शिक्षा मनोविज्ञान की व्यक्तिगत अध्ययन विधि के वर्णन कीजिए?
व्यक्तिगत अध्ययन विधि (Case Study Method)
- केस शब्द का प्रयोग हम जीवन में कई अर्थों में करते हैं। जैसे-डॉक्टर रोगी के कष्ट की जानकारी के लिए, वकील मुवक्किल की पैरवी के लिए, क्लर्क फाइलों में दर्ज केसों का निपटान करने के लिए। इन सभी परिस्थितियों में केस शब्द का प्रयोग ऐसे विषय या व्यक्ति के लिए किया जाता है, जिसकी छानबीन कर निरीक्षण किया जाता है जिससे व्यक्ति को समस्यात्मक स्थिति से निकाला जा सके। मनोविज्ञान विषय में भी केस शब्द इसी रूप में प्रयुक्त किया जाता है। यहाँ पर ऐसे व्यक्ति की सहायता का प्रयास किया जाता है, जो किसी मनोरोग से ग्रसित होता है। उसका उस समस्या के सम्बन्ध में भली प्रकार अध्ययन किया जाता है।
इस अध्ययन में उसका अतीत, वर्तमान परिस्थितियाँ तथा भविष्य की सम्भावनाएँ देखी जाती हैं। इसे व्यक्तिगत अध्ययन कहा जाता है।
व्यक्तिगत अध्ययन प्रायः प्रमुख रूप से दो उद्देश् के लिए किए जाते हैं-
(1) व्यवहारात्मक समस्याओं का निदान तथा उपचार करने के लिए।
(2) अधिक उत्तम मार्गदर्शन तथा परामर्श देने के लिए।
- एक न्यादर्श के रूप में किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह सामान्य हो या उसका व्यक्तित्व पक्ष-शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक आदि में सामान्य से ऊपर अथवा नीचे हो, व्यक्तिगत अध्ययन के विषय के रूप में चुना जा सकता है। अतः व्यक्तिगत अध्ययन को केवल समस्यात्मक अथवा विशिष्ट बालकों तक सीमित रखने की आवश्यकता नहीं होती है। एक सामान्य व्यक्ति का भो अध्ययन किया जा सकता है। फिर भी अधिक समस्याग्रस्त व्यक्तियों की सहायता पहले करनी चाहिए।
इसलिए निम्नांकित व्यक्तियों का अध्ययन प्राथमिकता से किया जाता है-
(1) सृजनात्मक व्यक्तित्व,
(2) मेधावी अथवा प्रतिभाशाली,
(3) पिछड़े हुए बच्चे,
(4) कामुक, व्यसनी तथा समाज विरोधी व्यक्ति,
(5) अपराधी बालक अथवा अपराधी वयस्क,
(6) शारीरिक, सामाजिक, संवेगात्मक तथा शैक्षिक समस्याओं से ग्रसित व्यक्ति।
- इस विधि को उपयोग में लाने हेतु सर्वप्रथम उस व्यक्ति विशेष के साथ आत्मीयता एवं घनिष्ठता बढ़ाने का प्रयास किया जाता है जिसका कि हमें व्यक्तिगत अध्ययन करना है। ऐसा अध्ययन व्यक्ति के व्यवहार को उचित रूप से जानने सम्बन्धी कारणों का पता लगाने एवं फिर उसे उचित सम्भव परामर्श एवं सहायता प्रदान करने के लिए ही किया जाता है। इस अध्ययन में हमें व्यक्ति को सम्पूर्ण रूप में जानना होता है। उसके अतीत तथा वर्तमान की जानकारी प्राप्त करनी होती है तथा उसके सम्पूर्ण परिवेश के परिप्रेक्ष्य में उसके व्यवहार को परखना होता है। इस प्रकार का अध्ययन बहुत ही गम्भीर तथा गहन होता है। इस प्रकार के अध्ययन के लिए एक विशेष प्रकार के प्रारूप का प्रयोग करना काफी सुविधाजनक होता है। इससे व्यवहार का अध्ययन करने के कार्य को विश्वसनीय बनाने में काफी सहायता प्राप्त हो सकती है।
व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति के गुण
(1) इस अध्ययन पद्धति के द्वारा कई ऐसी छिपी हुई बातों तथा अवचेतन व्यवहार की परतों को उतारा जा सकता है, जिनके विषय में किसी अन्य व्यवहार जाँच विधि द्वारा सहायता नहीं मिलती है।
(2) इस अध्ययन पद्धति में किसी एक बालक के व्यवहार से जुड़ी समस्त बातों का इसके सम्पूर्ण रूप तथा परिवेश में अध्ययन किया जाता है। ऐसे अध्ययन से व्यवहार एवं उसके कारणों की तह तक पहुँच पाना सम्भव हो सकता है।
(3) इस विधि में अध्ययन का क्षेत्र काफी विस्तृत होता है। बहुत से लोगों तथा बहुत प्रकार के रिकार्ड तथा सूचना स्त्रोतों का इसमें उपयोग कर विश्वसनीय जानकारी एकत्र करने का प्रयास किया जाता है। अतः इसके अध्ययन के परिणाम परिश्रम से तैयार होने के कारण, अधिक विश्वसनीय तथा यथार्थ सिद्ध हो सकते हैं।
(4) समस्यात्मक तथा असमायोजित व्यवहार से प्रसित बालकों के व्यवहार का अध्ययन कर उन्हें उनके समायोजन में उचित सहायता प्रदान करने के कार्य में यह विधि एक सशक्त तथा सफल भूमिका निभा सकती है।
व्यक्तिगत अध्ययन पद्धति के दोष
इस अध्ययन पद्धति के प्रमुख दोष इस प्रकार है-
(1) प्राप्त सूचनाओं तथा सामग्री के आधार पर व्यवहार के कारणों की उचित व्यवस्था और फिर सर्वमान्य नियम स्थापित करने के कार्य में अध्ययनकर्ता को काफी कठिनाई आती है और बहुधा गलत विश्लेषण की ही सम्भावना अधिक रहती है।
(2) इस विधि का प्रयोग क्षेत्र भी सीमित है। प्रायः समस्यात्मक बालकों या व्यक्तियों के व्यवहार अध्ययन क्षेत्र में ही इसका प्रयोग किया जाता है।
(3) व्यक्तिगत अध्ययन में सूचना स्त्रोत बहुत अधिक क्षेत्र में फैले हुए होते हैं। इतनी अधिक सूचनाएँ एकत्र करना सहज नहीं है।
(4) जिन स्त्रोतों तथा साधनों का उपयोग इस विधि में सूचना इकट्ठी करने के लिए किया जाता है उनको विश्वसनीयता तथा वस्तुगतता के बारे में किसी भी प्रकार की गारण्टी नहीं दी जा सकती। बहुधा इसमें त्रुटि की भी अधिक आशंका रहती है।
(5) व्यक्तिगत अध्ययन कार्य एक तकनीकी कार्य है। इसे ठीक प्रकार सम्पादित करने के लिए अच्छी प्रकार प्रशिक्षण लेने की आवश्यकता रहती है।
(6) इस विधि में नियन्त्रित या व्यवस्थित परिस्थितियों में अध्ययन होना सम्भव नहीं होता। अतः वैज्ञानिकता या प्रामाणिकता का इस प्रकार के अध्ययन में लगभग अभाव सा ही पाया जाता है।
- उपर्युक्त दोषों तथा कमियों के बावजूद व्यक्तिगत अध्ययन का महत्व कम नहीं है। व्यक्तियों को उनके सम्पूर्ण रूप में जानने, समझने और उनके व्यवहार सम्बन्धी मूल कारणों का पता लगाने में इस विधि का कोई मुकाबला नहीं है। अतः व्यवहार के अध्ययन में इस विधि को हमेशा उपयुक्त स्थान दिया जाना चाहिए।