शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की आनुक्रमिक डिजाइन विधि
(अ) आनुक्रमिक डिजाइन विधि
(ब) दस्ता विधि
(स) जीवन कथा विधि ।
शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की आनुक्रमिक डिजाइन विधि
(अ) आनुक्रमिक डिजाइन विधि (Sequential Design Method)
- इस विधि में अनुप्रस्थ काट विधि तथा कालानुक्रमिक विधि का मेल दिखाई देता है। यह डिजाइन पर आधारित विधि है। इस विधि में शोधकर्ता विभिन्न आयु के या वर्ग के समूह का चयन करके दस्ता समूह का निर्माण करता है और इनका एक ही समय में एक साथ अध्ययन किया जाता है।
- उदाहरण-अनुसन्धानकर्ता तीन वर्गों 5, 6, 7 से तीन दस्ता समूह का निर्माण करके उनके संज्ञानात्मक विकास. का अध्ययन दो वर्षों तक (अर्थात् एक वर्ष अभी और दूसरा एक वर्ष बाद) कर सकते हैं। इसमें पहला दस्ता समूह को वर्ग 5 से और फिर वर्ग 6 में जाने पर दूसरा दस्ता समूह को वर्ग 6 में और फिर 7 में जाने पर तथा तीसरा दस्ता समूह को वर्ग 7 में और फिर 8 में जाने पर किया जा सकता है।
लाभ-इस विधि के निम्नलिखित लाभ हैं-
(1) इस विधि में एक ही आयु के बालकों का तुलनात्मक अध्ययन कर यह जाँच की जा सकती है कि दस्ता प्रभाव उत्पन्न हो रहा है या नहीं।
(2) यह डिजाइन अपने आप में निपुण है। आवश्यकता पड़ने पर उक्त अध्ययन में अध्ययनकर्ता 4 वर्ष तक प्रत्येक दस्ता समूह का अध्ययन 2 वर्ष के लिए कर सकता है।
(3) इस विधि से अध्ययनकर्ता अपने अध्ययन के परिणाम की जाँच कर सकता है कि वह सही है या गलत। इसके लिए वह कालानुक्रमिक और अनुप्रस्थ काट विधि से निकले निष्कर्ष की अपने परिणाम से तुलना कर सकता है।
आनुक्रमिक डिजाइन विधि दोष-
(1) यह विधि बहुत खर्चीली है।
(2) इन दोषों के बावजूद भी यह विधि शिक्षा मनोविज्ञान में काफी लोकप्रिय हैं क्योंकि यह कालानुक्रमिक विधि तथा अनुप्रस्थ काट विधि दोनों की जरूरतों को पूरा करती है।
(3) इस विधि में समय अधिक लगता है।
(4) इस विधि के आधार पर प्राप्त परिणाम के बारे में एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि क्या अध्ययन से प्राप्त विकासात्मक परिवर्तन दस्ता समूह से परे भी सामान्यीकृत किया जा सकता है।
शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की दस्ता विधि
एक ही समयावधि में जन्मे व्यक्तियों के समूह को दस्ता समूह कहा जाता है। इस प्रकार के अध्ययन में उन छात्रों का अध्ययन किया जाता है, जो एक ही समयावधि में विकसित हुए हों, जो एक विशेष सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक अवस्था से प्रभावित हुए हों। इसके फलस्वरूप कछात्रों के एक दस्ता से प्राप्त परिणाम दूसरे छात्र जो किसी दूसरे दस्ते में पले-बढ़े एवं विकसित हुए थे, पर लागू नहीं होता। इससे क्रॉस पीढ़ी समस्या भी उत्पन्न हो जाती है।
लाभ इस विधि से निम्नलिखित लाभ हैं-
(1) यह विधि बहुत खर्चीली नहीं है।
(2) इसमें अध्ययन एक ही बार में पूरा हो जाता है।
दोष इस विधि से निम्नलिखित दोष हैं-
(1) यदि प्रयोज्य के समूहों का आपसी उम्र विभेद अधिक होता है तो दस्ता प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
(2) प्रत्येक दस्ता समूह का अध्ययन लम्बे समय तक किया जा सकता है।
शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की जीवन कथा विधि
(Biographical Method)
- किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति के जीवन सम्बन्धी घटनाओं को लिखकर प्रकट की गई रचना जीवन कथा विधि कहलाती है। प्रायः इस प्रकार की जीवन कथाएँ बड़े और प्रसिद्ध व्यक्तियों जैसे-प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ, समाज सुधारक, क्रान्तिकारी, नेतागण, वीर पुरुष एवं महिलाएँ, कलाकार, लेखक, वैज्ञानिक, धर्मगुरू आदि के लिए लिखी जाती हैं। इन रचनाओं में व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व की झाँकी मिलती है तथा उसके माध्यम से उसके व्यक्तित्व की परख 'की जा सकती है। बहुत से साहित्यकारों के विषय में लिखी गई जीवन कथाएँ जैसे- 'प्रेमचन्द' व्यक्तित्व एवं कृतित्व-जैसी रचनाएँ उनके व्यक्तित्व एवं जीवन दर्शन को हमारे सामने लाने में काफी सहायता कर सकती हैं। इसी प्रकार 'मोहनदास करमचन्द गाँधी' जैसी जीवन कथाओं से व्यक्ति विशेष के व्यक्तित्व की छवि बनाने में काफी सहायता मिल सकती है।
गुण-जीवन कथा विधि के निम्नलिखित गुण हैं-
(1) यह कम खर्चीली विधि है।
(2) इनसे किसी व्यक्ति के विषय में काफी सूचनाएँ प्राप्त हो जाती हैं, जिससे किसी महान् व्यक्ति को समझना बहुत आसान हो जाता है।
दोष-जीवन कथा विधि के निम्नलिखित दोष हैं-
(1) इस विधि में सुनी-सुनाई बातों का अधिक प्रयोग किया जाता है।
(2) व्यक्ति अपने बुरे पक्ष को प्रकट नहीं करते हैं।