शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की निरीक्षण विधि | Observational Method

Admin
0

शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की निरीक्षण विधि को विस्तारपूर्वक समझाइए

शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की निरीक्षण विधि |Observational Method

 

निरीक्षण विधि (Observational Method) 

  • 'निरीक्षणका तात्पर्य है- ध्यानपूर्वक्र देखना। हम किसी व्यक्ति के व्यवहारआचरणक्रियाओंप्रतिक्रियाओं आदि को ध्यानपूर्वक देखकर उसकी मानसिक दशा का अनुमान लगा सकते हैं। उदाहरणार्थ-यदि कोई व्यक्ति जोर-जोर से बोल रहा है और उसके नेत्र लाल हैंतो हम जान सकते हैं कि वह क्रोधित है।

 

निरीक्षण दो प्रकार का होता है- 

(1) औपचारिक और 

(2) अनौपचारिक। 

  • औपचारिक निरीक्षणनियन्त्रित दशाओं में और अनौपचारिक निरीक्षणअनियन्त्रित दशाओं में किया जाता है। इनमें से अनौपचारिक निरीक्षणशिक्षक के लिए अधिक उपयोगी है। उसे कक्षा में और कक्षा के बाहर अपने छात्रों के व्यवहार का निरीक्षण करने के अनेक अवसर प्राप्त होते हैं। वह इस निरीक्षण के आधार पर उनके व्यवहार के प्रतिमानों का ज्ञान प्राप्त करकेउनको उपयुक्त निर्देशन दे सकता है।

 

निरीक्षण विधि का अर्थ (Meaning) 

  • गुडे तथा हाट के अनुसार, "विज्ञान निरीक्षण से प्रारम्भ होता है और अपने तथ्यों पुष्टि के लिए अन्त में निरीक्षण का सहारा लेता है।"

 

यंग के अनुसार

"निरीक्षण-नेत्रों द्वारा सावधानी से किए गए अध्ययन को-सामूहिक व्यवहारजटिल सामाजिक संस्थाओं और किसी पूर्ण वस्तु को बनाने वाली पृथक् इकाइय का निरीक्षण करने के लिए एक विधि के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

 

मोसर के अनुसार,

 "निरीक्षण को उचित रूप से वैज्ञानिक पूछताछ की श्रेष्ठ विधि कह जा सकता है। ठोस अर्थ में- निरीक्षण में कानों और वाणी की अपेक्षा नेत्रों का उपयोग होता है।"

 

  • उपर्युक्त विवरण और परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि निरीक्षण विधि में अध्ययन सावधानी से किया जाता हैनेत्रों का पूरी तरह उपयोग होता हैअध्ययन करने वाला प्रत्यक्ष रूप से भाग लेता है। इस विधि के द्वारा किसी भी अध्ययन की प्राथमिक सामग्री प्राप्त की जा सकती है तथा साथ ही साथ नियन्त्रित निरीक्षण विधि की सहायता से महत्वपूर्ण आँकड़े एकत्र किए जा सकते हैं। इस विधि की सहायता से सामूहिक व्यवहार का भी अध्ययन किया जा सकता है। इस विधि का उपयोग एक और स्वतन्त्र विधि के रूप में भी बाल- मनोविज्ञान के अध्ययनों में किया जाता है और साथ ही साथ इस विधि का उपयोग एक सहायक विधि के रूप में किया जाता है। जहाँ सामूहिक व्यवहार के अध्ययन की आवश्यकता होती हैवहाँ इस विधि का उपयोग बहुधा प्राथमिक आँकड़ों के संकलन के लिए किया जाता है। जैसे-अधिगम से सम्बन्धित अध्ययनप्रत्यक्षीकरणअभिप्रेरणासंवेगव्यक्तित्वनेतृत्वबालकों का सामाजिक विकास और सामूहिक व्यवहार आदि।

 

निरीक्षण विधि के पद (Steps) 

1. उपयुक्त योजना-

  • निरीक्षण विधि द्वारा अध्ययन करने से पहले आवश्यक है कि अध्ययन व्यवहार और समस्या के सम्बन्ध में उपयुक्त योजना बना ली जाए। निरीक्षणकर्ता को निरीक्षण करने से पहले ही निश्चय कर लेना चाहिए कि किन लोगों का निरीक्षण करना है और किस प्रकार के व्यवहार का निरीक्षण करना है। निरीक्षण के लिए क्षेत्रसमयउपकरण आदि के सम्बन्ध में पहले से ही योजना बना लेनी चाहिए।

 

2. व्यवहार का निरीक्षण-

  • निरीक्षणकर्ता पहले से योजना बना लेने के बाद योजना के अनुसार पूर्व निश्चित उपकरणों और आँखों की सहायता से व्यवहार का निरीक्षण प्रारम्भ करता है। वह निरीक्षणों के साथ-साथ विभिन्न उपकरणों की सहायता से व्यवहार को भी नोट करता जाता है।

 

3. व्यवहार को नोट करना-

  • व्यवहार को नोट करने के लिए भी वह उपकरणों का उपयोग करता है। जैसे-मूवी कैमरे के उपयोग से किसी भी प्रकार के व्यवहार के निरीक्षण को सरलता से नोट किया जा सकता हैइसी प्रकार से व्यवहार से सम्बन्धित संवादों को टेपरिकार्डर की सहायता से नोट किया जा सकता है।

 

4. विश्लेषण-

  • समस्या से सम्बन्धित व्यवहारों के निरीक्षणों को नोट करने के बाद अध्ययनकर्ता प्राप्त निरीक्षणों को यदि सम्भव होता है तो अंकों में बदलता है और प्राप्त अंकों का सारणीयन करता है और फिर विभिन्न सांख्यिकीय विधियों के आधार पर आँकड़ों का विश्लेषण करता है।

 

5. व्याख्या और सामान्यीकरण-

  • निरीक्षित व्यवहार का विश्लेषण करने के पश्चात् व्यवहार की व्याख्या की जाती है। यदि सम्भव होता है तो व्यवहार की व्याख्या विभिन्न सिद्धान्तों के आधार पर की जाती है अथवा व्यवहार के कारणों पर प्रकाश डालने का प्रयास किया जाता है। जब मनुष्यों का प्रतिदर्श लेकर अध्ययन किया जाता है तो इस अवस्था में प्राप्त परिणामों के सामान्यीकरण की आवश्यकता होती है। सामान्यीकरण मे देखा जाता है कि प्रतिदर्श से प्राप्त परिणाम कहाँ तक सामान्य जनसंख्या पर लागू होते हैं।

 

निरीक्षण विधि के प्रमुख गुण निम्नांकित हैं- 

1. शिक्षा के उद्देश्योंपाठ्यक्रम आदि में परिवर्तन-

विद्यालय में शिक्षकनिरीक्षकऔर प्रशासकसमय की माँगों और समाज की दशाओं का निरीक्षण करके शिक्षा के उद्देश्योंशिक्षण-विधियोंपाठ्यक्रम आदि में परिवर्तन करते हैं। 

2. बाल अध्ययन के लिए उपयोगी- 

यदि विधि बालकों का अध्ययन करने के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। गैरेट ने यहाँ तक कह दिया है- "कभी-कभी बाल मनोवैज्ञानिक को केवल यही विधि उपलब्ध होती है।" 

3. बालकों का उचित दिशाओं में विकास-

कक्षा और खेल के मैदान में बालकों के सामान्य व्यवहारसामाजिक सम्बन्धों और जन्मजात गुणों का निरीक्षण करके उनका उचित दिशाओं में विकास किया जा सकता है। 

4. विद्यालयों में वांछनीय परिवर्तन- 

डगलर एवं हॉलैण्ड के अनुसार- "निरीक्षण के परिणामस्वरूप प्राप्त होने वाली खोजों के आधार पर विद्यालयों में अनेक वांछनीय परिवर्तन किए गए हैं।"

 

निरीक्षण विधि के प्रमुख दोष इस प्रकार हैं- 

1. असत्य निष्कर्ष-

  • किसी बालक या समूह का निरीक्षण करते समय निरीक्षणकर्ता को अनेक कार्य एक साथ करने पड़ते हैं। जैसे-बालक का अध्ययन किए जाने के कारण को ध्यान में रखनाविशिष्ट दशाओं में उसके व्यवहार का अध्ययन करनाउसके व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारणों का ज्ञान प्राप्त करनाउसके व्यवहार के सम्बन्ध में अपने निष्कर्षों का निर्माण करना आदि। इस प्रकार निरीक्षणकर्ता को एक साथ इतने विभिन्न प्रकार के कार्य करने पड़ते हैं कि वह उनको कुशलता से नहीं कर पाता है। फलस्वरूपउसके निष्कर्ष साधारणतया सत्य के परे होते हैं।

 

2. स्वाभाविक त्रुटियाँ व अविश्वसनीयता-

  • डगलस एवं हॉलैण्ड के शब्दों में- "अपनी स्वाभाविक त्रुटियों के कारण वैज्ञानिक विधि के रूप में निरीक्षण विधि अविश्वसनीय है।"

 

3. प्रयोज्य का अस्वाभाविक व्यवहार- 

  • जिस व्यक्ति के व्यवहार का निरीक्षण किया जाता हैवह स्वाभाविक ढंग से परित्याग करके कृत्रिम और अस्वाभाविक विधि अपना लेता है।

 

4. आत्मनिष्ठता-

  • आत्मनिरीक्षण विधि के समान इस विधि में भी आत्मनिष्ठता का दोष पाया जाता है।

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top