मनोविज्ञान की शैक्षिक भूमिका (Educational Role of Psychology)
मनोविज्ञान, मानव व्यवहार का अध्ययन करता है और शैक्षिक
परिस्थितियों में वह उस व्यवहार में संशोधन करता है। इसलिये मनोविज्ञान की शैक्षिक
भूमिका इस प्रकार है-
1. मनोविज्ञान और शिक्षा सिद्धान्त (Psychology and Educational Theory)-
- शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा के सिद्धान्तो के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा के प्राचीन मानदण्डों को बदला है। नये मानदण्ड स्थापित किये है। विलियम जैम्स (William James) ने अपनी पुस्तक 'ऐ टॉक टु टीचर्स' में इस तथ्य की पुष्टि इस प्रकार की है- 'शिक्षण ने हर जगह मनोविज्ञान के साथ सहमति प्रकट की है। मनोविज्ञान के नियमों के अनुसार अनेक प्रकार की शिक्षण विधियों का विकास हुआ है। मनोवैज्ञानिक होने के कारण हम प्रयोग की जाने वाली विधियों के सही या गलत होने का निर्णय पहले ही ले सकते हैं।
- जॉन डीवी (John Dewey), थार्नडाईक आदि ने स्पष्ट कर दिया है कि शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने शिक्षण, शिक्षा सिद्धान्त एवं व्यवहार को सशक्त आधार प्रदान किया है।
2. शिक्षा मनोविज्ञान एवं समकालीन व्यवहार (Educational Psychology and Contemporary Practices) -
- अनुसंधानों के आधार पर शिक्षा मनोविज्ञान ने पाठ्यक्रम, निर्देशात्मक सामग्री, शिक्षण विधियों में महत्वपूर्ण परिवर्तन किये हैं। शिक्षा मनोविज्ञान में, शिक्षा व्यवहार को अधिकाधिक स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
यह परिवर्तन इन क्षेत्रों में प्रकट होता है।
1. शिक्षण के मूल्यांकन में मार्गदर्शन।
2. कक्षा शिक्षण में अभिप्रेरणा।
3. अधिगम का स्थानान्तरण एवं मानसिक अनुशासन ।
4. पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधियाँ।
5. वैयक्तिक भेदों के आधार पर विभिन्न मापन विधियों का विकास ।
6. व्यक्तित्व समायोजन एवं मानसिक स्वास्थ्य ।
7. शैक्षिक सांख्यिकी एवं शैक्षिक अनुसंधान ।
3. शिक्षा मनोविज्ञान और शिक्षण (Educational Psychology and Teaching)-
- शिक्षण के सम्बन्ध में शिक्षा मनोविज्ञान के पाठकों के समक्ष तीन उभरते। (1) किसे शिक्षा दी जाये। (2) शिक्षा की प्रक्रिया क्या है (3) विशेष शिक्षा और दैनिक जीवन की शिक्षा। विद्यालय में बालकों को पढ़ाते समय शिक्षक इस बात का ध्यान रखते हैं कि कुशलतापूर्वक पढ़ायें जिससे बालकों की शक्तियों का विकास हो। धार्मिक शिक्षा देते समय, किसी धर्म विशेष की नहीं अपितु धर्म के सर्वमान्य तथ्यों से अधगत कराया जाए। शिक्षण की धारणा का आधार है- बालक सीख सकता है। इसी विश्वास को लेकर शिक्षक बालक को अधिगम सामग्री एवं शिक्षण विधियों द्वारा सिखाता है।
शिक्षा मनोविज्ञान, इन शैक्षिक कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक चलाता है-
(1) वंशक्रम तथा वातावरण के प्रभाव से विकस्ति विभिन्न विशेषताओं, योग्यताओं तथा क्षमताओं को व्यक्ति तथा समाज के लिये अपनाना।
(2) वंशक्रम से प्राप्त विशेताओं के वातावरण प्रदान कर विकसित करना।
(3) मनुष्य का बहुविधि (Multifacet) विकास करना।
(4) जीवन के आरम्भ से लेकर परिपक्वावस्था तक मनुष्य का विकास करना।
4. शिक्षा मनोविज्ञान तथा शिक्षक की आवश्यकतायें (Educational Psychology and Needs of Teachers) -
- शिक्षकों की अनेक प्रकार की शैक्षिक आवश्यकताएँ होती है। शिक्षक शिक्षा आयोग के अनुसार 'अच्छे शिक्षक, छात्रोपयोगी शिक्षण सामग्री के चयन को जानते हैं। वे यह भी जानते हैं कि इस सामग्री का प्रभावशाली प्रयोग किस प्रकार किया जाता है, शिक्षा मनोविज्ञान, वैयक्तिक भेद, शिक्षण विधियों, अनुशासन, छात्र- विकास प्रेरणा, दिशा, कक्षागत संगठन, विषय सामग्री और उसका गठन, छात्रों की प्रगति एवं मूल्यांकन वैयक्तिक कठिनाइयाँ, शिक्षण की दशाएँ, पठन की कठिनाई, वांछित आदत्त निर्माण आदि आवश्यकताओं की ओर संकेत करता है तथा उनको हल करने का मार्ग सुझाता है। उसे सदा स्मरण रखना चाहिये कि बालकों को सिखाने के प्रति उसे चेतन, सैद्धान्तिक तथा निष्ठावान होना चाहिये।
5. शिक्षा मनोविज्ञान तथा अनुसंधान (Educational Research) -
- मनोविज्ञान यद्यपि अभी परिपक्वावस्था तक नहीं आया है तो भी उसने अधिगम, प्रेरणा तथा समायोजन आदि के सिद्धान्तों की रचना की है। वैज्ञानिक अध्ययनों ने शिक्षकों तक मार्गदर्शन किया है। विभिन्न समस्याओं का अध्ययन करने हेतु अनुसंधान का मार्ग प्रशस्त किया है।
मनोविज्ञान का शिक्षा में प्रयोग और कठिनाइयाँ (Application of Psychology in Education and its Difficulties)
यद्यपि मनोविज्ञान एक व्यावहारिक विज्ञान है किन्तु जब इसका प्रयोग शिक्षा में
किया जाता है तो अनेक कठिनाइयाँ इसके मार्ग में उत्पन्न होती हैं जिससे
अनुसंधानकर्ताओं को बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। मनोविज्ञान के सिद्धान्तों का
शिक्षा में प्रयोग करने में ये कठिनाइयाँ सामने आती है-
1. मनोविज्ञान एक नया विज्ञान (Psychology is a new Science) -
मनोविज्ञान का
वैज्ञानिक विकास क्रम 19वीं सदी के अन्तिम चरण से आरम्भ होता है। 1890 ई. में
विलियम जेम्स ने मनोविज्ञान पर क्रमबद्ध अध्ययन प्रस्तुत किया। उस समय तक भौतिक
विज्ञानों का विकास हो चुका था। मनोविज्ञान में अभी किसी समस्या विशेष पर निश्चित
सिद्धान्तों का निर्माण नहीं हुआ है। मनोविज्ञान की विभिन्न विचारधाराएँ भी किसी
एक समस्या पर अलग- अलग अपने विचार प्रकट करती रही है।
2.गत्यात्मक व्यवहार का अध्ययन (Dynamics) -
- मनोविज्ञान, मानव के उन व्यवहारों का अध्ययन है जो कि गतिशील होते हैं। मानव व्यवहार विभिन्न परिस्थितियों में क्षण- क्षण परिवर्तित होते रहते हैं। भौतिक विज्ञानों में नियन्त्रित (Controlled) दशाओं में किसी भी पदार्थ में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन तो सम्भव है, परन्तु नियन्त्रित दशाओं में मानव व्यवहार का अध्ययन सम्भव नहीं है। आर. एस. एलिस के अनुसार- "मनोविज्ञान में अध्ययन किये जाने वाली क्रियाएँ भौतिक विज्ञान की भाँति भिन्न नहीं हैं। उन्हें अलग नहीं किया जा सकता। उन्हें धन से नहीं खरीदा जा सकता और न ही उन्हें आवश्यकतानुसार संग्रहित ही किया जा सकता है। उनकी स्वीकृति, उपस्थिति एवं सहयोग उस समय अपेक्षित है जब हम किसी प्रयोग का आयोजन करते हैं।"
3. व्यक्तिगत भेदों क समस्या (Problems of Individual Differences) -
- मानव व्यवहार में सामान्य तत्वों का समावेश होता ही है, परन्तु व्यक्ति-व्यक्ति के व्यवहार, स्वभाव एवं अभिव्यक्ति में भिन्नता होती है। कक्षा में सामूहिक व्यवहार की समस्या तो हल करने में सरल होती है परन्तु जब बालक विशेष की समस्याओं का अध्ययन करना पड़ता है तो कठिनाई उत्पन्न हो जाती है। बालक के व्यवहार, प्रेरणा, अवधान को केन्द्रित करके प्रयोगात्मक विधि से अध्ययन करने में जो कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं, उनमें जो निष्कर्ष प्राप्त होते हैं, उनमें विश्वसनीयता (Realiability) का अभाव रहता है।
4. मनोविज्ञान के प्रयोग और पशु तथा छात्र (Psychological Experiments are done on animals and children) -
- मनोविज्ञान के सामान्य सिद्धान्तों के निरूपण के लिए पशुओं तथा छात्रों पर प्रयोग किये जाते हैं। पशुओं पर किये गये प्रयोगों का जहाँ तक सम्बन्ध है, वे मानव-समूह तथा मानव पर लागू नहीं किये जा सकते। छात्रों पर किये गये प्रयोगों से प्राप्त निष्कर्षों में पूर्णता का अभाव रहता है।
5. विभिन्न मनोवैज्ञानिक मत (Various Psychological opinions) -
- मनोविज्ञान के शिक्षा में प्रयोग करते समय एक बड़ी कठिनाई यह आती है, अनेक प्राप्त परिणामों से वाद- विवाद उत्पन्न होता है और यह वाद संघर्ष का रूप धारण कर लेता है और अनेक विचारधारायें (Schools) प्रचलित होने लगती हैं। किसी एक मत को निर्धारित करना या मानना, मान का प्रश्न बन जाता है। उदाहरणार्थ वाटसन मूल प्रवृत्तियों (Instincts) का अस्तित्व नहीं मानता है तो लैसले (Lashlay) जटिल व्यवहारों के अर्जन में विश्वास नहीं करता, जबकि वाटसन (Watson) तथा लैसले, दोनों ही व्यवहारवादी (Behaviorist) हैं। कई बार ऐसा भी होता, है कि मनोवैज्ञानिक एक सिद्धान्त में विश्वास तो करते हैं परन्तु उनकी व्याख्या अलग-अलग होती है। सी.एच. जुड (C.H. Judd) के अनुसार- "यह सौभाग्य का विषय है कि शिक्षा पूर्णतः मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला पर निर्भर नही करती और न ही विभिन्न मनोवैज्ञानिक विचारधाराओं की परस्पर विरोधी व्याख्याओं पर ही आश्रय खोजती है। प्रायोगिक शिक्षा स्वतन्त्र रूप से प्रयोगसिद्ध (Emperical) ।