सांख्य का ईश्वर विषयक विचार
सांख्य का ईश्वर विषयक विचार
- सांख्य दर्शन के ईश्वर कृष्णीय स्वरूप में ईश्वर के विषय में कुछ भी संकेत नहीं मिलता है। ईश्वर के विषय में ईश्वरकृष्ण मौन हैं। कपिलउपदिष्ट सांख्य ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार करता था। किन्तु बौद्धों के प्रभाव से सांख्य दर्शन निरीश्वर वादी हो गया ऐसा कुछ आचार्यों का मत है। परवर्ती सांख्याचार्य विज्ञान भिक्षु ने ईश्वर के अस्तित्व को माना है। सांख्य ने प्रकृति और पुरूष के संयोग में ईश्वर के भूमिका को नहीं माना है। सांख्य के समान तन्त्र योगदर्शन में ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार किया गया है और वह पुरूष विशेष ही है।
दार्शनिक चिन्तन
- दार्शनिक चिन्तन का प्रारम्भ वेदों में ही मिलता है। किन्तु उसे सुव्यवस्थित रूप देकर सर्वप्रथम कपिल ने ही सांख्य शास्त्र का उपदेश दिया। जा आसुरि पंचशिख जैगीषव्य और वार्षगण्य आदि के द्वारा विस्तार को प्राप्त किया। आज सांख्य के जिस स्वरूप से हम परिचित हैं। वह चिन्तन ईश्वरकृष्ण की सांख्य कारिका पर आधारित है। सांख्य में अपनी तत्वमीमांसा में प्रकृति और पुरूष इन दो मूल तत्वों को स्वीकार किया है। प्रकृति सहित उसके परिणाम महत आदि मिलकर 24 हैं। इस प्रकार कुल तत्वों की संख्या 25 है। प्रकृति और पुरूष में समान और असमान धर्म हैं। प्रकृति की सिद्धि पांच हेतुओं से और पुरूष की अस्तित्व की सिद्धि व बहुत्व की सिद्धि पांच-पाच हेतुओं से की गई है। प्रकृति और पुरूष के सप्रयोजन संयोग से सृष्टि होती है। प्रकृति से महत उससे 11 इन्द्रिया 5 तन्मात्र, 5 तनमात्रों से पांच महाभूत उत्पन्न होते है। उत्तरवर्तीसृष्टि इन्हीविकारोंकाखेल है। सांख्य दर्शन पहले ईश्वरवादी था किन्तु ईश्वकृष्णीय सांख्य ईश्वर के विषय में मौन है।
पारिभाषिक शब्दावली
तत्वमीमांसा- तत्वों की संख्या स्वरूप सृष्टि प्रक्रिया और ईश्वर विचार ही तत्वमीमांसा है।
प्रकृति- सृजनकारिणी त्रिगुणात्मिका मूल शक्ति।
पुरूष - निर्गुण चेतन साक्षी द्रष्टा कैवल्य उदासीन तत्त्व।
मोक्ष- बन्धन से छुटकारा दुःखों का एकान्तिक व
आत्यन्तिक शमन कैवल्य की प्राप्ति।