प्रयोगात्मक (विश्लेषणात्मक/चिन्तनात्मक) विधि |B.Ed First Semester Notes in Hindi

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 प्रयोगात्मक (विश्लेषणात्मक/चिन्तनात्मक) विधि 

प्रयोगात्मक (विश्लेषणात्मक/चिन्तनात्मक) विधि |B.Ed First Semester Notes in Hindi
 

प्रयोगात्मक विधि/विश्लेषणात्मक विधि 

  • प्रयोगात्मकता मौलिक तथा वैज्ञानिक विधि है। इसका मनोविज्ञान तथा दूसरे विज्ञानों में केन्द्रीय स्थान है। प्रयोगात्मक विधि ने ही मनोविज्ञान को विज्ञान का दर्जा दिया है। कोलिन्ज तथा ड्रेवर ने कैसा सुन्दर कहा है, 'प्रयोगात्मक विधि के बिना मनोविज्ञान काल देश है।'

 

प्रयोगात्मक विधि का अर्थ तथा परिभाषा 

  • प्रयोगात्मक विधि की परिभाषा प्रयोग की परिभाषा में निहित है। प्रयोग पूर्ण नियंत्रित अथवा प्रयोगशाला की परिस्थितियों में किये गए कार्यों का बाह्यमुखी अवलोकन होता है। 
  • इस विधि में हम नियमित तथा वैज्ञानिक ढंग से चलते हैं न कि अनियमित ढंग से। प्रयोगात्मक विधि को समझने के लिए हमें प्रयोग की आवश्यकताओं का ध्यान रखना चाहिए।

 

प्रयोगात्मक विधि के तत्त्व या आवश्यकताएँ 

प्रयोग के अनिवार्य तत्त्व या आवश्यकताएँ निम्नलिखित हैं-

 

1. मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला-अनिवार्य उपकरणों से सुसज्जित एक मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला होनी चाहिए। 

2. प्रयोगकर्ता-एक या अधिक प्रयोगकर्ता होने चाहिए। 

3. विषयी या परीक्षार्थी-एक या अधिक परीक्षार्थी होने चाहिए जिन पर प्रयोग किया जा सके। भौतिक विज्ञानों में प्रयोग निर्जीव वस्तुओं या मृतक शरीरों पर किये जाते हैं। परन्तु मनोविज्ञान में प्रयोग सजीव व्यक्तियों पर किये जाते हैं। 

4. उत्तेजक उत्तेजक से तात्पर्य वातावरण की किसी भी ऐसी भौतिक शक्ति से है जो शरीर को काम करने या प्रतिक्रिया करने की उत्तेजना प्रदान करे।

5. अनुक्रिया-अनुक्रिया उत्तेजक के प्रति प्रतिक्रिया है। इसे 'व्यवहार में परिवर्तन' भी कहा जा सकता है जो दर्शनीय होता है। अतः व्यवहार में दर्शनीय परिवर्तन को अनुक्रिया कहा जाता है। 

6. परिवर्त्य - 'परिवर्त्य' का अर्थ है जिसे बदला जा सकता हो या जो अपने आप को बदल सके या विभिन्न रूप धारण कर सके। उत्तेजक के बदल जाने पर अनुक्रियाएं भी बदल जाती हैं। उत्तेजक एक प्रकार का परिवर्त्य है और अनुक्रिया दूसरी प्रकार का। 'उत्तेजक' में प्रयोगकर्ता अपनी इच्छानुसार परिवर्तन करता है। वह इसे जानबूझ कर विधिवत रूप से परिवर्तित करता है ताकि इस बात को जाना जा सके कि उत्तेजक के परिवों की विभिन्नताओं का अनुक्रियाओं के परिवों पर क्या प्रभाव पड़ता है। अनुक्रियाओं के परिवर्त्य उत्तेजक परिवत्यों का अनुसरण करते हैं।

 

जेम्स एन. शेफर के कथनानुसार,

"परिवर्त्य शब्द स्वतः ही ऐसी घटना या प्रक्रिया की ओर संकेत करता है जो विभिन्न मूल्यों को धारण कर सकती हो। एक व्यक्ति का कद और वजन उसके शारीरिक परिवर्तों के उदाहरण हैं जबकि उसकी बुद्धि और उसका व्यक्तित्व मनोवैज्ञानिक परिवों के अन्तर्गत आते हैं।"

 

प्रयोगशाला/विश्लेषणात्मक पद्धति के उद्देश्य तथा आंकड़े संकलन में सामान्य नियम बताइये ।  

प्रयोगात्मक विधि के उद्देश्य 

1. कार्य तथा कारण का संबंध देखना। 

2. व्यवहार तथा उसके उन सिद्धान्तों का अध्ययन करना जिनकी सहायता से व्यवहार को समझा जा सके, उसकी भविष्यवाणी की जा सके तथा उसे नियंत्रित किया जा सके। 

3. आतंरिक अंगों के परिवर्तनों का अध्ययन करना। 

4. तथ्यों की व्याख्या तथा मापदंड करना। 

5. मनोविज्ञान संबंधी तथ्यों के ज्ञान में वृद्धि करना।

 

प्रयोगशाला-कार्य के सामान्य नियम 

1. स्पष्ट समझ प्रयोग के उद्देश्य और प्रक्रिया के प्रत्येक चरण के कारणों की स्पष्ट समझ होनी चाहिए। जब तक आप को समस्या प्रक्रिया तथा आदेशों की पूरी समझ न हो तब तक प्रयोग को आरम्भ न करें। 

2. प्रक्रिया में विभिन्नता नहीं- प्रक्रिया में विभिन्नता नहीं होनी चाहिए। आदेशों में थोड़ी-सी विभिन्नता आंकड़ों के संग्रह में बहुत विभिन्नता उत्पन्न कर सकती है जो भ्रामक होती है। 

3. प्रतियोगिता न समझो - प्रयोग को अपने साथ काम करने वालों या दूसरे साथियों के साथ मुकाबले की भावना से न देखो। आपको केवल आदेशों का ही अनुसरण करना चाहिए और परिणामों की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। व्यक्तिगत विभिन्नताएं तो अटल हैं और उन विभिन्नताओं की खोज करना मनोविज्ञान का काम है। परीक्षार्थी को कभी भी निश्चित प्रकार का अंक प्राप्त करने का यत्न नहीं करना चाहिए-नहीं तो रिपोर्ट भ्रामक होगी। 

4. वस्तुपरक बनिए- प्रयोगकर्ता के रूप में आपको वस्तुपरक बनना चाहिए। केवल वही रिकार्ड करें जो आप देखें। परीक्षार्थी जो कुछ करता है उस पर आश्चर्य या निराशा प्रकट मत करें क्योंकि इस प्रकार का प्रकटीकरण शुद्ध परिणामों के लिए घातक सिद्ध होता है। याद रखिए कि आप एक भावुक व्यक्ति का अध्ययन कर रहे हैं। इसके लिए पूर्ण वस्तुपरकता अत्यन्त आवश्यक है। तब तक विचार-विमर्श मत करें जब तक सभी कोशिशें पूरी न हो जाएं। 

5. शुद्ध रिकार्ड करना-परिणामों को शुद्ध रूप में रिकार्ड करना चाहिए। अनियमिकताओं की उपेक्षा मत कीजिए। उनको रिकार्ड कीजिए और अगर हो सके तो उनकी व्याख्या कीजिए। 

6. उपकरण से परिचय-जिस उपकरण का आपने प्रयोग करना है उसका आपको पूर्ण परिचय प्राप्त होना चाहिए और बिजली के कनैक्शनों का भी पूरा ज्ञान होना चाहिए। यदि उपकरण में कोई दोष उत्पन्न हो जाए तो तत्काल इन्सट्रक्टर को सूचित करना चाहिए और उसको ठीक करने में सहायता करनी चाहिए। 

7. उत्तेजक सामग्री को छुपा कर रखें-कई प्रयोगों मे उत्तेजक सामग्री को तब तक छुपाये रखना पड़ता है जब तक उसे दिखाने का उचित समय न आये। यदि उत्तेजक को समय से पहले दिखा दिया जाए तो उसका महत्व ही समाप्त हो जायेगा। इससे प्राप्त परिणाम ठोस नहीं होंगे। 

8. तालिका का फार्म पहले ही बना लेना चाहिए-निरीक्षित बातों तथा आत्म-कथ्य को नोट करने के लिए तालिका का फार्म पहले से बना लेना चाहिए।

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