है। भूगोल ही इसकी रक्षा तथा संहार करता है। पहले राजा का हरकारा आता था तो उसके आने तक अल्प वसंत बीत जाता था। जोरावर सिंह हमले के समय स्पीति के लोग घर छोड़कर भाग गए थे। उसने यहाँ के घरों और विहारों को लूटा। स्पीति में जनसंख्या लाहुल से भी कम है। 1901 में यहाँ 3,231 लोग थे, अब यहाँ 34,000 लोग हैं। लाहुल स्पीति का क्षेत्रफल 12,210 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ जनसंख्या प्रति वर्गमील बहुत कम है। भारत को यहाँ का प्रशासन ब्रिटिश राज से मिला। अंग्रेजों ने 1846 ई. में कश्मीर के राजा गुलाब सिंह से यहाँ का प्रशासन लिया था ताकि वे पश्चिमी तिब्बत के ऊन वाले क्षेत्र में जा सकें। लद्दाख मंडल के समय यहाँ का शासन स्थानीय राजा (नोनो) द्वारा चलाया जाता था। अंग्रेजी काल में कुल्लू के असिस्टेंट कमिश्नर के समर्थन से नोनो काम करता था। स्थानीय लोग इसे अपना राजा मानते थे।

 

  • 1873 ई. में स्पीति रेगुलेशन में लाहुल व स्पीति को विशेष दर्जा दिया गया। यहाँ पर अन्य कानून लागू नहीं होते थे। यहाँ के नोनो को मालगुजारी इकट्ठा करने तथा छोटे-छोटे फौजदारी के मुकदमों का फैसला करने का अधिकार दिया गया। उससे ऊपर के मामले यह कमिश्नर के पास भेज देता था। 1960 में इस क्षेत्रको राज्य में तथा 1966 में हिमाचल प्रदेश बनने के बाद राज्य के उत्तरी छोर का जिता बनाया गया।

 

  • स्पीति 31:42 और 32-59 अक्षांश उत्तर और 77-26 और 78-42 पूर्व देशांतर के बीच स्थित है। यहाँ चारों तरफ पहाड़ है। इसकी मुख्य पाटी स्पीति नदी की पाटी है। स्पीति नदी तिब्बत की तरफ से आती है या किन्नौर जिले से बहती हुई सतलुज में मिलती है। लेखक पारा नदी, पिन की घाटी के बारे में भी मान भाई से युभा है। यह क्षेत्र अत्यंत बीहड़ और बीरान है। यहाँ लोग रहते कैसे हैं? स्पीति के बारे में बताने पर यह सवाल শাঁখ लेखक से पूछते हैं। ये क्षेत्र आठ-नौ महीने शेष दुनिया से कटे हुए हैं। ये एक फसल उगाते हैं तथा सकी व रोजगार भी नहीं है, फिर भी वे यहाँ रह रहे हैं, क्योंकि वे यहाँ रहते आए हैं। यह तर्क से परे की चीज है।

 

  • स्पीति के पहाड़, लाहुल से अधिक ऊँचे, भव्य व नंगे हैं। इनके सिरों पर स्पीति के नर-नारियों का आर्तनाद जमा हुआ है। यहाँ हिम का आर्तनाद है, विदुरन है और व्यथा है। स्पीति मध्य हिमालय की पाटी है। यह हिमालय का तलुआ है। लाहुल समुद्र की तरह से 10,535 फीट ऊँचा है तो स्पीति 12,986 फीट ऊँचा। स्पीति घाटी को घेरने वाली पर्वत श्रेणियों की ऊँचाई 16,221 से 16,500 फीट है। दो चोटियाँ 21,000 फीट से भी ऊँची हैं। इन्हें बारालचा श्रेणियाँ कहते हैं। दक्षिण की पर्वत श्रेणियों को माने श्रेणियाँ कहते हैं। सायद बौद्धों के माने मंत्रों के नाम पर इनका नामकरण किया गया हो। बौद्धों का बीज मंत्र 'ओं मणि पद्मे हूं' है। इसे संक्षेप में माने कहते हैं।

 

  • स्पीति के पार बाह्य हिमालय दिखता है। इसकी एक चोटी 23,064 फीट ऊँची बताई जाती है। संखक घोटियों से होड़ लगाने के पक्ष में नहीं है। इन ऊँचाइयों से होड़ लगाना मृत्यु है। कभी-कभी उनका मान-मर्यादा करना मर्द और औरत की शान है। लेखक चाहता है कि देश-दुनिया के मैदानों व पहाड़ों से युवक-युवतियाँ आकर अपने अहंकार को गलाकर फिर चोटियों के अहंकार को चूर करें। माने की चोटियाँ बूढ़े लामाओं के जाप से उदास हो गई। युवक-युवतियाँ यहाँ आकर किलोल करें तो यहाँ आनंद का प्रसार हो।

 

  • स्पीति में दो ही ऋऋतुएँ होती हैं। जून से सितंबर तक अल्पकालिक वसंत ऋतु तथा शेष वर्ष सौत ऋतु होती है। वसंत में जुलाई में औसत तापमान 15° सेंटीग्रेड तथा शीत में, जनवरी में औसत तापमान ४० सेंटीग्रेड होता है। वसंत में दिन गर्म तथा रात ठंडी होती है। शीत ऋऋतु की ठंड की कल्पना ही की जा सकती है। यहाँ वसंत का समय लाहुल से कम होता है। इस ऋतु में यहाँ फूल, हरियाली आदि नहीं आते। दिसंबर से मई तक बर्फ रहती है। नदी-नाले जम जाते हैं। तेज हवाएँ मुँह, हाथ व अन्य खुले अंगों पर शूल की तरह चुभती है। यहाँ मानसून की पहुँच नहीं है। यहाँ बरखा बहार नहीं है। कालिदास को अपने 'ऋतु संहार ग्रंथ में से वर्षा ऋतु का वर्णन हटाना होगा। उसका वर्षा वर्णन लाहुल-स्पीति के लोगों की समझ से परे है। वे नहीं जानते कि बरसात में नदियाँ बहती हैं, बादल बरसते हैं और मस्त हाथी चिंघाड़ते हैं। जंगलों में हरियाली छा जाती है और वियोगिनी स्त्रियाँ तड़पती हैं। यहाँ के लोगों ने कभी पर्याप्त वर्षा नहीं देखी। धरती सूखी, ठंडी व वंच्या रहती है।

 

  • स्पीति में एक ही फसल होती है जिनमें जी, गेहूँ, मटर व सरसों प्रमुख हैं। सिंचाई के साधन पहाड़ों से बहने वाले झरने हैं। स्पीति नदी का पानी काम में नहीं आता। स्पीति की भूमि पर खेती की जा सकती है बशर्ते यहाँ पानी पहुँचाया जाए। यहाँ फल, पेड़ आदि नहीं होते। भौगोलिक विशेषता के कारण स्पीति नंगी व वीरान है। वर्षा यहाँ एक घटना है। लेखक एक घटना का वर्णन करता है। यह काजा के डाक बंगले में सो रहा था। आधी रात के समय उन्हें लगा कि कोई खिड़‌की खढ़क रहा है। उसने खिड़‌की खोली तो हवा का तेज झोंका मुँह व हाथ को छीनने-सा लगा। उसने पल्ला बंद किया तथा आड़ में देखा कि बारिश हो रही है। बर्फ की बारिश हो रही थी। सुबह उठने पर पता चला कि लोग उनकी यात्रा को शुभ बता रहे थे। यहाँ बहुत दिनों बाद बारिश हुई।

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