सांख्यकारिका 3 मूलपाठ, अर्थ व व्याख्या
मूलप्रकृतिरविकृर्तिमहदाद्याः प्रकृतिविकृतयःसप्त
षोऽशकस्तु विकारो न प्रकृतिर्न विकृतिः पुरूषः ।। का0-3
अन्वय- मूलप्रकृतिःअविकृतिः । महदाद्याः सप्त प्रकृति विकृतयः। षोडशकः विकारः । तु पुरूषः न प्रकृतिः न विकृतिः अस्ति।
अर्थ-मूल प्रकृति किसी का कार्य नही है। महत् आदि-(महत, अहंकार, पंचतन्मात्र) सात कारण और कार्य दोनो हैं। 16 तत्वो का समूह (11 इन्द्रियाँऽपंचमहाभूत) केवल कार्य हैं। किन्तु पुरूष न तो कारण है और न तो कार्य है।
शारदाव्याख्या-मूलप्रकृतिःअविकृतिः मूलं च सा प्रकृतिः इति प्रकृतिः। प्रकरोति इति प्रकृतिः सर्जना करने वाली मूल शक्ति प्रकृति है वह गुणों की साम्यावस्था है। वह किसी का कार्य नही है वह अकारण कारण है। प्रकृति का स्वरूप देवीभागवत् मे इस प्रकार वर्णित है-
प्रकृष्टवाचकः प्रश्च कृतिश्च स्ष्टिवाचकः ।
सृष्टौ प्रकृष्टा या देवी प्रकृति सा प्रकीर्तिता ।।
गुणे सत्वे प्रकृष्टे च प्रशब्दो वर्तते श्रुतः ।
मध्यमे रजसि कृश्च तिशब्दस्तमसि स्मृति।।
त्रिगुणात्मस्वरूपा या सा शक्तिसमन्विता।
प्रधाना सृष्टिकरणे प्रकृतिस्तेन कथ्यते ।।
प्रथमे वर्तते प्रश्च कृतिश्च सृष्टिवाचकः ।
यह प्रकृति किसी का कार्य नही होने से अविकृति है वह महत् आदि का तो कारण है किन्तु प्रकृति का कोई अन्य कारण नही है। अतः वह अजा है।
महदाद्याः सप्त प्रकृतविकृतयः-
महदाद्याः महत् आदिःयेषां ते महादाद्याः सप्त प्रकृतिविकृतयः प्रकृतयश्च विकृतयश्च
प्रकृतिकृतयः महत है प्रारम्भ में जिसके वे महत्आदि तत्व हैं। वे सात हैं-महत् अहंकार पाँच तनमात्राएं। वे सात तत्व प्रकृति और विकृति अर्थात् कारण और कार्य दोनो है जैसे महत् अहंकार का कारण है अतः प्रकृति है किन्तु स्वयं मूल प्रकृति का कार्य है अतः विकृति भी है। अहंकार, 11 इन्द्रियों एवं 5 तन्मात्राओं का कारण है और महत् का कार्य है। पांच तन्मात्र पांच महाभूतो के कारण हैं एवं अहंकार के कार्य है।
षोडशकः विकारः-
षोडषकः षोडषतत्वानां समुदायः षोडशकः विकारः 16 तत्वो का समुदाय ही षोडशक है ये 16 तत्व है 11 इन्द्रियाँ 5 महाभूत। ये तत्व केवल कार्य हैं।
तु पुरूषः न प्रकृतिः न विकृतिः किन्तु पुरूष न तो कारण है न तो कार्य है। पुरूष का स्वरूप आगे प्रतिपादित है। पुरूष कारण और कार्य की श्रृंखला से परे है। पुरूष सत् चित है।
विशेष-जिन 25 तत्वों का अभ्यास कैवलय सम्पन्न कराता है उनका चतुर्धा विभाग 1. अविकृति 2. प्रकृति मुक्त विकृति 3. विकार, 4. न प्रकृति न विकृति के रूप मे किया गया है।
पूर्वापर सम्बन्ध-प्रकृति आदि 25 तत्व है उनके अस्तित्व में क्या प्रमाण है ऐसी आकांक्षा होने पर कह गया है .