अनियन्त्रित अवलोकन अथवा प्राकृतिक अवलोकन की विधि| Method of natural observation

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अनियन्त्रित अवलोकन अथवा प्राकृतिक अवलोकन की विधि| Method of natural observation

 


अनियन्त्रित अवलोकन अथवा प्राकृतिक अवलोकन की विधि

  • अनियन्त्रित अवलोकन की विधि भी अन्तर्निरीक्षण विधि जितनी ही पुरानी है। इस विधि को वाह्यमुखी अवलोकन अथवा प्राकृतिक अवलोकन भी कहा जाता है। इस अवलोकन के दो भाग होते हैं- नियन्त्रित अवलोकन तथा अनियन्त्रित अवलोकन। नियन्त्रित अवस्थाओं में अवलोकन नियंत्रित अवलोकन कहलाता है। इसका दूसरा नाम प्रयोगात्मक अवलोकन भी है। अनियंत्रित अवलोकन प्राकृतिक अवलोकन कहलाता है।

अनियंत्रित अथवा प्राकृतिक अवलोकन से भाव 

  • अनियंत्रित अथवा प्राकृतिक अवलोकन से भाव दूसरों के व्यवहार को प्राकृतिक या अनियंत्रित अवस्थाओं में देखना है। यह मनुष्यों या जानवरों की शारीरिक क्रियाओं, शारीरिक परिवर्तनों, संकेतों, चेहरे की अवस्थाओं, आवाजों तथा चेष्टाओं से संबंध रखता है।

 

बाह्य अवलोकन विधि के चरण 

1. व्यवहार का अवलोकन अवलोकन विधि में पहला पग या पड़ाव व्यवहार को देखने या अनुभव करना है अर्थात् यदि हम बच्चों के विशेष व्यवहार को देखना चाहें तो हम उस समय देख सकते हैं जब वे मिल कर खेलते हैं। 

2. अवलोकन का लिखना-अवलोकन को तुरन्त तथा ध्यान से देखना और लिखना चाहिए। घटना के घटने और लिखने में न्यून से न्यून समय होना चाहिए। इस प्रकार अवलोकन बहुत ही बाह्यमुखी होगा। 

3. अवलोकन का विश्लेषण-अवलोकन को लिखने के पश्चात् उसका विश्लेषण करना चाहिये। 

4. अवलोकन का व्यापीकरण और व्याख्या-अवलोकन के कार्यक्रम में अन्तिम चरण है विश्लेषण और व्यापीकरण।

 

अच्छे अवलोकन की विशेषताएँ 

1. अवलोकन निश्चित होना चाहिए। 

2. यह आयोजित तथा नियमपूर्वक हो। 

3. यह वैज्ञानिक तथा विश्वसनीय हो। 

4. यह गुणात्मक होने के साथ-साथ मिकदारी भी होना चाहिए।

 

अवलोकन गुण 

1. यह अन्तर्मुखी अवलोकन में अधिक बाह्यमुखी तथा वैज्ञानिक है। 

2. इसके परिणाम अन्तर्मुखी अवलोकन से अधिक विश्वसनीय तथा उचित हैं। 

3. यह संयमी है क्योंकि इसमें प्रयोगशाला के कीमती उपकरण की आवश्यकता नहीं पड़ती। 

4. यह लचीला है और बहुत-सी परिस्थितियों में तथ्य एकत्र करने के लिए प्रयुक्त होता है। 

5. इसे बच्चों, असाधारण मनुष्यों और जानवरों का व्यवहार देखने के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है। 

6. इसके द्वारा व्यक्ति तथा समूह के व्यवहार का अवलोकन किया जा सकता है। 

7. यह प्रयोगात्मक विधि के लिए स्थान बनाता है क्योंकि प्रयोग कठोर, नियंत्रित अथवा प्रयोगशाला की परिस्थितियों में बाह्यमुखी अवलोकन के बिना और कुछ नहीं होता। 

8. इस विधि की सहायता से श्रेणी के कमरे में पढ़ाई की निगरानी की जा सकती है; समस्या बच्चों, पिछड़े बच्चों तथा प्रतिभाशाली बच्चों तथा कदाचारी बच्चों का व्यवहार देखा जा सकता है और शिक्षा का परिणाम निकाला जा सकता है।

 

अवलोकन दोष 

1. ट्रेंड दर्शकों का मिलना कठिन है और अनट्रेंड दर्शक व्यर्थ तथा अनुचित तथ्य इकट्ठे कर सकते हैं। 

2. यह अर्न्तमुखी है। दर्शक नर्म हो सकता है अर्थात् किसी समय वह रियायत दे सकता है और किसी समय कठोर हो सकता है। 

3. कई बार व्यवहार में बनावटीपन आ जाता है जैसे बनावटी आंसू या पाखंडी व्यवहार। इसके अतिरिक्त बच्चों और स्त्रियों के व्यवहार में अजनबी को देखकर बनावटीपन आ जाता है। 

4. कई बार हमें घटनाओं के पुनः घटने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है जैसे कि एक बच्चे के क्रोध का व्यवहार देखने के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है कि कब वह पुनः क्रोध में आता है। 

5. कुछ व्यक्तिगत समस्याएं तथा अनुभव देखे नहीं जा सकते जैसे लिंग अनुभव। 

6. अवलोकन द्वारा किसी मनुष्य का आंतरिक व्यवहार नहीं देखा जा सकता। 

7. अचेत मन को अवलोकन की सहायता द्वारा नहीं माना जा सकता।

 

अनियन्त्रित अवलोकन निष्कर्ष- 

  • चाहे प्राकृतिक अवलोकन की विधियों में बहुत-सी कठिनाईयां हैं परन्तु फिर भी इसका प्रयोग शिशु मनोविज्ञान तथा शिक्षा मनोविज्ञान में काफी होता है। अतः हम कह सकते हैं कि इस विधि में मनोविज्ञान को शिक्षा पर लागू करने में सहायता दी है और जहां तक सम्भव हो प्रयोगात्मक विधि को इसका पूरक बनाना चाहिए।

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