अनुप्रस्थ काट विधि |Cross Sectional Method

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शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की अनुप्रस्थ काट विधि का वर्णन कीजिए?

अनुप्रस्थ काट विधि |Cross Sectional Method


 

अनुप्रस्थ काट विधि (Cross Sectional Method) 

  • इस विधि में अनुसन्धानकर्ता कई प्रकार के समूह बनाते हैं। यह विधि कालानुक्रमिक विधि के ठीक विपरीत है। इसमें अनुसन्धानकर्ता समूहों का निर्माण उम्र व सामाजिकआर्थिक स्तरों के आधार पर करता है। इन सभी समूहों का अध्ययन एक समय मे एक साथ किया जाता है और व्यवहार का मापन तुलनात्मक आधार पर होता है। उदाहरण के लिए-एक शिक्षक 5th, 8th, 10th के छात्रों के आत्मसम्मान का अध्ययन इस प्रकार से करता है कि वह तीनों ही कक्षाओं के छात्रों का समूह बनाकर एक साथ आत्मसम्मान का अध्ययन एक बार में करके निष्कर्ष निकाल सकता है। 
  • इस विधि को समकालीन उपागम तथा प्रतिनिध्यात्मक उर। गम भी कहा जाता है। विकास के अध्ययन में प्रथम कदम यह अपनाया जाता है कि भिन्न-भिन्न आयु स्तरों के व्यक्तियों या बालकों पर विकास के किसी भी पक्ष के प्रभाव का अध्ययन किया जाता है। इस अध्ययन में भिन्न-भिन्न आयु स्तरों के अलग-अलग प्रतिनिधिपूर्ण न्यादर्शों के समूहों को लेकर विकास का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अनुप्रस्थ काट उपागम में भिन्न-भिन्न आयु स्तरों के अलग-अलग समूहों को एक साथ लेकर अध्ययन किया जाता है।

 

सालबर्ग और उसके साथियों के अनुसार

"प्रत्येक सर्वेक्षण में एक ही समय में भिन्न- भिन्न आयु वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्तियों के समूह से आँकड़े प्राप्त करना समकालीन उपागम कहलाता है।"

 

  • उदाहरण के लिएयदि अध्ययनकर्ता को किशोरावस्था तक के बालकों में चिन्ता का अध्ययन करना है तो समकालीन उपागम के अन्तर्गत विभिन्न आयु वर्ग के बालकों के प्रतिनिधित्वपूर्ण न्यादर्शों के समूह (उदाहरणस्वरूप 5 वर्ष, 10 वर्ष, 15 वर्ष आदि) लेकर उनकी चिन्ता का मापन एक साथ ही एक ही समय में किया जाता है। इस प्रकार आँकड़े एकत्रित करके औसत के आधार पर परिणाम निकाले जाते हैं। 

  • हरलॉक ने अपने अध्ययनों के आधार पर कहा है कि विकासात्मक समस्याओं में प्रतिनिध्यात्मक उपागम द्वारा प्राप्त आँकड़ों से विकासात्मक प्रवृत्ति या झुकाव तथा अन्तः वैयक्तिक अस्थिरता का सही ज्ञान नहीं हो पाता है। इसका कारण यह है कि इस उपागम से प्राप्त आँकड़ें निश्चित विन्दु या अवस्था से सम्बन्धित होते हैं। यही कारण है कि विकास की सम्पूर्ण जानकारी या सम्पूर्ण प्रक्रिया की सही जानकारी इस उपागम से नहीं मिल पाती है।

 

अनुप्रस्थ काट विधि गुण-अनुप्रस्थ काट विधि में निम्नलिखित गुण होते हैं- 

(1) इस विधि में शिक्षक को लम्बे समय तक समूह से सहयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 

(2) इस विधि में समय कम लगता हैक्योंकि समूह का एक ही बार में अध्यापन कर लिया जाता है। 

(3) यह विधि कम खर्चीली है क्योंकि इसमें अध्ययन एक ही बार में पूरा हो जाता है। 

(4) आँकड़ों को लम्बे समय तक संग्रह करने की आवश्यकता नहीं होती है।

 

अनुप्रस्थ काट विधि दोष इस विधि में निम्नलिखित दोष हैं- 

(1) इस विधि से समूह में होने वाले परिवर्तन की दिशा का ज्ञान नहीं होताक्योंकि यह अध्ययन भिन्न-भिन्न समय पर न करके एक ही समय पर किया जाता है। 

(2) इस विधि से छात्र के व्यवहार तथा विकास में होने वाले परिवर्तन को न तो ठीक से मापा जा सकता है और न ही अध्ययन किया जा सकता है। 

(3) इस विधि में भी दस्ता प्रभाव दिखाई पड़ता है। यह बात तब उत्पन्न होती हैजब अनुप्रस्थ काट विधि में जो प्रयोज्यों के समूह होते हैं उनका आपसी उम्र विभेद अधिक होता है

 

उदाहरण-एक समूह 5 वर्ष के छात्रों का है और दूसरा 18 वर्ष के छात्रों का हैअब जब तुलना की जायेगी तो वह तुलना सार्थक नहीं होगी क्योंकि दोनों उम्र समूह की सामाजिक एवं आर्थिक पृष्ठभूमि व व्यवहार में काफी अधिक अन्तर होगा।

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