प्रयोग सम्बन्धी रिपोर्ट (प्रतिक्रिया) लिखना
आंकड़े संग्रहीत करने, उनका विश्लेषण करने तथा निष्कर्षों पर पहुंचने के पश्चात् प्रयोगकर्ता को अपना प्रयोग लिखना चाहिए। प्रयोग की रिपोर्ट लिखते समय दो बातों को ध्यान मे रखना चाहिए-
(1) रिपोर्ट में प्रयोग की प्रत्येक महत्वपूर्ण बात सम्मिलित होनी चाहिए परन्तु रिपोर्ट यथासम्भव संक्षिप्त होनी चाहिए।
(ii) लिखते समय स्पष्टता की ओर भी ध्यान देना चाहिए। जहां लिखने के लिए संक्षिप्तता आवश्यक है वहां सरलता और स्पष्टता भी आवश्यक है। जहां तक हो सके बड़े- बड़े शब्दों और मुहावरों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
रिपोर्ट निम्नलिखित रूप से लिखी जानी चाहिए-
1. शीर्षक-
प्रयोग का नाम एवं क्रम संख्या, उसको करने की तिथि, प्रयोग समूहात्मक है या व्यक्तिगत अगर व्यक्तिगत है तो परीक्षार्थी के नाम का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। उचित शीर्षक चुनना चाहिए। इसमें प्रयोग की प्रकृति का स्पष्ट एवं पूर्ण उल्लेख होना चाहिए। यह छोटा होना चाहिए। प्रस्तावना में प्रधान मुहावरों जैसे- "A Study of या "An investigation of" का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योकि सामान्य रूप से इनका सबको ज्ञान होता है।
2. समस्या-
अध्ययन के उद्देश्य या अनुमानित सिद्धान्त-जिस की परीक्षा ली जानी है- का संक्षिप्त एवं स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
3. प्रस्तावना-
पूर्व साहित्य के सर्वेक्षण को रिपोर्ट की प्रस्तावना का आधार बनाना चाहिए। सम्बन्धित अध्ययनों का हवाला देकर समस्या को तर्कपूर्ण विधि से विकसित करना चाहिए। साहित्य-सर्वेक्षण का परिणाम धीरे-धीरे समस्या कथन की ओर अग्रसर करना चाहिए।
4. विधि-
रिपोर्ट के इस भाग में यह बताना चाहिए कि प्रयोग किस प्रकार किया गया। दूसरे शब्दों में इस भाग के अन्तर्गत आंकड़ा संकलन की विधि को स्पष्ट किया जाता है। विधि-
उल्लेख में निम्नलिखित सूचनाएं क्रमानुसार स्पष्ट की जानी चाहिए।
(i) विषय या परीक्षार्थी परीक्षार्थी का नाम, आयु, लिंग, शैक्षणिक योग्यताएं तथा उसके स्वास्थ्य का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। यटि प्रयोग में बहुत से परीक्षार्थियों को लेना है तो उनका सविस्तार उल्लेख होना चाहिए तथा उनको प्राप्त करने की विधि का भी उल्लेख होना चाहिए।
(ii) उपकरण-इस शीर्षक के अन्तर्गत उपकरण से सभी संबंधित तत्त्वों का उल्लेख होना चाहिए। यदि बिजली का प्रयोग करना है तो रेखाचित्र बनाकर सभी तारों का कनैक्शन दिखाना चाहिए।
(iii) डिजाईन-उपकरण का वर्णन करने के पश्चात् प्रयोग किये जाने वाले डिजाईन का उल्लेख होना चाहिए। परीक्षार्थियों के लिये ग्रुप निर्धारित करने की विधि तथा ग्रुपों के लिये निश्चित शीर्षक का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
(iv) प्रक्रिया-इस भाग में इस बात का उल्लेख होना चाहिए कि प्रयोग किस प्रकार किया जायेगा। समूचे कार्य में आने वाले प्रत्येक चरण का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। परीक्षार्थियों को दिये जाने वाले आदेशों तथा उन स्थितियों का भी स्पष्ट वर्णन होना चाहिए जिनमे प्रयोग किया जाना है। यह भी बताना चाहिए कि स्वतन्त्र परिवर्तों का किस प्रकार प्रयोग किया जायेगा तथा परतन्त्र परिवयों को किस प्रकार रिकार्ड किया जायेगा। इससे कोई भी व्यक्ति उसी प्रयोग को दोहरा कर परिणामों को पुष्ट कर सकेगा।
5. परिणाम एवं विचार-
इस भाग में समूचे संकलित आंकड़ों को प्रस्तुत करना चाहिए। गुणात्मक परिणामों को तालिकाओं और ग्राफों में स्पष्ट करना चाहिए। तालिकाओं के स्पष्ट शीर्षक होने चाहिए और उनका प्रत्येक खाना स्पष्ट होना चाहिए। इसके पश्चात् गुणात्मक आंकड़ो तथा आत्म-कथ्य का उल्लेख होना चाहिए। गुणात्मक आंकड़ों से इस प्रश्न का उत्तर मिलना चाहिए कि "किस प्रकार की मानसिक प्रक्रिया घटित हुई" और संख्यात्मक आंकड़ों से इस प्रश्न का उत्तर मिलना चाहिए, 'कितनी बार ? कितना आदि।
उसके पश्चात् संकलित सामग्री की व्याख्या होनी चाहिए। पूर्ण एवं शुद्ध विचार के पश्चात् परिणाम निकालने चाहिए। इन परिणामों का अन्य अध्ययनों के साथ संबंध स्थापित्त करना चाहिए। परिणामों की व्याख्या का भी प्रयास करना चाहिए।
इस बात का भी
उल्लेख होना चाहिए कि किन परिवत्यों का नियन्त्रण अपर्याप्त था, प्रयोग को
दोहराते समय कौन से सुधार करने चाहिए? संक्षेप में हम
कह सकते हैं कि परिणामों का आलोचनात्मक अध्ययन ही अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है।
6. निष्कर्ष- इस भाग में प्रयोग द्वारा प्राप्त आंकड़ों पर आधारित सामान्य सिद्धान्त का उल्लेख किया जाता है। वे संक्षिप्त, स्पष्ट एवं क्रमानुसार होने चाहिये।
7.
हवाले-प्रत्येक प्रयोग के अन्त में संदर्भ पुस्तकों के संबंधित अध्यायों के हवाले
देने चाहिए। हवाला देते समय लेखक का नाम एवं प्रकाशन का वर्ष भी देना चाहिए। हवाले
अक्षरों के क्रमानुसार देने चाहिए। पत्रिकाओं से हवाले देते समय पत्रिका का नाम, अध्ययन का शीर्षक, प्रकाशन का वर्ष, भाग, संख्या तथा पृष्ठ
का उल्लेख भी करना चाहिए।