किशोरावस्था में सामाजिक विकास|Social development in adolescence

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किशोरावस्था में सामाजिक विकास

किशोरावस्था में सामाजिक विकास|Social development in adolescence


 

किशोरावस्था में सामाजिक विकास

किशोरावस्था मानवीय जीवन की अनोखी अवस्था होती है। अतः सामाजिक विकास पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। किशोर एवं किशोरीव्यक्ति-व्यक्ति के लिएव्यक्ति समूह के लिए और समूह अन्य समूहों के लिए होने वाली अन्तः क्रियाओं के माध्यम से सामाजिक सम्बन्धों में विकास करते हैंअतः हम यहाँ पर किशोरावस्था के सामाजिक विकास को प्रस्तुत करते हैं-

 

(i) आत्म-प्रेम (Auto Eroticism)- 

इस अवस्था में लड़के एवं लड़कियाँ स्वयं से अधिक प्रेम स्थापित करने लगते हैं। वे स्वयं को आकर्षक बनानेसजानेसँवारने में अधिक समय व्यतीत करते हैं। इसका मुख्य कारण विषम लिंगीय आकर्षण होता है। विद्यालय स्तर पर किये गये अध्ययनों से प्रकट होता है कि किशोरियाँ इस बात में रुचि रखती हैं कि कौन-साकिशोर उसको देखकर क्या सोचता हैऔर किशोर तो किशोरियों के बारे में बातचीत करते ही रहते हैं। अतः आत्म-प्रेम का भाव अचेतन अवस्था में लिंगीय चेतनता ही है।

 

(ii) समलिंगीय समूह (Homo-sexual Group)- 

इस अवस्था में किशोर एवं किशोरियों को अपने लिंगीय बनावट का पूर्ण अहसास होने लगता है। वे स्वयं को समान लिंग के प्रति रुचि जाग्रत करने लगते हैं। वे अपने आयु समूह के सक्रिय एवं प्रतिष्ठित सदस्य बन जाते हैं। वे अपने अन्दर अवस्था एवं त्याग को आवश्यक गुण के रूप में स्थापित करते हैं। जब कभी उनकी अवस्था एवं त्याग को ठेस लगती हैतो वे समाज के साथ असामान्य व्यवहार प्रगट करने लगते हैं और आन्तरिक संघर्ष उत्पन्न हो जाता है।


(iii) सामाजिक चेतना का उदय (Development of Social Feeling)-

इस अवस्था में समूह भावनाआस्था और त्याग का व्यापक रूप सामाजिक चेतना के रूप में देखने को मिलता है। किशोर एवं किशोरी के क्रिया-कलाप विद्यालयसमुदायराज्य और राष्ट्र एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर तक विकसित होने लगते हैं। वे स्वयं के दायरे से निकलकर मानवीय दायरे में प्रवेश करते हैंताकि समाज का अधिक से अधिक भला कर सकें। इसीलिए इतिहास के अनुसारदेश पर प्राण न्यौछावर करने वाले वीर किशोर एवं किशोरी ही अधिक थे।

 

(iv) भिन्नता में स्थायित्व (Stabilty in Differenciation) - 

इस अवस्था में मानवीय सम्बन्ध स्थिरता की ओर प्रस्थान करते हैं। हैं। अस्थिरता एवं शारीरिक आवेग एवं तनाव की स्थिति से किशोर एवं किशोरी निकलकर मित्रता को स्थायी बनाते हैं। आगे चलकर यही मित्रता आत्मीय सम्बन्धों में बदल जाती है। इस प्रकार से किशोर एवं किशोरी अपने चारों तरफ एक आत्मीय एवं सहयोगी परिवेश का निर्माण करते हैंजो उनके भविष्य निर्माण में सहायक होता है।

 

(v) समायोजन में अस्थिरता (Unstability in Adjustment) - 

किशोरावस्था में संवेगों की तीव्र अभिव्यक्ति होती है। ये लोग अपनी इच्छाओं एवं आकांक्षाओं को निश्चित मापदण्डों के बिना पूरा करना चाहते हैंजो समाज को अमान्य होता है। अतः ये अपना समायोजन सही रूप से नहीं कर पाते हैं। वे अपने दमन के प्रति और स्वतन्त्रता हनन के प्रति विद्रोह करने लगते हैं। यही भावना कुछ हद तक किशोरियों में भी पायी जाती है।

 

(vi) सामाजिक पहचान (Social Recognitiion) - 

किशोरावस्था का मुख्य आकर्षण सामाजिक पहचान को स्थापित करने के लिए किशोर एवं किशोरियों का क्रियाशील रहना है। इसके लिए वे अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने के लिए तत्पर रहते हैं। वे परिश्रमलगनपरोपकारितास्वतन्त्रता एवं सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेना आदि कार्यों में प्रमुख भूमिका अदा करते हैं। इस प्रकार से वे स्वयं की समाज में पहचान स्थापित करने में तत्परता दिखलाते हैं।

 

अन्त में कहा जा सकता है कि किशोर एवं किशोरियों के अन्दर सामाजिक चेतना की जाग्रति ही भावी राष्ट्रीय एकता एवं मानवीय एकता के लिए प्रारम्भिक प्रयास है।

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