सांख्यकारिका 5 मूलपाठ, अर्थ व व्याख्या
पूर्वापर सम्बन्ध
यतः प्रमेयों का ज्ञान प्रमाण से होता है। सांख्य के अनुसार प्रमाण तीन ही है। उनके लक्षण क्या है ?
ऐसी आशंका होने पर कहते हैं -
अन्वय प्रतिविषयाध्यवसायः दृष्टम्।
अनुमानं त्रिविधम् आख्यातम् तल्लिङ्गलिङ्पूिर्वकम्।
तु आप्तश्रुतिराप्तवचनम्।
प्रतिविषयाध्वसायो दृष्टं त्रिविधमनुमानमाख्यातम्।
तल्लिङ्गलिङ्पूिर्वकमाप्तश्रुतिराप्तवचनं तु ।।। का0-5
अर्थ-
विषय से सन्निकृष्ट इन्द्रियाश्रित बुद्धि का व्यापार प्रत्यक्ष है। अनुमान को तीन प्रकार का कहा गया है। वह लिंङ्ग (व्याप्य) और लिङ्गी (व्यापक) के ज्ञान से होता है। आप्तश्रुति जन्य अर्थ ज्ञान ही आगम प्रमाण है।
शारदाव्याख्या
प्रतिविषयाध्यवसायः दृष्टम्-विषय से सन्निकृष्ट इन्द्रियाश्रित बुद्धि का व्यापार प्रत्यक्ष है। विषयं विषयं प्रति इति प्रतिविषयम् प्रतिविषयेषु श्रोत्रादीनां शब्दादिविषयेषु, अध्यवसायः दृष्टंप्रत्यक्षम् (गौडपाद)। अर्थात् त्वचा के 'द्वारा स्पर्श विषय का चक्षु के द्वारा रूप का, रसना के द्वारा रस का, नासिका के द्वारा गन्ध का अध्यवसाय अर्थात निश्चय जो बुद्धि का व्यापार है वही प्रत्यक्ष प्रमाण है। व्यास भाष्य मे प्रत्यक्ष पर इस तरह विचारमिलता है-
इन्द्रियप्रणालिकया चित्तस्य वाह्यवस्तूपरागात्तद्विषया सामान्यविषयात्मनोऽर्थस्यविशेषावधारण-
प्रधानावृत्तिःप्रत्यक्षंप्रमाणं।फलमविशिष्टःपौरूषेयश्चित्तवृत्तिवोधः।
प्रत्यक्ष का लक्षण न्यायसूत्र मे इस प्रकार है।
इन्द्रियार्थसन्निकर्षात्पन्नं ज्ञानमव्ययदेश्यमव्याभिचारिव्यवसायात्मकं प्रत्यक्षम्
न्याय दर्शन इन्द्रियों को प्रमाण मानता है। किन्तु सांख्य बुद्वि के अध्यवसाय को प्रमाण मानता है।
- तल्लिङ्गलिङ्पूिर्वकम् अनुमानम्- कारिकाकार ने पहले भेद बतलाया है तब अनुमान का लक्षण किया है। यहां पहले अनुमान का लक्षण करते हैं फिर उसके भेद का वर्णन किया जायेगा। लिड.ग और लिङ्गीपूर्वक होने वाले ज्ञान को अनुमान कहा जाता है। अनुमान का अर्थ है अनु अर्थात् पश्चात् और मान का अर्थ है ज्ञान। इस तरह जो ज्ञान प्रत्यक्ष और आगम प्रमाण पर आश्रित हो वह अनुमान प्रमाण है। इसमें व्याप्य से व्यापक का और व्यापक से व्याप्य का ज्ञान होता है। जैसे धूम से अग्नि का अनुमान दण्ड के द्वारा यति होने का ज्ञान। काली कोट से वकील होने का अनुमान ।
- अनुमानं त्रिविधम् आख्यातम्-अनुमान के तीन भेद हैं। पूर्ववत शेषवत् और सामन्यतोदृष्ट। ऐसी ही स्वीकृति न्याय की भी है- अथ तत्पूर्वकं अनुमानं पूर्ववच्छेषवत् सामान्यतोदृष्टं च (न्यायसूत्र) पूर्ववत अनुमान वह है जिसमें पूर्व अर्थात् कारण को देखकर कार्य का ज्ञान होता है। जैसे उमड़े हुए वादलो को देखकर होने वाली वृष्टि का अनुमान। मौसम विभाग की भविष्यवाणियाँ पूर्ववत्, अनुमान ही है। शेषवत् अनुमान वह है जिसमे कार्य को देखका कारण का ज्ञान होता है। जैसे बढ़ी हुई नदी को देखकर देशान्तर में होने वाली वृष्टि का अनुमानाकिन्तु गौडपाद इसका अन्य उदाहरण दिये है।
सामान्यतोदृष्टंनाम-यत्रअप्रत्यक्षे लिड्. लङ्गिनोः सम्बन्धे केनचिदर्थेन लिड.गस्य सामान्यादप्रत्यक्षो
लिडि.गी गम्यते यथा कार्यतः प्रकृत्युपलब्धिः ।
आप्तश्रुतिः आप्तवचनम्इति- आप्तश्रुति जन्य अर्थ ज्ञान ही शब्द प्रमाण है।
- आप्तश्रुतिरितिः - आप्ताः आचार्याः ब्रह्मादयःश्रुतिर्वेदः आप्ताश्च श्रुतिश्च आप्तश्रुतिः तदुक्तमाप्तवचनः ब्रह्मा आदि आचर्यों के वचन जन्य अर्थ और वेद जन्य अर्थ ज्ञान दोनो हीआगम प्रमाण है। आप्त का लक्षण गौडपादभाष्य में इस प्रकार किया गया अनुमान प्रमाण पर भारतीय दर्शन में सर्वाधिक सूक्ष्म चिन्तन न्याय दर्शन मे हुआ है।
आगमो ह्याप्तवचनमाप्तं दोषक्षयाद्विदुः ।
क्षीणदोषोऽनृतं वाक्यं न बूयाद्धेत्वसम्भवात्।।
स्वकर्मण्यभियुक्तो य सड. गद्वेषविवर्जितः ।
पूजितस्तविधैर्नित्यमाप्तो ज्ञेयः स तादृशः ।।
प्रमाणो का स्वरूप व भेद बतला दिया गया है।