अवहट्ट भाषा
अवहट्ट भाषा -
- भाषा परिवर्तनशील है। कोई भाषा जब साहित्य का माध्यम होकर एक प्रतिष्ठित रूप ग्रहण करती है और व्याकरण के नियमों में बँध जाती है, तब वह जनभाषा से दूर हो जाती है। अपभ्रंश की भी यही गति हुई। अपभ्रंश के ही परिवर्तित रूप को अवहट्ट कहा गया है। ग्यारहवीं से लेकर चौदहवीं शताब्दी के अपभ्रंश कवियों ने अपनी भाषा को अवहट्ट कहा है। इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ज्योतिरीश्वर ठाकुर ने अपने 'वर्ण रत्नाकर' में किया। 'प्राकृत पैंगलम' की भाषा को उसके टीकाकार वंशीधर ने अवहट्ट माना है।
- संदेशरासक के रचियता अब्दुररहमान ने भी अवहट्ट भाषा का उल्लेख किया है। मिथिला के विद्यापति ने अपनी कृति 'कीर्तिलता' की भाषा को अवहट्ट कहा है। इन सबने जिन भारतीय भाषाओं के नाम गिनाये हैं- सांस्कृत, प्राकृत, मागधी, 'शौरसेनी, पिशाची उनमें या तो अपभ्रंश नाम लिया या अवहट्ट। दोनों को एक साथ नहीं रखा। इससे लगता है कि अपभ्रंश और अवहट्ट में कोई भेद नहीं समझा गया।
- आधुनिक भाषाविज्ञानियों ने तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर अवहट्ट को उत्तरकालीन या परवर्ती अपभ्रंश माना है और बताया गया है कि निश्चय रूप से अवहट्ट में ध्वनिगत, रूपगत और शब्द संबंधी बहुत से तत्त्व ऐसे हैं जो इसे पूर्ववर्ती अपभ्रंश से अलग करते हैं। संनेहरासय और कीर्तिलता के अतिरिक्त वर्णरत्नाकर और प्राकृतपैंगलम के कुछ अंश, नाथ और सिद्ध साहित्य, नेमिनाथ चौपाई, बहुबलि रास, आदि अवहट्ट की प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
आधुनिक काल हिन्दी सामान्य परिचय -
- आधुनिक भारतीय भाषाओं के काल का प्रारम्भ दसवीं शताब्दी से माना जाता है। इन भाषाओं की उत्पत्ति प्राकृत से मानी जाती है तथा इनका सम्बन्ध किसी-न-किसी रूप में अपभ्रंश से जोड़ा जाता है, यथा- सांस्कृत प्राकृत अपभ्रंश, आधुनिक भारतीय आर्य भाषाएँ। आधुनिक काल की भाषाएँ अनेक हैं, हिन्दी, बंगला, उड़िया, असमी, मराठी, गुजराती, पंजाबी, सिंधी। भाषाविदों के मत में उस समय के शौरसेनी, पेशाची, ब्राचड़, खस, महाराष्ट्री, अर्धमागधी तथा मागधी अपभ्रंशों से ही आधुनिक आर्य भाषाएँ विकसित हुई हैं। हिन्दी उनमें एक है जो सब भारतीय आर्य भाषाओं की बड़ी बहन है, और सबसे अधिक जनसमूह द्वारा बोली-समझी जाती है।
हिन्दी की तीन कालक्रमिक स्थितियाँ हैं -
(1) आदिकाल (सन् 1000 से 1500 ई.)
(2) मध्यकाल (सन् 1500 से 1800 ई.)
(3) आधुनिक काल सन् 1800 से आज तक)