शिक्षक के लिये वंशानुक्रम व वातावरण का महत्व बताइये।
शिक्षक के लिए वंशानुक्रम व वातावरण का महत्व
Importance of Heredity and Environment for Teacher)
शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और वातावरण का क्या महत्त्व है और वह उनके ज्ञान से अपना और अपने छात्रों का किस प्रकार हित कर सकता. है, इस पर हम अलग-अलग शीर्षकों के अन्तर्गत विचार कर रहे हैं, यथा-
(अ) वंशानुक्रम का महत्त्व (Importance of Heredity)
1. वंशानुक्रम के कारण बालकों में शारीरिक विभिन्नता होती है। शिक्षक इस ज्ञान से दे सकता है। सम्पन्न होकर उनके शारीरिक विकास में योग दे सकता है।
2. वंशानुक्रम के कारण बालकों की जन्मजात क्षमताओं में अन्तर होता है। शिक्षक इस बात को ध्यान में रखकर कम प्रगति करने वाले बालकों को अधिक प्रगति करने में योग दे सकता है।
3. बालकों और बालिकाओं में लिंगीय भेद वंशांनुक्रम के कारण होता है, जिससे विभिन्न विषयों में उनकी योगदान कम या अधिक होती है। शिक्षक इस ज्ञान से उनके लिए उपयुक्त विषयों के अध्ययन की व्यवस्था कर सकता है।
4. वंशानुक्रम के कारण बालकों में अनेक प्रकार की विभिन्नताएँ होती हैं, जो उनके विकास के साथ-साथ अधिक ही अधिक स्पष्ट होती जाती है। शिक्षक, बालकों की इन विभिन्नताओं का अध्ययन करके इनके अनुरूप शिक्षा का आयोजन कर सकता है।
5. वंशानुक्रम के कारण बालकों की सीखने की योग्यता में अन्तर होता है। शिक्षक इस ज्ञान से, अवगत होकर देर में सीखने वाले बालकों के प्रति सहनशील और जल्दों सीखने वाले बालकों को अधिक कार्य दे सकता है।
6. बालकों को वंशानुक्रम की कुछ प्रवृत्तियाँ (Tendencies) प्राप्त होती हैं, जो वांछनीय और अवांछनीय-दोनों प्रकार की होती है। है। शिक्षक इन प्रवृत्तियों का अध्ययन करके वांछनीय प्रवृत्तियों का विकास और अवांछनीय प्रवृत्तियों का दमन या मार्गान्तरीकरण कर सकता है।
7. बुडवर्थ के अनुसार- देहाती बालकों की अपेक्षा शहरी बालकों के मानसिक स्तर की श्रेष्ठता आंशिक रूप से वंशानुक्रम के कारण होती है। शिक्षक इस ज्ञान से युक्त होकर अपने शिक्षण को उनके मानसिक स्तरों के अनुरूप बना सकता है।
8. वंशानुक्रम का एक नियम बताता है कि योग्य माता-पिता के बच्चे अयोग्य और अयोग्य माता-पिता के बच्चे योग्य हो सकते हैं। इस नियम को भली-भाँति समझने वाला शिक्षक ही बालकों के प्रति उचित प्रकार का व्यवहार कर सकता है।'
(ब) वातावरण का महत्त्व (Importance of Environment)
1. बालक अपने परिवार, पड़ौस, मुहल्ले और खेल के मैदान में अपना पर्याप्त समय व्यतीत करता है और इससे प्रभावित होता है। शिक्षक इन स्थानों के वातावरण को ध्यान में रखकर ही बालक का उचित पथ-प्रदर्शन करता है।
2. सोरेन्सन के अनुसार-शिक्षा का उत्तम वातावरण बालकों की बुद्धि और ज्ञान की वृद्धि में प्रशंसनीय योग देता है। इस बात की जानकारी रखने वाला शिक्षक अपने छात्रों के लिए उत्तम शैक्षिक वातावरण प्रदान करने की चेष्ठा कर सकता है।
3. रूथ बैंडिक्ट के अनुसार व्यक्ति जन्म से ही एक निश्चित सांस्कृतिक वातावरण में रहता है और उसके आदशों के अनुरूप ही आचरण करता है। इस तथ्य को जानने वाला शिक्षक, बालक को अपना सांस्कृतिक विकास करने में योग दे सकता है।
4. अनुकूल वातावरण में जीवन का विकास होता है और व्यक्ति उत्कर्ष की ओर बढ़ता है। बात को समझने वाला शिक्षक अपने छात्रों की रूचियों, प्रवृत्तियों और क्षमताओं के अनुकूल वातावरण प्रदान करके उनको उत्कर्ष की ओर बढ़ने में सहायता दे सकता है।
5. यूनेस्को के कुछ विशेषज्ञों का कथन है कि वातावरण का बालकों की भावना पर व्यापक प्रभाव पड़ता है और उससे उनके चरित्र का निर्माण भी होता है। इस कथन में विशेष करके शिक्षक, बालकों के लिए ऐसे वातावरण का निर्माण कर सकता है, जिससे न केवल उन भावनाओं का संतुलित विकास हो, वरन् उनके चरित्र का भी निर्माण हो।
6. वातावरण, बालक के विकास की दशा निश्चित करता है। बालक बड़ा होकर अच्छा या बुरा, चरित्रवान् या चरित्रहीन, संयमी या व्यभिचारी, व्यापारी, साहित्यकार, देशप्रेमी या देशद्रोही बनेगा। इस तथ्य पर मनन करने वाला शिक्षक अपने छात्रों के लिए ऐसे वातावरण का सृजन कर सकता है, जिससे उनका विकास उचित दिशा में हो।
7. प्रत्येक समाज का एक विशिष्ट वातावरण होता है। बालक को इसी समाज के वातावरण के अनुरूप अपना अनुकूलन करना पड़तां है। इस बात से भली-भाँति परिचित होने वाला शिक्षक, विद्यालय को समाज का रूप प्रदान करके बालकों को अपने वृहत समाज के वातावरण से अनुकूलन करने की शिक्षा दे सकता है।
8. वातावरण के महत्त्व को समझने वाला शिक्षक, विद्यालय में बालकों के लिए ऐसा वातावरण उपस्थित कर सकता है, जिससे उनमें विचारों की उचित अभिव्यक्ति शिष्ट सामाजिक व्यवहार कर्तव्य और अधिकारों का ज्ञान, स्वाभाविक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण आदि गुणों का अधिकतम विकास हो।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षक के लिए वंशानुक्रम और वातावरण-दोनो का ज्ञान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार के ज्ञान से सम्पन्न होकर ही वह अपने छात्रों का वांछित और सन्तुलित विकास कर सकता है। इसीलिए सारेन्सन का मत है- "शिक्षक के लिए मानव-विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण के सापेक्षिक प्रभाव और पारस्परिक सम्बन्ध का ज्ञान विशेष महत्त्व रखता है।"
वंशानुक्रम तथा वातावरण से इस विश्लेषण-संश्लेषण से यह स्पष्ट है कि वातावरण तथा वंशानुक्रम एक सिक्के के दो पक्ष हैं। ये एक-दूसरे के लिये अनिवार्य हैं। मानव विकास के लिए इनको पृथक नहीं किया जा सकता।