राष्ट्रीय एकता के लिये विभिन्न शैक्षणिक कार्यक्रमों का उल्लेख
राष्ट्रीय एकता का अर्थ
राष्ट्रीय एकता का तात्पर्य एक राष्ट्र के निवासियों की उस भावनात्मक या आन्तरिक एकता से है, जिसमें वे अपनी एक विशिष्ट जाति, वर्ग, धर्म, संस्कृति, सम्प्रदाय तथा प्रान्त के संकीर्ण हितों को भूलकर सम्पूर्ण राष्ट्र की एक सामान्य संस्कृति, सामान्य भाषा, सामान्य भौगोलिक तथा राजनैतिक परिस्थिति तथा सामान्य जीवन-शैली को अपनाते हैं और सम्पूर्ण राष्ट्र की प्रगति की उत्कट आकांक्षा रखते हैं।
राष्ट्रीय एकता के लिए विभिन्न शैक्षणिक कार्यक्रम
1. पाठ्यक्रम एवं पाठ्यान्तर क्रियाएँ
राष्ट्रीय एकता को उत्पन्न करने के लिए विभिन्न स्तर के छात्रों के लिए जिन पाठ्य-विषयों तथा पाठ्यान्तर क्रियाओं के अपनाने की आवश्यकता है, उनका हम संक्षेप में वर्णन कर रहे हैं-
(अ) प्राथमिक स्तर पर
(1) सभी बालकों को विभिन्न क्षेत्रों के महापुरुषों के जीवन से परिचित कराया जाय।
(2) पाठ्यक्रम में कहानियों तथा लोकगीतों को स्थान दिया जाय।
(3) विभिन्न क्षेत्र की कहानियों को चुना जाय।
(4) सामाजिक जीवन की दशाओं का सरलतम ज्ञान प्रदान किया जाये।
(5) प्रत्येक क्षेत्र के मानव भूगोल का ज्ञान कराया जाय।
(6) उन्हें राष्ट्रीय झण्डे, राष्ट्रीय गीत तथा अन्य राष्ट्रीय चिन्हों का ज्ञान कराया जाय।
(7) छात्रों को राष्ट्रीय त्यौहारों को मनाने में प्रतिनिधित्व दिया जाय।
(ब) माध्यमिक स्तर पर
माध्यमिक स्तर पर राष्ट्रीय झण्डे, राष्ट्रीय गीत और राष्ट्रीय उत्सव के महत्व को बताने के साथ-साथ निम्नलिखित बातों का ज्ञान आवश्यक है-
(1) छात्रों को भारत का सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास पढ़ाया जाय।
(2) छात्रों को विभिन्न क्षेत्रों की सामाजिक दशाओं तथा संस्कृतियों से परिचिय कराया जाय।
(3) उन्हें भारत के औद्योगिक तथा आर्थिक विकास के विषय में जानकारी दी जाय।
(4) उनके पाठ्यक्रम में समाजशास्त्र, नागरिकशास्त्र तथा सामाजिक विचारों को प्रमुख स्थान दिया जाय।
2. विद्यालय-
विद्यालय समाज का एक ऐसा लघु स्वरूप हो कि जिसमें राष्ट्रीय एकता प्रतिबिम्बित हो। विद्यालय के समस्त उत्सवों तथा कार्यों में व्यक्तिगत लाभ के स्थान पर विभिन्न धर्म, वर्ग, सम्प्रदाय, भाषा तथा संकीर्ण स्वरूप को भूलकर राष्ट्रीय प्रेम की भावना का संचार हो। इस प्रकार विद्यालयों को राष्ट्रीय एकता के विकास में सहायता करनी चाहिए।
3. शिक्षक-
राष्ट्रीय विकास एवं एकता के लिए आवश्यक है कि शिक्षक में स्वयं देश-प्रेम तथा राष्ट्रीय एकता की भावना निहित हो। शिक्षक को अपने राष्ट्र के समस्त भागों ऐतिहासिक, भौगोलिक, राजनैतिक तथा आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी होनी चाहिए। इनके बिना अध्ययन किये वह छात्र को कुछ नहीं बता पायेगा। शिक्षक को किसी एक जाति, धर्म, राजनैतिक दल तथा सम्प्रदाय के प्रति अन्ध रूप से संवेदनशील नहीं होना चाहिए।
4. शिक्षण विधि-
प्रत्येक विषय के शिक्षण में ऐसी विधियाँ अपनायी जायें, जो छात्रों में देश प्रेम तथा राष्ट्रीय एकता का विकास कर सकें। सामाजिक विज्ञान का अध्ययन कराकर बालकों को अन्य प्रदेशों की संस्कृति, भौगोलिक तथा सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी दी जा सकती है। अच्छे साहित्य द्वारा भी छात्रों में देश-प्रेम की भावना का प्रादुर्भाव किया जा सकता है।